दमोह। जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर व्यारमा नदी के किनारे खर्राघाट धाम बसा हुआ है, यहां भगवान नागेश्वर शिव के नाम से मशहूर शिवालय बना हुआ है, जो अपने आप में करीब 500 साल के इतिहास को समेटे हुए है. हर साल यहां आस्था का मेला लगता है जो 200 साल से भी पुराना हो चुका है. यहां लोग भगवान शिव नागेश्वर नाथ के द्वार पर अपनी मन्नत को लेकर आते हैं.
पूरे बुंदेलखंड में खर्राघाट धाम अपनी पहचान का मोहताज नहीं है. यहां का मेला अपने आप में एक अलग छाप छोड़ता है. यहां लोगों की मान्याताएं दिलों से जुड़ी हुई होती हैं. खर्राघाट की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आसपास के गांव के लोग अपने गांव के साथ खर्राघाट का नाम जोड़ते हैं, ताकि उनके गांव की पहचान खर्राघाट के नाम से बन जाए. खर्राघाट में मकर संक्रांति से हर साल करीब 15 दिनों का मेला लगता है, जिसमें माना जाता है कि यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मन्नत पूरी होती है.
खर्राघाट मंदिर का इतिहास
यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है. जो शिवलिंग इस मंदिर में स्थापित है, वह काफी प्राचीन है. हरदुआ गांव के रहने वाले इतिहास के जानकार और मंदिर के संरक्षक सदस्य भूप सिंह ने बताया कि बुंदेलखंड के प्राचीन मंदिरों में से खर्राघाट का मंदिर भी एक है, जिसने दमोह की पुरातन संपदा को सहेज कर रखा है. इस मंदिर को कलचुरी राजवंश की रानी ने बनवाया था, लेकिन मुगलों के समय यह क्षतिग्रस्त हो गया. बाद में इस मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार किया गया. इस मंदिर का अब तक 3 बार पुनर्निर्माण कराया गया है.
मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर जब सवाल उठने लगे तो प्रदेश के तत्कालीन मंत्री रत्नेश सालोमन ने उज्जैन से पुरातत्व के विशेषज्ञों को बुलवाया, जो उन्होंने जांच के बाद इस मूर्ति को 500 साल पुराना बताया.
मेले की खासियत
मेले में कई तरह की दुकानें लगती हैं, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र होती हैं. यहां खाने-पीने से लेकर घर के सामान, कपड़े, गहने, बर्तनों की दुकानें लगती हैं, वहीं झूले, मौत का कुआं भी लोगों को खूब लुभाती हैं.
मेले में आयोजक साफ-सफाई, पीने के पानी, लाइट से लेकर सुरक्षा का पूरा इंतजाम करते हैं.
चमत्कारिक शिवलिंग
लोग खर्राघाट के मंदिर में स्थित शिवलिंग को चमत्कारिक मानते हैं. मंदिर कमेटी के सदस्य दशरथ सिंह बताते हैं कि इस शिवलिंग का आकार लगातार बढ़ रहा है. उनका कहना है कि भगवान के लिए बनवाए जाने वाले वस्त्र हर साल छोटे होते जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि जो मुकुट स्थापना के समय बनवाया गया था, आज वह मुकुट भगवान को छोटा होता है. इस कारण मुकुट शिवलिंग को नहीं पहनाया जा सकता.