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नेहरू से वाजपेयी तक मुसीबत में हर शासक दौड़ा आया राजसत्ता की देवी के द्वार, अनूठी है पीतांबरा शक्तिपीठ की मान्यता - दतिया

दतिया जिले में आने वाला पीतांबरा शक्तिपीठ मंदिर देश का ऐसा मंदिर है जहां सभी बड़े राजनेता यहां पूजन करने आते है. क्योंकि इस मंदिर को राजसत्ता की देवी का मंदिर कहा जाता है.

पीतांबरा मंदिर
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Published : Mar 21, 2019, 10:47 AM IST

Updated : Mar 21, 2019, 11:20 AM IST

दतिया। दतिया का पीतांबरा शक्तिपीठ ऐसा मंदिर है, जहां देश की बड़ी से बड़ी ताकतें नतमस्तक हो जाती हैं. यहां स्थिति मां बगुलामुखी को राजसत्ता की देवी कहा जाता है. यही वजह है कि जब देश के किसी भी नेता को कुर्सी की चिंता सताती है तो वह मां के दर्शन करने चला आता है.

खास बात ये कि देश पर जब भी कोई संकट आता है तो सत्ताधारी दल के नेता भी मां के दर पर मत्था टेकना नहीं भूलते. कहा तो ये भी जाता है कि भारत-चीन युद्ध के वक्त देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी मां बगुलामुखी की शरण में पहुंचे थे. इसी तरह कारगिल युद्ध के वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी देश को बचाने के लिए मां बगुलामुखी के दर पर पहुंचे थे.

1962 के भारत-चीन युद्ध के वक्त जवाहर लाल नेहरु ने युद्ध को रोकने के लिये यहां 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था. कहते हैं कि यज्ञ के 11वें दिन चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं. इस यज्ञ के दौरान बनवाई गयी यज्ञशालाएं आज भी पीतांबरा मंदिर में मौजूद हैं. वहीं कारगिल युद्ध के वक्त अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान पर जीत हासिल करने की मुराद लेकर मां के दरबार में गुप्त अनुष्ठान कराया था.

वीडियो

युद्ध में जीत के अलावा अपने विरोधी दल को मात देने की ख्वाहिश लिए तो कई नेता मां के दरबार में आते हैं. मध्यप्रदेश की बात की जाए तो कमलनाथ से लेकर शिवराजसिंह चौहान तक सभी नेता हर साल मां पीतांबरा के दर पर जरूर जाते हैं. प्रदेश का सबसे रसूखदार राजनीतिक परिवार कहे जाने वाले सिंधिया राजघराने की तो इस मंदिर पर गहरी आस्था है. सिंधिया परिवार इस मंदिर का ट्रस्टी भी है. यही वजह है कि परिवार के सभी सदस्य मां के दर्शन करने पहुंचते रहते हैं. खासकर चुनावी दौर में पीतांबरा शक्तिपीठ पर नेताओं का जमावड़ा लग जाता है, क्योंकि मान्यता है कि जिसके सिर राजसत्ता की देवी का आशीर्वाद हो उसे सत्ता का शिखर छूने से कोई नहीं रोक सकता.

दतिया। दतिया का पीतांबरा शक्तिपीठ ऐसा मंदिर है, जहां देश की बड़ी से बड़ी ताकतें नतमस्तक हो जाती हैं. यहां स्थिति मां बगुलामुखी को राजसत्ता की देवी कहा जाता है. यही वजह है कि जब देश के किसी भी नेता को कुर्सी की चिंता सताती है तो वह मां के दर्शन करने चला आता है.

खास बात ये कि देश पर जब भी कोई संकट आता है तो सत्ताधारी दल के नेता भी मां के दर पर मत्था टेकना नहीं भूलते. कहा तो ये भी जाता है कि भारत-चीन युद्ध के वक्त देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी मां बगुलामुखी की शरण में पहुंचे थे. इसी तरह कारगिल युद्ध के वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी देश को बचाने के लिए मां बगुलामुखी के दर पर पहुंचे थे.

