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कृषि विज्ञान केंद्र में तैयार किए जा रहे अफ्रीकन केंचुए, कम दिनों में तैयार करते हैं जैविक खाद

जैविक खेती के लिए केंचुए किसान मित्र हैं. अफ्रीकन केंचुए यूरोपियन केंचुए के मुकाबले अधिक तापमान और अधिक नमी में भी जीवित रहते हैं. इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र अफ्रीकन केंचुए की नर्सरी तैयार कर रहा है.

African earthworm
अफ्रीकन केंचुए
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Published : Mar 7, 2020, 8:17 AM IST

धार। जैविक खेती और वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने वालों के लिए केंचुआ किसान मित्र के रूप में पहचाना जाता है. यूरोपियन केंचुआ अधिक तापमान और अधिक नमी में जीवित नहीं रह पाता है, साथ ही अधिक तापमान होने की स्थिति में वह जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया में अधिक समय लगाता है. इस समस्या से निजात पाने के लिए अब जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए अफ्रीकन केंचुए की नर्सरी कृषि विज्ञान केंद्र में तैयार की जा रही है.

अफ्रीकन केंचुए

किसान केंचुए की सहायता से गोबर और कचरे से जैविक खाद बनाते हैं और उसे अपने खेतों में उपयोग कर जैविक खेती करते हैं. जैविक खेती करने के लिए सामान्यतः अभी तक किसान यूरोपियन केंचुए का उपयोग करते आए हैं.

अधिक तापमान और कम दिनों में तैयार होती है जैविक खाद

यूरोपियन केंचुए 40 डिग्री तापमान होने के बाद मृत अवस्था में पहुंच जाते हैं और जैविक खाद भी नहीं बना पाते. खाद बनाने की प्रक्रिया 55 से 60 दिनों में पूरी होती है. यूरोपियन केंचुए के मुकाबले अफ्रीकन केंचुआ 40 से 45 डिग्री के तापमान और अधिक नमी में भी आसानी से जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया को जारी रखता है और वह इतने अधिक तापमान में भी जीवित रह सकता है. साथ ही साथ इनके खाद बनाने की प्रक्रिया 45 दिन की रहती है. इस वजह से यूरोपियन केंचुए के मुकाबले जैविक खेती करने वाले किसान अफ्रीकन केंचुए की सहायता से कम समय में खाद तैयार कर अपने खेतों में उसका छिड़काव कर सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र में अफ्रीकन केंचुए की नर्सरी

कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक केएस किराड़ ने बताया कि जिले में जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए कम समय में अधिक तापमान और अधिक नमी में भी जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया को जारी रखने के लिए अफ्रीकन केंचुऐ की नर्सरी तैयार की जा रही है. यह अफ्रीकन केंचुए किसानों के लिए बड़े लाभप्रद हैं.

आफ्रिकन कहा कि केंचुए की सहायता से 45 दिन के अंदर जैविक खाद आसानी से बनाया जा सकता है, जिससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और वह जैविक खेती भी कर पाएंगे. इसके साथ ही वह अपने खेतों में अफ्रीकन केंचुए कि नर्सरी तैयार कर इसे बाजार में 300 से 500 रुपय प्रति किलो बेच कर, इनसे भी आमदनी कर सकेंगे. आपको बता दें कि यह अफ्रीकन केंचुए सागर विश्वविद्यालय से खरीद कर धार कृषि विज्ञान केंद्र पर लाए जाएंगे और वहां पर नर्सरी बना कर इनकी संख्या को बढ़ाया जाएगा.

धार। जैविक खेती और वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने वालों के लिए केंचुआ किसान मित्र के रूप में पहचाना जाता है. यूरोपियन केंचुआ अधिक तापमान और अधिक नमी में जीवित नहीं रह पाता है, साथ ही अधिक तापमान होने की स्थिति में वह जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया में अधिक समय लगाता है. इस समस्या से निजात पाने के लिए अब जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए अफ्रीकन केंचुए की नर्सरी कृषि विज्ञान केंद्र में तैयार की जा रही है.

अफ्रीकन केंचुए

किसान केंचुए की सहायता से गोबर और कचरे से जैविक खाद बनाते हैं और उसे अपने खेतों में उपयोग कर जैविक खेती करते हैं. जैविक खेती करने के लिए सामान्यतः अभी तक किसान यूरोपियन केंचुए का उपयोग करते आए हैं.

अधिक तापमान और कम दिनों में तैयार होती है जैविक खाद

यूरोपियन केंचुए 40 डिग्री तापमान होने के बाद मृत अवस्था में पहुंच जाते हैं और जैविक खाद भी नहीं बना पाते. खाद बनाने की प्रक्रिया 55 से 60 दिनों में पूरी होती है. यूरोपियन केंचुए के मुकाबले अफ्रीकन केंचुआ 40 से 45 डिग्री के तापमान और अधिक नमी में भी आसानी से जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया को जारी रखता है और वह इतने अधिक तापमान में भी जीवित रह सकता है. साथ ही साथ इनके खाद बनाने की प्रक्रिया 45 दिन की रहती है. इस वजह से यूरोपियन केंचुए के मुकाबले जैविक खेती करने वाले किसान अफ्रीकन केंचुए की सहायता से कम समय में खाद तैयार कर अपने खेतों में उसका छिड़काव कर सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र में अफ्रीकन केंचुए की नर्सरी

कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक केएस किराड़ ने बताया कि जिले में जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए कम समय में अधिक तापमान और अधिक नमी में भी जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया को जारी रखने के लिए अफ्रीकन केंचुऐ की नर्सरी तैयार की जा रही है. यह अफ्रीकन केंचुए किसानों के लिए बड़े लाभप्रद हैं.

आफ्रिकन कहा कि केंचुए की सहायता से 45 दिन के अंदर जैविक खाद आसानी से बनाया जा सकता है, जिससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और वह जैविक खेती भी कर पाएंगे. इसके साथ ही वह अपने खेतों में अफ्रीकन केंचुए कि नर्सरी तैयार कर इसे बाजार में 300 से 500 रुपय प्रति किलो बेच कर, इनसे भी आमदनी कर सकेंगे. आपको बता दें कि यह अफ्रीकन केंचुए सागर विश्वविद्यालय से खरीद कर धार कृषि विज्ञान केंद्र पर लाए जाएंगे और वहां पर नर्सरी बना कर इनकी संख्या को बढ़ाया जाएगा.

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