ग्वालियर। जिले का वह महल जो कभी मध्य भारत की राजधानी का गवाह है. जिस महल में मध्य भारत की विधानसभा सजती थी. वह आज अंधेरे में डूबा हुआ है. क्योंकि बिल जमा ना होने से बिजली विभाग ने इसकी बिजली का कनेक्शन ही काट दिया है. इस दरबार हॉल और मोतीमहल को देखने देशभर से पर्यटक और वास्तुविदों के ग्रुप स्टडी टूर पर आते रहते हैं, लेकिन अब उन्हें यहां पसरे अंधेरे में देखने को कुछ नहीं मिल पा रहा लिहाजा निराश होकर लौट रहे हैं. पिछले 10 दिनों से यह ऐतिहासिक मोती महल अंधेरे के सन्नाटे में उजाले का इंतजार कर रहा है.
बेशकीमती मोती महल खाली: अन्य कारणों से यह भव्य और ऐतिहासिक बेशकीमती मोती महल खाली पड़ा है. क्योंकि एक एक करके इसमें लगने वाले सभी राज्यस्तरीय और संभागीय दफ्तरों को शिफ्ट किया जा चुका है. जिसके चलते इसका संधारण और विद्युत आपूर्ति देखने वाले लोकनिर्माण विभाग ने अब इसकी जिम्मेदारियों से मुक्त कर लिया है. लिहाजा इसकी बिजली सप्लाई बंद कर दी गई है. पुरातत्व विभाग में इसका नया कनेक्शन लेने में किसी ने कोई रुचि नही ली नतीजतन पिछले पखबाड़े इसकी बिजली बंद हो गई.
सिंधिया ने बनाया था अपना सचिवालय: बता दे सिंधिया राज परिवार में 1905 में अपने प्रासाद जयविलास पैलेस से एकदम सटे हुए इलाके में मोती महल का निर्माण कराया था. अदभुत वास्तु से निर्मित इस महल में हजारों की संख्या में कक्ष और बड़े हॉल है. इसका नाम भले ही महल हो लेकिन दरअसल सिंधिया परिवार ने कभी भी इसका उपयोग राज महल के रूप में नहीं किया बल्कि महाराजा जियाजी राव सिंधिया ने इसे अपना सचिवालय बनाया. इसी के दरबार हॉल में बैठकर महाराजा अपना दरबार सजाते थे. जहां वे प्रजा से भी भेंट करते थे और अपना राजकीय कामकाज भी निपटाते थे.
धार्मिक अमूल्य पेंटिंग: दरबार हॉल अपने आप मे बहुत ही अदभुत सुंदर बनाया गया है. इसमें फब्बारे लगे हैं. हॉल के ऊपर चारों तरफ महारानी और राज परिवार की महिलाओं को दरबार की कार्यवाही बैठकर देखने के लिए झरोखे बने हुए हैं. इसकी दीवालों पर सोने से नक्काशी की गई हैं. तब बेल्जियम के महाराज द्वारा भेंट किये आदमकद से भी बड़े कांच फ्रेम में लगे हुए हैं जो दुर्लभ श्रेणी के है. इसमें सिंधिया महारानियों की नैचुरल कलर से बनाई गई धार्मिक अमूल्य पेंटिंग रखी हुई हैं. आग लगने पर इसके बाहरी हिस्से को क्षति हुई थी तो विशेषज्ञों को बुलाकर उसे पुराने रूप में ही लौटाया गया था. बल्कि पांच किलो सोने से चित्रकारी की पुरानी छवि को भी जीवंत किया गया था.
ग्वालियर चम्बल की कमिश्नरी: 1947 में देश आजाद हुआ और 1948 में ग्वालियर रियासत के भारत सरकार में विलय हो गया. इसके बाद तत्कालीन महाराज जियाजी राव सिन्धिया ने राज प्रमुख की हैसियत से यही बनाये गए मध्यभारत राज्य के पहले मुख्यमंत्री लीलाधर जोशी और उनके मंत्रिमंडल को इसी दरबार हॉल में शपथ दिलाई गई थी. फिर इसका इस्तेमाल मध्यभारत प्रान्त की विधानसभा और सचिवालय के रूप में होने लगा. इसके बाद 1956 में जब मध्यप्रदेश में इसका विलय हो गया और भोपाल राजधानी बन गई तब भी मोती महल का वैभव कम नहीं बल्कि इसे ग्वालियर चम्बल की कमिश्नरी के रूप में तब्दील कर दिया गया. बल्कि ट्रांसपोर्ट कमिश्नर, राजस्व मंड़ल और आयुक्त भू अभिलेख तथा आबकारी आयुक्त जैसे राज्यस्तरीय दफ्तरों के मुख्यालय भी इसी में स्थापित किए गए. लेकिन दरबार हॉल को संरक्षित श्रेणी में रखकर इसे पुरातत्व विभाग को सौंपा गया. उसने इसे संधारित भी कराया.
स्थापना दिवस: मध्य भारत की राजधानी थी ग्वालियर, मोती महल में लगती थी विधानसभा
मोती महल में अंधेरा: मोती महल के केयर टेकर बिहारी शरण शर्मा ने कहा कि, पिछले 10 दिन से मोती महल अंधकार में डूबा हुआ है क्योंकि ज्यादातर डिपार्टमेंट यहां से ट्रांसफर हो गए हैं इसलिए उन्होंने अपना बिजली कटवा दी है साथ ही कुछ दफ्तर ऐसे हैं जो जाने की तैयारी में है इसलिए मोती महल में अंधेरा है. इसको लेकर बिजली विभाग को आवेदन दिया है बहुत जल्द मोती महल में लाइट की व्यवस्था होने वाली है साथ ही अंधकार होने के कारण जो पर्यटक है वह भी नहीं आ रहे हैं.