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एंड्रॉयड मोबाइल ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की बढ़ाईं मुश्किलें, कहीं नेटवर्क नहीं, तो कही मोबाइल नहीं चला पा रही महिलाएं

डिंडौर में महिला बाल विकास विभाग ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को एंड्रॉयड मोबाइल का इस्तेमाल करना आवश्यक है. कई महिलाएं ज्यादा पढ़ीं-लिखीं न होने के चलते उन्हें एंड्रॉयड मोबाइल चलाने की समझ नहीं है. जिन्हें समझ है तो उन क्षेत्रों में मोबाइल का नेटवर्क ही नहीं है.

Anganwadi workers
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता
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Published : Dec 2, 2020, 5:54 PM IST

डिंडौरी। प्रदेश सरकार द्वारा जिले में कुपोषित बच्चों को चिन्हित कर उनकी जानकारी भोपाल भेजने से लेकर साप्ताहिक फीड बैक लेने तक का काम ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को सौंपा है. जिसके लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को एंड्रॉयड मोबाइल का इस्तेमाल करना आवश्यक है. लेकिन इस आदेश के बाद से आदिवासी जिला डिंडौरी में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मुश्किलें बढ़ गई है. कई महिलाएं ज्यादा पढ़ी-लिखी न होने के चलते उन्हें एंड्रॉयड मोबाइल चलाने की समझ नहीं है. जिन्हें समझ है तो उन क्षेत्रों में मोबाइल का नेटवर्क ही नहीं है.अब ऐसे में सरकार के आदेश का पालन करना साथ ही अपनी नौकरी बचाने के लिए उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

जमीन पर हो रही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की बैठक

डिंडौरी परियोजना कार्यालय पहुंची सैकड़ों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की बैठक कार्यालय के बाहर जमीन पर ली जा रही है. इन सभी आंगनबाड़ी महिलाओं को परियोजना अधिकारी द्वारा कुपोषित बच्चों की जमीनी जानकारी लेने के साथ-साथ किस तरह से मोबाइल में फीड करना है, चार्ट को कैसे भरना है. इसकी जानकारी दी जा रही है. लेकिन परियोजना कार्यालय में महिलाओं के बैठने की व्यवस्था तक नहीं की गई है.

कई गांव में नेटवर्क नहीं

बात अगर डिंडौरी परियोजना की करें तो इस परियोजना के ग्राम सारसताल,बटौन्धा ,अझवार, जमगाव ऐसे गांव हैं. जहां आज तक नेटवर्क नहीं पहुंच पाया है. इन ग्रामों में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को गांव गांव घूमकर पहले अतिकुपोषित बच्चों की जानकारी जुटाना है. फिर उसके बाद उस बच्चे की फ़ोटो लेकर महिला बाल विकास विभाग की साइड में सभी जानकारी के साथ अपलोड करना है. इस काम के लिए मोबाइल का नेटवर्क होना बेहद आवश्यक है. लेकिन इन चारों क्षेत्रों की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को नेटवर्क न होने के चलते गांव छोड़कर दूसरे गांव जहां नेटवर्क हो या मुख्यालय आने को मजबूर होना पड़ता है.

आर्थिक नुकसान हो रहा

भोपाल से आये फरमान पर सबसे ज्यादा जमीनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को परेशानी उठानी पड़ रही है. पहले उन्हें महंगे एंड्रॉयड मोबाइल न चाह कर भी खरीदना पड़ रहा है. फिर उसमें सारी विभागीय जानकारी भेजने के लिए बारीकी से समझना पड़ रहा है. जबकि आदिवासी पिछड़े जिले में अधिकांश इलाकों की महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में कम पढ़ी लिखी हैं. ऐसे में उन्हें आर्थिक और मानसिक परेशानी से जूझना पड़ रहा है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान डिंडौरी जिला के बजाग जनपद क्षेत्र के बैगा ग्राम चाडा में रुक कर बैगाओं से उनकी समस्या को जान चुके हैं, वहां के नेटवर्क की समस्या को दूर करने का वादा भी किये थे, लेकिन वादा आज तक अधूरा ही है.

डिंडौरी। प्रदेश सरकार द्वारा जिले में कुपोषित बच्चों को चिन्हित कर उनकी जानकारी भोपाल भेजने से लेकर साप्ताहिक फीड बैक लेने तक का काम ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को सौंपा है. जिसके लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को एंड्रॉयड मोबाइल का इस्तेमाल करना आवश्यक है. लेकिन इस आदेश के बाद से आदिवासी जिला डिंडौरी में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मुश्किलें बढ़ गई है. कई महिलाएं ज्यादा पढ़ी-लिखी न होने के चलते उन्हें एंड्रॉयड मोबाइल चलाने की समझ नहीं है. जिन्हें समझ है तो उन क्षेत्रों में मोबाइल का नेटवर्क ही नहीं है.अब ऐसे में सरकार के आदेश का पालन करना साथ ही अपनी नौकरी बचाने के लिए उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

जमीन पर हो रही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की बैठक

डिंडौरी परियोजना कार्यालय पहुंची सैकड़ों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की बैठक कार्यालय के बाहर जमीन पर ली जा रही है. इन सभी आंगनबाड़ी महिलाओं को परियोजना अधिकारी द्वारा कुपोषित बच्चों की जमीनी जानकारी लेने के साथ-साथ किस तरह से मोबाइल में फीड करना है, चार्ट को कैसे भरना है. इसकी जानकारी दी जा रही है. लेकिन परियोजना कार्यालय में महिलाओं के बैठने की व्यवस्था तक नहीं की गई है.

कई गांव में नेटवर्क नहीं

बात अगर डिंडौरी परियोजना की करें तो इस परियोजना के ग्राम सारसताल,बटौन्धा ,अझवार, जमगाव ऐसे गांव हैं. जहां आज तक नेटवर्क नहीं पहुंच पाया है. इन ग्रामों में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को गांव गांव घूमकर पहले अतिकुपोषित बच्चों की जानकारी जुटाना है. फिर उसके बाद उस बच्चे की फ़ोटो लेकर महिला बाल विकास विभाग की साइड में सभी जानकारी के साथ अपलोड करना है. इस काम के लिए मोबाइल का नेटवर्क होना बेहद आवश्यक है. लेकिन इन चारों क्षेत्रों की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को नेटवर्क न होने के चलते गांव छोड़कर दूसरे गांव जहां नेटवर्क हो या मुख्यालय आने को मजबूर होना पड़ता है.

आर्थिक नुकसान हो रहा

भोपाल से आये फरमान पर सबसे ज्यादा जमीनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को परेशानी उठानी पड़ रही है. पहले उन्हें महंगे एंड्रॉयड मोबाइल न चाह कर भी खरीदना पड़ रहा है. फिर उसमें सारी विभागीय जानकारी भेजने के लिए बारीकी से समझना पड़ रहा है. जबकि आदिवासी पिछड़े जिले में अधिकांश इलाकों की महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में कम पढ़ी लिखी हैं. ऐसे में उन्हें आर्थिक और मानसिक परेशानी से जूझना पड़ रहा है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान डिंडौरी जिला के बजाग जनपद क्षेत्र के बैगा ग्राम चाडा में रुक कर बैगाओं से उनकी समस्या को जान चुके हैं, वहां के नेटवर्क की समस्या को दूर करने का वादा भी किये थे, लेकिन वादा आज तक अधूरा ही है.

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