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Shani Mauni Amavasya चंबल के ऐंती पर्वत पर देश का अनूठा शनि मंदिर, ये है पौराणिक कथा

आज मौनी अमावस्या है और अद्भुत संयोग भी है. यही वजह है कि देशभर के शनि मंदिरों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. चंबल के अति पर्वत पर स्थित शनिदेव का ऐंती पर्वत पर स्थित अनोखा मंदिर है, जो पूरे देशभर में विख्यात है. यही कारण है कि आज मौनी अमावस्या के दिन यहां पर लाखों की तादाद में देशभर के कोने-कोने से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं. अनुमान है कि लगभग दो लाख से अधिक श्रद्धालु आज दर्शन करने के लिए पहुंचेंगे. यहां पुलिस बल के साथ ही सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं.

unique Shani temple on Aanti mountain
चंबल के ऐंती पर्वत पर देश का अनूठा शनि मंदिर
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Published : Jan 21, 2023, 12:31 PM IST

ग्वालियर। ग्वालियर से 20 किलोमीटर दूर ऐंती पर्वत पर शनि महाराज की बहुत प्राचीन प्रतिमा है. इस प्रतिमा की स्थापना उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट महाराज विक्रमादित्य ने करवाई थी. बाद में सिंधिया शासकों ने यहां मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. वर्तमान में भारत सरकार यहां करोड़ों रुपए खर्च करके एक भव्य कॉरिडोर बनावा रही है. यहां पर पूरी सुरक्षा व्यवस्था जिला प्रशासन की रहती है. यह देश का इकलौता मंदिर है जहां शनिदेव तपस्या की मुद्रा में हैं. इसलिए वे अपने भक्तों को मंगलकारी आशीर्वाद देते हैं. यहां की शनिदेव की प्रतिमा पूरे विश्व में अनोखी है.

रावण ने बंदी बना लिया था शनिदेव को : ऐंती पर्वत पर बने इस मंदिर को लेकर पौराणिक धर्म ग्रंथों में बहुत ही महत्वपूर्ण कथा है. पुराणों में उल्लेख है कि शिव भक्त रावण ने शनि सहित सभी नौ ग्रहों को बंदी बना लिया था और ग्रह चक्र भी रोक दिया था. बंदी ग्रह में शनि देव भी थे. इसलिए रावण की मौत संभव नहीं थी. उसके बाद भगवान श्रीराम को अवगत कराया गया. फिर शनिदेव की मुक्ति की योजना बनाई गई. श्री राम की आज्ञा लेकर हनुमान जी लंका गए और लंका दहन करके शनिदेव समेत सभी ग्रहों को रावण के चंगुल से मुक्ति दिलाई.

ये कथा भी प्रचलित : उसके बाद प्रभु हनुमान जी शनिदेव को लंका से लेकर आए और इसी ऐंती पर्वत पर विश्राम करने के लिए छोड़ दिया. मान्यता है कि यहीं शनिदेव ने तपस्या करके फिर से अपनी खोई हुई शक्ति वापस पाई. इसलिए प्रतिमा में भी शनिदेव आंखें बंद करके तपस्या में लीन नजर आ रहे हैं. इसके साथ ही एक और मान्यता है कि जो शनि शिंगणापुर में शनि देव की जो शिला है, वह यहां से ही गई है. क्योंकि आज भी आधी शिला यहां शनि देव मंदिर में रखी हुई है. इसलिए इस मंदिर की काफी अधिक मान्यता है. यही कारण है कि लोग मध्यप्रदेश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक व जम्मू-कश्मीर से शनि देव के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते हैं.

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राजनीतिक हस्तियां भी आती हैं : इस शनि देव मंदिर तक पहुंचने के लिए वायु और रेल, सड़क मार्ग तीनों उपलब्ध हैं. सड़क मार्ग होते हुए मुरैना जिले और ग्वालियर जिले से शनि देव मंदिर पर पहुंचा जा सकता है. इसके साथ ही ट्रेन के माध्यम से भी ग्वालियर रेलवे स्टेशन से शनि देव मंदिर पर पहुंच सकते हैं. वहीं वायुयान से ग्वालियर एयरपोर्ट पर पहुंचकर 35 किलोमीटर की दूरी पर शनि देव के दर्शन करने के लिए जा सकते हैं. आम लोगों के साथ ही राजनीतिक और फिल्म हस्तियों के लिए भी ये काफी प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां पर विशेष पूजा अर्चना कर आते रहते हैं. जब भी उनके ऊपर राजनीतिक संकट होता है तो वह पूरे परिवार के साथ यहां पर पूजा पाठ करते हैं. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर यहां पर शनि देव के दर्शन किए बिना नहीं जाते. राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जब भी यहां से गुजरती है तो बिना शनि देव के दर्शन के आगे नहीं बढ़ती.

