ग्वालियर। जिले में महाराज बाड़ा स्थित केंद्रीय पुस्तकालय (Maharaj Bada Central Library Gwalior) में आज भी भारतीय संविधान (Indian Constitution) की एक मूल दुर्लभ प्रति सुरक्षित रखी हुई है. इसे हर वर्ष संविधान दिवस पर आम लोगों को दिखाने की व्यवस्था की जाती है. अब यह पुस्तकालय डिजिटल हो चुका है. लिहाजा इसकी डिजिटल कॉपी भी देखने को मिलती है. हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग अपने संविधान की इस मूल प्रति को देखने ग्वालियर पहुंचते हैं. 1927 में सिंधिया शासकों द्वारा निर्मित कराए गए. इस केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना कराई गई थी. तब यह यह मोती महल में स्थापित किया गया था. तब इसका नाम आलीजा बहादुर लाइब्रेरी था. कालांतर में इसे महाराज बाड़ा स्थित एक भव्य स्वतंत्र भवन में स्थानांतरित कर दिया गया. स्वतंत्रता के पश्चात् इसका नाम संभागीय केंद्रीय पुस्तकालय कर दिया गया.
संविधान की मूल प्रति: आखिरकार ग्वालियर के इस केंद्रीय पुस्तकालय में रखी संविधान की यह मूल प्रति यहां पहुंची कब और कैसे..? यह सवाल सबके जेहन में आना लाजमी है. अंग्रेजी भाषा में लिखे गए पूरी तरह हस्त लिखित इस महत्वपूर्ण दस्तावेज की कुल 11 प्रतियां तैयार की गई थी. इसकी एक प्रति संसद भवन में रखने के साथ कुछ प्रतियां देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजना तय हुआ था. ताकि लोग अपने संविधाना को देख सकें.
मूल हस्ताक्षर अंकित: इसी योजना के तहत एक प्रति ग्वालियर के केंद्रीय पुस्तकालय में भेजी गयी. इसकी सुरक्षा और संरक्षण की ख़ास व्यवस्था भी की गई. इसकी खास बात यह है कि, इसकी सभी ग्यारह पाण्डुलिपियों के अंतिम पन्ने पर संविधान सभा के सभी 286 सदस्यों ने मूल हस्ताक्षर किए थे. जो आज भी इस पर अंकित हैं. इसमें सबसे ऊपर पहला हस्तक्षर राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का है. इनके अतिरिक्त संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. भीम राव आंबेडकर और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के भी हस्ताक्षर हैं.
पुस्तकालय के अधिकारी गौरवान्वित: केंद्रीय पुस्तकालय के अधिकारी कहते हैं कि, इसके कारण वे भी अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं. उनका कहना है कि यह पूरा संविधान हस्तलिखित है. और सुन्दर सुन्दर शब्दांकन करने के लिए कैलीग्राफी करवाई गयी है. संविधान की इस पाण्डुलिपि की रूप सज्जा भी अद्भुत है. इसके पहले पैन को स्वर्ण से सजाया गया है. इसके अलावा हर पृष्ठ की सज्जा और नक्काशी पर भी स्वर्ण पॉलिश से लिपाई की गई है. संविधान की इस पाण्डुलिपि में भारत के गौरवशाली इतिहास की झलक भी मिलती है. इसके अलग-अलग पन्नों पर इतिहास के विभिन्न कालखंडों यानी मोहन-जोदड़ो, महाभारत काल, बौद्ध काल, अशोक काल से लेकर वैदिक काल तक मुद्राएं, सील और चित्र अंकित क्र इस बात को परिलक्षित किया गया है कि हमारी भारतीय संस्कृति,परम्पराएं, राज-व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्थाएं अनादिकाल से ही गौरवशाली और व्यवस्थित थी.