डिंडोरी। जिले में न तो बेहतर सड़कें हैं और न ही महानगरों की तरह हाईटेक नेटवर्क. आज हम आपको एक ऐसी बैगा महिला से मिलवाने जा रहे हैं, जो गाती हैं, नाचती हैं और लिखती भी हैं. गीतों के जरिए ये बैगा परंपरा को जीवित रखे हुए हैं.
पूर्वजों से मिले बैगानी संस्कार को आज भी अपने दिल और दिमाग में लिए भागवती रठुडिया हर कार्यक्रम में गाकर कुछ इस तरह से रंग भर देती हैं जैसे उनका यह रोज का काम हो. बैगाओं की आने वाली पीढ़ी के लिए भागवती रठुडिया मार्ग दर्शी हैं. साल 2012 में "बैगानी गीत" नामक किताब को लिखा. इन्होंने माय गीत, लोधा गीत, रीना गीत, झरपट, कर्मा, दरिया, बिरहा आदि गीत को लिखा है, जिसे उन्होंने अपनी मां से सीखा था. अपनी किताब को लिखने में भागवती को महज 11 दिन लगे थे. इस किताब में भागवती ने बैगा गीत पूर्व विवरण के साथ लिखे हैं, जिनका हिंदी में भी अनुवाद है.इस किताब को वर्ष 2013 में आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी मध्य प्रदेश ने प्रकाशित कराया था, जो हाथों-हाथ बिकी और आज भी प्रदेश जनजाति विभाग में सुरक्षित है.
भागवती को अपनी इस कला का जौहर दिखाने के लिए कई जगहों से प्रशस्ति पत्र भी सम्मान के रूप में मिला है. किताब लिखने का उद्देश्य ये है कि आने वाले पीढ़ी बैगाओं की परंपरा और संस्कृति के बारे में कुछ लेख सुरक्षित हो, जिसे पढ़कर आसानी से जान सकें. बैगा और उनकी सभ्यता अब विलुप्ति की कगार पर है. अगर ऐसी परिस्थिति में इसे सहेजा नहीं गया तो आगे कौन जानेगा ? इसलिए बैगा समाज के लोग इस किताब को पढ़ें और अपने समाज के पारंपरिक गीतों को गाएं.