1962 के भारत-चीन युद्ध के वक्त जवाहर लाल नेहरु ने युद्ध को रोकने के लिये यहां 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था. कहते हैं कि यज्ञ के 11वें दिन चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं. इस यज्ञ के दौरान बनवाई गयी यज्ञशालाएं आज भी पीतांबरा मंदिर में मौजूद हैं. वहीं कारगिल युद्ध के वक्त अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान पर जीत हासिल करने की मुराद लेकर मां के दरबार में गुप्त अनुष्ठान कराया था.

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युद्ध में जीत के अलावा अपने विरोधी दल को मात देने की ख्वाहिश लिए तो कई नेता मां के दरबार में आते हैं. मध्यप्रदेश की बात की जाए तो कमलनाथ से लेकर शिवराजसिंह चौहान तक सभी नेता हर साल मां पीतांबरा के दर पर जरूर जाते हैं. प्रदेश का सबसे रसूखदार राजनीतिक परिवार कहे जाने वाले सिंधिया राजघराने की तो इस मंदिर पर गहरी आस्था है. सिंधिया परिवार इस मंदिर का ट्रस्टी भी है. यही वजह है कि परिवार के सभी सदस्य मां के दर्शन करने पहुंचते रहते हैं. खासकर चुनावी दौर में पीतांबरा शक्तिपीठ पर नेताओं का जमावड़ा लग जाता है, क्योंकि मान्यता है कि जिसके सिर राजसत्ता की देवी का आशीर्वाद हो उसे सत्ता का शिखर छूने से कोई नहीं रोक सकता.

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नेहरू से वाजपेयी तक मुसीबत में हर शासक दौड़ा चला आया राजसत्ता की देवी के द्वार, अनूठी है पीतांबरा शक्तिपीठ की मान्यता

story of pitambra shaktipeeth in datia





दतिया। दतिया का पीतांबरा शक्तिपीठ ऐसा मंदिर है, जहां देश की बड़ी से बड़ी ताकतें नतमस्तक हो जाती हैं. यहां स्थिति मां बगुलामुखी को राजसत्ता की देवी कहा जाता है. यही वजह है कि जब देश के किसी भी नेता को कुर्सी की चिंता सताती है तो वह मां के दर्शन करने चला आता है.



खास बात ये कि देश पर जब भी कोई संकट आता है तो सत्ताधारी दल के नेता भी मां के दर पर मत्था टेकना नहीं भूलते. कहा तो ये भी जाता है कि भारत-चीन युद्ध के वक्त देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी मां बगुलामुखी की शरण में पहुंचे थे. इसी तरह कारगिल युद्ध के वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी देश को बचाने के लिए मां बगुलामुखी के दर पर पहुंचे थे.



1962 के भारत-चीन युद्ध के वक्त जवाहर लाल नेहरु ने युद्ध को रोकने के लिये यहां 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था. कहते हैं कि यज्ञ के 11वें दिन चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं. इस यज्ञ के दौरान बनवाई गयी यज्ञशालाएं आज भी पीतांबरा मंदिर में मौजूद हैं. वहीं कारगिल युद्ध के वक्त अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान पर जीत हासिल करने की मुराद लेकर मां के दरबार में गुप्त अनुष्ठान कराया था.



युद्ध में जीत के अलावा अपने विरोधी दल को मात देने की ख्वाहिश लिए तो कई नेता मां के दरबार में आते हैं. मध्यप्रदेश की बात की जाए तो कमलनाथ से लेकर शिवराजसिंह चौहान तक सभी नेता हर साल मां पीतांबरा के दर पर जरूर जाते हैं. प्रदेश का सबसे रसूखदार राजनीतिक परिवार कहे जाने वाले सिंधिया राजघराने की तो इस मंदिर पर गहरी आस्था है. सिंधिया परिवार इस मंदिर का ट्रस्टी भी है. यही वजह है कि परिवार के सभी सदस्य मां के दर्शन करने पहुंचते रहते हैं. खासकर चुनावी दौर में पीतांबरा शक्तिपीठ पर नेताओं का जमावड़ा लग जाता है, क्योंकि मान्यता है कि जिसके सिर राजसत्ता की देवी का आशीर्वाद हो उसे सत्ता का शिखर छूने से कोई नहीं रोक सकता.


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Last Updated : Mar 21, 2019, 11:20 AM IST
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