ग्वालियर। समर्थन मूल्य पर फसल खरीद में ग्वालियर के जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित की शाखा डबरा, चीनोर, घाटीगांव, मुरार, ग्वालियर, बेहट, पिछोर, आंतरी और भितरवार की 65 साख सहकारी सोसायटियों द्वारा 17 करोड़ 39 लाख (Gwalior 17 crores scam) रुपए की चपत सरकारी खजाने को लगाई गई है. (Gwalior Cooperative Bank Scam) जब मामला खुला और मामले ने तूल पकड़ा सोसायटियों ने 5 करोड़ रुपए का हिसाब तो दे दिया, लेकिन मामला ठंडा पड़ते ही सब चुप हो गए.13 करोड़ 11 लाख रुपए का हिसाब अभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया है. (Gwalior cooperatives scam) जबकि बीते सीजन में हुए धान घोटाले में से भी अभी 42 लाख रुपए की अनियमितताओं को उजागर नहीं किया गया है.
ढेर में दफन हो गई फाइल: इससे पहले भी 292.12 लाख रुपए की आर्थिक अनियमितताएं सोसाटियों की उजागर हो चुकी हैं, लेकिन हर बार जांच के आदेश होते हैं बाद में होता कुछ नही.आर्थिक अनियमितताओं को लेकर प्रशासनिक स्तर पर शुरू हुई जांच कुछ समय तक तो जारी रही लेकिन अब यह जांच पूरी तरह से फाइलों के ढेर में दफन हो गई है.
कहां कितना गोलमाल (वर्ष 2015-16)
- प्राथमिक साख सहकारी संस्था करहिया 28 लाख 72 हजार रुपए का गोलमाल हुआ था.
- प्राथमिक साख सहकारी संस्था चिटोली पर 126.98 लाख रुपए का गोलमाल हुआ था.
- प्राथमिक साख सहकारी संस्था गढ़ाजर पर 107.22 लाख रुपए का गोलमाल हुआ था.
- प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्था भितरवार पर 29.2 लाख रुपए का गोलमाल हुआ था.
यह हैं पुराने प्रकरण
- प्राथमिक साख सहकारी संस्थाओं फसल ऋण माफी के 15, धान ट्रक चोरी के 8 और खाद, धान खरीदी और उपभोक्ताओं से संबंधित 11 प्रकरण दर्ज हुए थे। -11 प्रकरण मेंं आरोप गिरफ्तार भी हुए लेकिन राशि की पूरी वसूली अभी तक नहीं हो सकी.
- समिति स्तर पर हुए 34 प्रकरणों में 2758.76 लाख रुपए का गबन हुआ था, इनमें से कुल कितनी वसूली हुई है, यह जानकारी विभाग के अधिकारी नहीं बताते हैं.
यह है बीते वर्ष की गड़बड़ी: ग्वालियर जिले के खरीद केन्द्रों से 123329.39 मीट्रिक टन धान खरीदी गई।इसमें से 122408.89 मीट्रिक टन गोदाम में पहुंची. 920.50 मीट्रिक टन धान गोदामों तक नहीं पहुंची थी. 1.78 करोड़ रुपए की धान को लेकर बाद में अधिकारियों ने समझौते का रवैया अपनाया. इससे अनियमिततताएं करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों पर कोई आंच नहीं आई. सहकारिता विभाग में लोन से लेकर खरीदी तक में एक माफिया काम करता है. जिन पर बड़े नेताओं तक की मिलीभगत होती है. इसलिए जब मामला खुलता तो समितियो के छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई कर थोड़ी बहुत रिकवरी करवाकर घोटाले को रफा दफा करवा दिया जाता है और बड़े शिकार फिर भी बच निकलते है.
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कांग्रेस के आरोप पर बीजेपी की सफाई: कांग्रेस का कहना है कि इस मामले में एक पूरा सिंडिकेट बनकर काम करता है. इन पर शासन और प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करता. पूर्व मंत्री और मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष बालेंदु शुक्ला का आरोप है कि चूंकि बीजेपी को अगले चुनाव में हार का खतरा मंडरा रहा है. वह इसी घोटालेबाज सिंडिकेट की मदद से चुनाव जीतना चाहती है. इसलिए वह इन्हें बचाने की कोशिश में लगी है, लेकिन बीजेपी का कहना है कि जो भी मामले आते है उनकी जांच होती है और अगर गड़बड़ी पाई जाती है तो एफआईआर भी होती है. इसका राजनीति से कोई लेना देना नही है.