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500 साल पुराने इतिहास को समेटे है ये शिवमंदिर, अंग्रेजी हुकूमत के समय से लगता आ रहा आस्था का मेला

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Published : Jan 27, 2020, 12:41 PM IST

Updated : Jan 28, 2020, 7:31 AM IST

बुंदेलखंड में ज्यादा समय तक कलचुरी राजवंश का शासन रहा है. दमोह जिले के हरदुआ गांव के पास व्यारमा नदी के किनारे खर्राघाट धाम है, जहां करीब 200 सालों से आस्था का मेला लगता आ रहा है. देखिए इस मंदिर और मेले की क्या है खूबसूरती.

Fair of faith
आस्था का मेला

दमोह। जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर व्यारमा नदी के किनारे खर्राघाट धाम बसा हुआ है, यहां भगवान नागेश्वर शिव के नाम से मशहूर शिवालय बना हुआ है, जो अपने आप में करीब 500 साल के इतिहास को समेटे हुए है. हर साल यहां आस्था का मेला लगता है जो 200 साल से भी पुराना हो चुका है. यहां लोग भगवान शिव नागेश्वर नाथ के द्वार पर अपनी मन्नत को लेकर आते हैं.

आस्था का मेला

पूरे बुंदेलखंड में खर्राघाट धाम अपनी पहचान का मोहताज नहीं है. यहां का मेला अपने आप में एक अलग छाप छोड़ता है. यहां लोगों की मान्याताएं दिलों से जुड़ी हुई होती हैं. खर्राघाट की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आसपास के गांव के लोग अपने गांव के साथ खर्राघाट का नाम जोड़ते हैं, ताकि उनके गांव की पहचान खर्राघाट के नाम से बन जाए. खर्राघाट में मकर संक्रांति से हर साल करीब 15 दिनों का मेला लगता है, जिसमें माना जाता है कि यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मन्नत पूरी होती है.

खर्राघाट मंदिर का इतिहास

यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है. जो शिवलिंग इस मंदिर में स्थापित है, वह काफी प्राचीन है. हरदुआ गांव के रहने वाले इतिहास के जानकार और मंदिर के संरक्षक सदस्य भूप सिंह ने बताया कि बुंदेलखंड के प्राचीन मंदिरों में से खर्राघाट का मंदिर भी एक है, जिसने दमोह की पुरातन संपदा को सहेज कर रखा है. इस मंदिर को कलचुरी राजवंश की रानी ने बनवाया था, लेकिन मुगलों के समय यह क्षतिग्रस्त हो गया. बाद में इस मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार किया गया. इस मंदिर का अब तक 3 बार पुनर्निर्माण कराया गया है.

मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर जब सवाल उठने लगे तो प्रदेश के तत्कालीन मंत्री रत्नेश सालोमन ने उज्जैन से पुरातत्व के विशेषज्ञों को बुलवाया, जो उन्होंने जांच के बाद इस मूर्ति को 500 साल पुराना बताया.

मेले की खासियत

मेले में कई तरह की दुकानें लगती हैं, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र होती हैं. यहां खाने-पीने से लेकर घर के सामान, कपड़े, गहने, बर्तनों की दुकानें लगती हैं, वहीं झूले, मौत का कुआं भी लोगों को खूब लुभाती हैं.
मेले में आयोजक साफ-सफाई, पीने के पानी, लाइट से लेकर सुरक्षा का पूरा इंतजाम करते हैं.

चमत्कारिक शिवलिंग

लोग खर्राघाट के मंदिर में स्थित शिवलिंग को चमत्कारिक मानते हैं. मंदिर कमेटी के सदस्य दशरथ सिंह बताते हैं कि इस शिवलिंग का आकार लगातार बढ़ रहा है. उनका कहना है कि भगवान के लिए बनवाए जाने वाले वस्त्र हर साल छोटे होते जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि जो मुकुट स्थापना के समय बनवाया गया था, आज वह मुकुट भगवान को छोटा होता है. इस कारण मुकुट शिवलिंग को नहीं पहनाया जा सकता.

दमोह। जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर व्यारमा नदी के किनारे खर्राघाट धाम बसा हुआ है, यहां भगवान नागेश्वर शिव के नाम से मशहूर शिवालय बना हुआ है, जो अपने आप में करीब 500 साल के इतिहास को समेटे हुए है. हर साल यहां आस्था का मेला लगता है जो 200 साल से भी पुराना हो चुका है. यहां लोग भगवान शिव नागेश्वर नाथ के द्वार पर अपनी मन्नत को लेकर आते हैं.

आस्था का मेला

पूरे बुंदेलखंड में खर्राघाट धाम अपनी पहचान का मोहताज नहीं है. यहां का मेला अपने आप में एक अलग छाप छोड़ता है. यहां लोगों की मान्याताएं दिलों से जुड़ी हुई होती हैं. खर्राघाट की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आसपास के गांव के लोग अपने गांव के साथ खर्राघाट का नाम जोड़ते हैं, ताकि उनके गांव की पहचान खर्राघाट के नाम से बन जाए. खर्राघाट में मकर संक्रांति से हर साल करीब 15 दिनों का मेला लगता है, जिसमें माना जाता है कि यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मन्नत पूरी होती है.

खर्राघाट मंदिर का इतिहास

यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है. जो शिवलिंग इस मंदिर में स्थापित है, वह काफी प्राचीन है. हरदुआ गांव के रहने वाले इतिहास के जानकार और मंदिर के संरक्षक सदस्य भूप सिंह ने बताया कि बुंदेलखंड के प्राचीन मंदिरों में से खर्राघाट का मंदिर भी एक है, जिसने दमोह की पुरातन संपदा को सहेज कर रखा है. इस मंदिर को कलचुरी राजवंश की रानी ने बनवाया था, लेकिन मुगलों के समय यह क्षतिग्रस्त हो गया. बाद में इस मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार किया गया. इस मंदिर का अब तक 3 बार पुनर्निर्माण कराया गया है.

मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर जब सवाल उठने लगे तो प्रदेश के तत्कालीन मंत्री रत्नेश सालोमन ने उज्जैन से पुरातत्व के विशेषज्ञों को बुलवाया, जो उन्होंने जांच के बाद इस मूर्ति को 500 साल पुराना बताया.

मेले की खासियत

मेले में कई तरह की दुकानें लगती हैं, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र होती हैं. यहां खाने-पीने से लेकर घर के सामान, कपड़े, गहने, बर्तनों की दुकानें लगती हैं, वहीं झूले, मौत का कुआं भी लोगों को खूब लुभाती हैं.
मेले में आयोजक साफ-सफाई, पीने के पानी, लाइट से लेकर सुरक्षा का पूरा इंतजाम करते हैं.

चमत्कारिक शिवलिंग

लोग खर्राघाट के मंदिर में स्थित शिवलिंग को चमत्कारिक मानते हैं. मंदिर कमेटी के सदस्य दशरथ सिंह बताते हैं कि इस शिवलिंग का आकार लगातार बढ़ रहा है. उनका कहना है कि भगवान के लिए बनवाए जाने वाले वस्त्र हर साल छोटे होते जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि जो मुकुट स्थापना के समय बनवाया गया था, आज वह मुकुट भगवान को छोटा होता है. इस कारण मुकुट शिवलिंग को नहीं पहनाया जा सकता.

Intro:दमोह जिले के खर्रा घाट में है प्राचीन शिवालय, 500 साल पुराना है इस मंदिर का इतिहास

तीन बार गिरने के बाद बार बार हुआ है इस मंदिर का निर्माण

Anchor. दमोह जिला मुख्यालय से करीब 33 किलोमीटर दूर नदी के किनारे खर्रा घाट ग्राम में बना भगवान शिव का शिवालय अपने आप में करीब 500 साल के इतिहास को समेटे हुए हैं. जानकारों की माने तो तीन बार यह शिवालय ध्वस्त हुआ और तीनों बार ही स्थानीय लोगों के द्वारा इस शिवालय का निर्माण कराया गया. यह शिवालय आसपास के क्षेत्रों से आने वाले लोगों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है.


Body:Vo. जिले के खर्रा घाट में नदी के विशाल मुहाने पर बना यह शिवालय दमोह जिले के अन्य शिवालयों के समकालीन माना जाता है स्थानीय लोग यह बताते हैं कि यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है जो शिवलिंग इस मंदिर में स्थापित है वह इस मंदिर के प्राचीन होने की गाथा अपने आप में बयां करता है. भले ही वास्तु कला के हिसाब से यह मंदिर नवीन वक्त का लगता है. लेकिन यहां के स्थानीय जानकारों की बात माने तो यह मंदिर जिले के उन प्राचीन शिवालयों में से ही था जो आज दमोह जिले की पुरातन संपदा को सहेज कर रखे हैं. दरअसल दमोह के अन्य शिवालयों की तरह ही यह शिवालय भी वक्त के थपेड़े खाकर होकर नष्ट हो गया था. लेकिन इस मंदिर के आसपास रहने वाले धनाढ्य लोगों ने इस मंदिर का तीन बार पुनर्निर्माण कराया है. ऐसे में उन पूर्वजों के द्वारा कराए गए मंदिर निर्माण के दौरान पुराने पत्थरों का प्रयोग न करते हुए नवीन पद्धति का इस्तेमाल किया गया. जिस वजह से यह मंदिर बाहर से नवीन दिखता है. हरदुआ में रहने वाले बुजुर्ग बताते हैं कि यह मंदिर उतना ही पुराना है जितना पुराना दमोह के अन्य शिवालयों का इतिहास है. वही यहां पीढ़ियों से पूजा करने वाले पंडित जी का कहना है कि यह शिवलिंग अन्य शिवलिंग से भी पुरातन और महत्त्व वाला है. अन्य स्थानीय लोग बताते हैं कि इस शिवलिंग का आकार लगातार बढ़ रहा है. क्योंकि भगवान के लिए बनवाए जाने वाले वस्त्र हर साल छोटे पड़ जाते हैं भगवान का पुराना मुकुट अब उन्हें पहनाने में छोटा पड़ने लगा है. इस मंदिर की परिक्रमा के पीछे हाथे लगाए जाने की परंपरा है. साथ ही मनौती का नारियल बांधने की भी परंपरा सदियों से जारी है.

बाइट दाऊजी स्थानीय जानकार बुजुर्ग

बाइट पंडित जी मंदिर

बाइट कमेटी सदस्य


Conclusion:Vo. दमोह जिला अपनी पुरातन संपदा के लिए जाना जाता है. यही कारण है कि दमोह में अनेक ऐसे शिवालय हैं, जो 400 से 500 वर्ष पुराने भी है. यहां की पुरा संपदा और धर्म परंपरा हमारी संस्कृति और सभ्यता को सिद्ध करने के लिए काफी है. यहां पर आस्था के मेले भी भरते हैं, तो लोग इन मेलों में आकर अपनी आस्था भी प्रकट करते हैं. खर्रा घाट के किनारे लगने वाला मेला भी इसी आस्था और विश्वास का प्रतीक है. जो मेला दमोह जिले का सबसे बड़ा संक्रांति का मेला माना जाता है.

आशीष कुमार जैन
ईटीवी भारत मध्य प्रदेश
Last Updated : Jan 28, 2020, 7:31 AM IST
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