धार। जैविक खेती और वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने वालों के लिए केंचुआ किसान मित्र के रूप में पहचाना जाता है. एक ओर जहां किसान को लॉकडाउन से परेशानियों का समाना करना पड़ रहा था वहीं किसान अब अफ्रीकी केंचुए की मदद से जैविक खेती करके दोगुना मुनाफा कमा सकता है. इसके लिए अफ्रीकन केंचुए की नर्सरी कृषि विज्ञान केंद्र में तैयार की जा रही है. अफ्रीकन केंचुए की मदद से किसान जैविक खाद प्राप्त कर सकते हैं, उसके साथ ही साथ केंचुए बेचकर भी अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं. वहीं जैविक खाद के उपयोग से कृषि भूमि की उर्वरक क्षमता भी बढ़ेगी साथ ही रासायनिक खाद पर किसानों की निर्भरता भी कम होती जाएगी.
कम दिनों में तैयार होती है जैविक खाद
यूरोपियन केंचुए 40 डिग्री तापमान होने के बाद मृत अवस्था में पहुंच जाते हैं और जैविक खाद भी नहीं बना पाते. खाद बनाने की प्रक्रिया 55 से 60 दिनों में पूरी होती है. यूरोपियन केंचुए के मुकाबले अफ्रीकन केंचुआ 40 से 45 डिग्री के तापमान और अधिक नमी में भी आसानी से जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया को जारी रखता है और वह इतने अधिक तापमान में भी जीवित रह सकता है. साथ ही साथ इनके खाद बनाने की प्रक्रिया 45 दिन की रहती है. इस वजह से यूरोपियन केंचुए के मुकाबले जैविक खेती करने वाले किसान अफ्रीकन केंचुए की सहायता से कम समय में खाद तैयार कर अपने खेतों में उसका छिड़काव कर सकते हैं.
अफ्रीकन केंचुए की नर्सरी
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक केएस किराड़ ने बताया कि जिले में जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए कम समय में अधिक तापमान और अधिक नमी में भी जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया को जारी रखने के लिए अफ्रीकन केंचुऐ की नर्सरी तैयार की जा रही है. यह अफ्रीकन केंचुए किसानों के लिए बड़े लाभप्रद हैं.
आफ्रिकन केंचुए की सहायता से 45 दिन के अंदर जैविक खाद आसानी से बनाया जा सकता है, जिससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और वह जैविक खेती भी कर पाएंगे. इसके साथ ही वह अपने खेतों में अफ्रीकन केंचुए कि नर्सरी तैयार कर इसे बाजार में 300 से 500 रुपय प्रति किलो बेच कर, इनसे भी आमदनी कर सकेंगे. आपको बता दें कि यह अफ्रीकन केंचुए सागर विश्वविद्यालय से खरीद कर धार कृषि विज्ञान केंद्र पर लाए जाएंगे और वहां पर नर्सरी बना कर इनकी संख्या को बढ़ाया जाएगा.