धार। कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच में देश में लॉक डाउन जारी है. इसी के चलते बेबस मजदूर हजारों किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करने को मजबूर हैं. इन्हीं बेबस मजदूरों के बीच में ईटीवी भारत की टीम ग्राउंड जीरो पहुंची और मजदूरों से उनकी मन की बात जानी. साइकिल से हजारों किलोमीटर का सफर तय करने वाले मजदूरों का कहना है कि लॉक डाउन की वजह से उनकी रोजी-रोटी छिन गई है. जिसकी वजह से मजबूरन अब उन्हे अपने घर की ओर लौटना पड़ रहा है.
घर से पैसे मंगाकर खरीदी साइकिल
दरअसल, मुंबई से उत्तर प्रदेश की ओर जाने वाले सैकड़ों मजदूर इन दिनों नेशनल हाइवे 3 से सफर करते हुए मुंबई से उत्तर प्रदेश की ओर जा रहे है. इसी दौरान नेशनल हाईवे- 3 पर धार जिले के खलघाट में मुंबई में सिलाई और टैक्सी ड्राइवर का काम करने वाले मजदूर साइकिल से उत्तर प्रदेश अपने घर की ओर जा रहे थे. लॉकडाउन के चलते सिलाई और टैक्सी चलाने का काम बंद हो गया. जिससे उनकी रोजी-रोटी छिन गई. थोड़ी बहुत जो आमदनी थी वो भी बंद हो गई. जमा पूंजी मकान मालिक ने भाड़े के रूप में ले लिया और मकान भी खाली करवा लिया, मेट्रो सिटी में सिर पर छत और जेब में पैसा नहीं होने के कारण घर से पैसा मंगाकर साइकिल खरीदी और अब साइकिल से ही मुंबई से अपने घर उत्तर प्रदेश के लिए निकल पड़े हैं. रास्ते में समाजसेवियों ने खाना खिला देते हैं, उन्होने कहा कि लॉक डाउन में मजदूरों को सरकारों की मदद कि खबर समाचारों में तो दिखाई देती हैं लेकिन वो मदद उन्हें नहीं मिल रही है. इसी की वजह से अब वो साइकिल से ही घर जाने को मजबूर हैं.
मुंबई से उत्तर प्रदेश की ओर साइकिल से जाने वाले मजदूर कृष्णा ने बताया कि वो मुंबई से जब सेंधवा में मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र की बॉर्डर पर पहुंचे तो वहां पर मध्यप्रदेश की पुलिस ने उन्हें जाने से रोक दिया और कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार आपको अभी प्रदेश में नहीं आने देना चाहती है. जिसकी वजह से आप यहां से आगे नहीं जा सकते. दो-तीन दिनों तक बॉर्डर पर थोड़ा बहुत खाकर समय बिताया. तीन दिन बाद में घर जाने की बात मनवा कर वहां से आगे बढ़े. रोजाना 60-80 किलोमीटर का सफर तय कर रात में भी साइकिल चलाते हैं. ताकि जल्द से जल्द 15 सौ किलोमीटर का सफर तय कर अपने घर पहुंच सके.
भूखे मरने से अच्छा लड़ कर घर पहुंचे
साइकिल से सफर कर रहे मजदूरों ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से मेट्रो सिटी में भूखे मरने की बजाय, मजबूरियों से लड़ते-झगड़ते घर पहुंच जाना अच्छा है. अगर एक बार घर पहुंच गए, तो वहां पर परिवार वाले दो टाइम का खाना तो मिल जाएगा.