ग्वालियर। ग्वालियर से 20 किलोमीटर दूर ऐंती पर्वत पर शनि महाराज की बहुत प्राचीन प्रतिमा है. इस प्रतिमा की स्थापना उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट महाराज विक्रमादित्य ने करवाई थी. बाद में सिंधिया शासकों ने यहां मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. वर्तमान में भारत सरकार यहां करोड़ों रुपए खर्च करके एक भव्य कॉरिडोर बनावा रही है. यहां पर पूरी सुरक्षा व्यवस्था जिला प्रशासन की रहती है. यह देश का इकलौता मंदिर है जहां शनिदेव तपस्या की मुद्रा में हैं. इसलिए वे अपने भक्तों को मंगलकारी आशीर्वाद देते हैं. यहां की शनिदेव की प्रतिमा पूरे विश्व में अनोखी है.

रावण ने बंदी बना लिया था शनिदेव को : ऐंती पर्वत पर बने इस मंदिर को लेकर पौराणिक धर्म ग्रंथों में बहुत ही महत्वपूर्ण कथा है. पुराणों में उल्लेख है कि शिव भक्त रावण ने शनि सहित सभी नौ ग्रहों को बंदी बना लिया था और ग्रह चक्र भी रोक दिया था. बंदी ग्रह में शनि देव भी थे. इसलिए रावण की मौत संभव नहीं थी. उसके बाद भगवान श्रीराम को अवगत कराया गया. फिर शनिदेव की मुक्ति की योजना बनाई गई. श्री राम की आज्ञा लेकर हनुमान जी लंका गए और लंका दहन करके शनिदेव समेत सभी ग्रहों को रावण के चंगुल से मुक्ति दिलाई.

ये कथा भी प्रचलित : उसके बाद प्रभु हनुमान जी शनिदेव को लंका से लेकर आए और इसी ऐंती पर्वत पर विश्राम करने के लिए छोड़ दिया. मान्यता है कि यहीं शनिदेव ने तपस्या करके फिर से अपनी खोई हुई शक्ति वापस पाई. इसलिए प्रतिमा में भी शनिदेव आंखें बंद करके तपस्या में लीन नजर आ रहे हैं. इसके साथ ही एक और मान्यता है कि जो शनि शिंगणापुर में शनि देव की जो शिला है, वह यहां से ही गई है. क्योंकि आज भी आधी शिला यहां शनि देव मंदिर में रखी हुई है. इसलिए इस मंदिर की काफी अधिक मान्यता है. यही कारण है कि लोग मध्यप्रदेश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक व जम्मू-कश्मीर से शनि देव के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते हैं.

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राजनीतिक हस्तियां भी आती हैं : इस शनि देव मंदिर तक पहुंचने के लिए वायु और रेल, सड़क मार्ग तीनों उपलब्ध हैं. सड़क मार्ग होते हुए मुरैना जिले और ग्वालियर जिले से शनि देव मंदिर पर पहुंचा जा सकता है. इसके साथ ही ट्रेन के माध्यम से भी ग्वालियर रेलवे स्टेशन से शनि देव मंदिर पर पहुंच सकते हैं. वहीं वायुयान से ग्वालियर एयरपोर्ट पर पहुंचकर 35 किलोमीटर की दूरी पर शनि देव के दर्शन करने के लिए जा सकते हैं. आम लोगों के साथ ही राजनीतिक और फिल्म हस्तियों के लिए भी ये काफी प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां पर विशेष पूजा अर्चना कर आते रहते हैं. जब भी उनके ऊपर राजनीतिक संकट होता है तो वह पूरे परिवार के साथ यहां पर पूजा पाठ करते हैं. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर यहां पर शनि देव के दर्शन किए बिना नहीं जाते. राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जब भी यहां से गुजरती है तो बिना शनि देव के दर्शन के आगे नहीं बढ़ती.

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