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जिसे बचाने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रही सरकार, बूंद-बूंद पानी को वही है मोहताज

राष्ट्रपति की दत्तक संतानों को बचाने के लिए भले ही सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है, लेकिन बैगान टोला में लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. एक जमीनी जल स्रोत के सहारे पूरा मोहल्ला अपनी प्यास बुझा रहा है. सरकार की तमाम योजनाएं भी यहां पहुंचने से पहले दम तोड़ रही हैं. लोग चाहते हैं कि प्रशासन जल्द से जल्द उनके लिए पानी का इंतजाम करे.

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Published : Jun 20, 2019, 8:44 PM IST

बैगा टोला में जल संकट

डिंडौरी। आदिवासी बाहुल्य इस जिले में जल संकट दिनों दिन गहराता जा रहा है, एक तरफ नदी-नाले सूखने की कगार पर हैं तो दूसरी तरफ लोग सूखा गला तर करने के लिए पथरीली जमीन से बूंद-बूंद रिस रहे पानी का इंतजार कर रहे हैं. डिंडौरी नगर सहित ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या विकराल रूप ले रही है, बजाग विकास खंड के कारोपानी गांव में विशेष पिछड़ी जनजाति के लोग पानी के लिए रोजाना जिंदगी से जंग लड़ने को मजबूर हैं.

बैगा टोला में जल संकट

भले ही राष्ट्रपति की दत्तक संतानें प्यास से व्याकुल हैं, लेकिन सरकार इनकी सुविधा के लिए पानी की तरह पैसा बहा रही है और इन्हें बूंद-बूंद पानी के लिए रोजाना जद्दोजहद करनी पड़ रही हैं, जबकि पीएचई विभाग के अधिकारी क्या कह रहे हैं, वो भी सुन लीजिए.

बैगा जनजाति जिसे विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है, इन्हें बचाने के लिए सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है, लेकिन धरातल पर इसका असर कम ही दिखाई पड़ता है. कारोपानी पंचायत के बैगान टोला में लोगों को दो वक्त की रोटी-पानी भी मयस्सर नहीं हो रहा है.

डिंडौरी। आदिवासी बाहुल्य इस जिले में जल संकट दिनों दिन गहराता जा रहा है, एक तरफ नदी-नाले सूखने की कगार पर हैं तो दूसरी तरफ लोग सूखा गला तर करने के लिए पथरीली जमीन से बूंद-बूंद रिस रहे पानी का इंतजार कर रहे हैं. डिंडौरी नगर सहित ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या विकराल रूप ले रही है, बजाग विकास खंड के कारोपानी गांव में विशेष पिछड़ी जनजाति के लोग पानी के लिए रोजाना जिंदगी से जंग लड़ने को मजबूर हैं.

बैगा टोला में जल संकट

भले ही राष्ट्रपति की दत्तक संतानें प्यास से व्याकुल हैं, लेकिन सरकार इनकी सुविधा के लिए पानी की तरह पैसा बहा रही है और इन्हें बूंद-बूंद पानी के लिए रोजाना जद्दोजहद करनी पड़ रही हैं, जबकि पीएचई विभाग के अधिकारी क्या कह रहे हैं, वो भी सुन लीजिए.

बैगा जनजाति जिसे विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है, इन्हें बचाने के लिए सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है, लेकिन धरातल पर इसका असर कम ही दिखाई पड़ता है. कारोपानी पंचायत के बैगान टोला में लोगों को दो वक्त की रोटी-पानी भी मयस्सर नहीं हो रहा है.

Intro:एंकर _ आदिवासी जिला डिंडौरी में जलसंकट दिनों दिन गहराता ही जा रहा है।एक तरफ जहां नदी नाले सूखने की कगार पर है तो वही दूसरी तरफ लोग सूखते गले की प्यास बुझाने पथरीली जमीन से बूंद बूंद रिस्ते पानी को कही कपड़े में समेट रहे है।डिंडौरी नगर सहित ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या ने भयावह रूप ले लिए है। कुछ ऐसा ही नजारा जिले के बजाग विकासखंड के कारोपानी ग्राम में देखने को मिला जहाँ विशेष पिछड़ी जनजाति पानी के लिए रोजाना जिंदगी से जंग लड़ने मजबूर है और जिले के हुक्मरान है कि उन्हें इन सब से कोई फर्क नही पड़ रहा।वही इस पूरे मामले में जिले के पीएचई विभाग के अधिकारी कार्ययोजना बनाकर काम करने की बात कह रहे है।


Body:वि ओ 01 बैगा जनजाति जिसे विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है जिन्हें बचाने के लिए सरकार करोड़ो रूपये योजनाओं को संचालित करने में खर्च कर रही है।लेकिन सरकार का जो पैसा है वो धरातल में दिखाई नही पड़ता है।बात अगर गर्मी के दिनों में पानी की करे तो कारोपानी ग्राम पंचायत के बैगान टोला में मौजूदा हालात बेहद दर्दनाक है।जंगलों में रहने और कंदमूल खाकर जीवनयापन करने वाले बैगा जनजाति के लोगो की कोई ज्यादा ख्वाहिश भी नही है।दो वक्त का भरपेट भोजन और प्यास बुझाने को पानी मिल जाये इन्ही से वे जीवन काट लेते है।लेकिन जब पानी गाँव मे दूर दूर न हो तो एक एक बूंद की कीमत आप खुद समझ सकते है।बैगा महिलाओ की माने तो पानी की तकवारी भी वे करते है अगर नही करेंगे तो पानी गाँव के ही लोग चुरा कर ले जाते है।

वि ओ 02 _ कारोपानी ग्राम के बैगान टोला में दो कुँए बने है एक सूख गया है तो दूसरा गंदा और मैला है।वही दो जमीनी जल स्रोत है एक का गंदा पानी मवेशी तो दूसरे झिर का पानी बैगा अपने लिए भरते है।लेकिन दिन भर में कितना पानी इस छोटे से कुंड में भरता होगा आप दृश्य देख सहज ही अंदाजा लगा सकते है।वही पानी को निहारते बैगा बच्चें दिन भर झिर के आसपास रहते है।बैगा महिलाओ का आरोप है सरकार बैगाओं को बेवकूफ समझती है उनके लिए बनाई गई योजनाए कागजो तक सीमित है जो उन तक नही पहुँचती।
देश जहाँ 21 वी सदी में प्रवेश कर रहा है लेकिन उसके ग्रामीण इलाकों के हालात बेहद बदतर है।बैगाओं की मांग है कि सरकार उनकी सुनवाई कर उन तक पानी पहुँचाये।


Conclusion:बाइट 1 बतासिया बाई बैगा, ग्रामीण महिला
बाइट 2 सुनिया बाई बैगा, ग्रामीण महिला
बाइट 3 बी एस चौहान,कार्य पालन यंत्री पीएचई विभाग
पीटीसी _ दीपक ताम्रकार, संवाददाता डिंडौरी
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