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300 साल पहले हुआ था इस मंदिर का निर्माण, जहां विराजे है स्वयभूं भोलेनाथ - बांदकपुर का जागेश्वर मंदिर

दमोह जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर सनातन परंपरा का एक अनोखा मंदिर है, ये मंदिर शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है. सैकड़ों सालों से इस मंदिर में भक्त भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करते आ रहे हैं. महाशिवरात्रि पर इस मंदिर में विशेष पूजा की जाती है.

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बांदकपुर के महादेव
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Published : Feb 20, 2020, 7:39 PM IST

दमोह। ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए भगवान शंकर के दर्शन के लिए लगी भक्तों की भीड़ का ये नजारा दमोह जिले के बांदकपुर धाम का है, जहां जागेश्वर नाथ के नाम से विराजे शिवलिंग को स्थानीय लोग देश का तेरहवां ज्योर्तिलिंग भी मानते हैं. यहां महाशिवरात्रि के दिन आस्था का सैलाब उमड़ता है.

बांदकपुर के जागेश्वर नाथ

ईटीवी भारत आज आपको भगवान जागेश्वर की महिमा बता रहा है, जिनके चमत्कार की कहानी यहां पीढ़ियों से सुनी जा रहा रही हैं. मान्यता है कि भगवान शिव का ये शिवलिंग स्यंभू है, जो जमीन से प्रकट हुआ था. कहा जाता है कि भगवान शिव का ये शिवलिंग हर साल तिल के एक दाने के बराबर बढ़ता है.

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जागेश्वर नाथ

स्थानीय लोग बताते हैं कि सन 1711 में दीवान बालाजी राव चांदोरकर कहीं यात्रा पर जा रहे थे. रात्रि विश्राम के लिए वे यहां रुके तो भगवान शिव ने स्वप्न में आकर उन्हें बताया कि जहां उनका घोड़ा बंधा है, वहां शिवलिंग है, दीवान बालाजी राव ने उस स्थान पर खुदाई कराई तो शिवलिंग प्रकट हो गया. करीब 40 फीट तक खुदाई कराने के बाद भी जब शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिला, तब बालाजी राव ने उसी स्थान पर भगवान शंकर के इस मंदिर का निर्माण करवा दिया.

300 सालों से भगवान जागेश्वर का ये मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है, कहा जाता है कि मंदिर की दीवार पर अगर कोई भक्त उल्टे हाथों के निशान बनाता है तो उसकी मनोकामनाएं जरुर पूरी होती हैं, मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त हाथों के उल्टे निशान पर फिर सीधे निशान बनाकर यहां पूजा कराते हैं, जिसका रिकॉर्ड भी मंदिर में रखा जाता है.

अनादिकाल से बने इस मंदिर की ख्याति पूरे भारत वर्ष में है. इसलिए चारों धाम की तीर्थ यात्रा करने के बाद भी अगर भक्त मां नर्मदा के जल से भगवान जागेश्वर नाथ का अभिषेक नहीं करते तो उनकी यात्रा अधूरी मानी जाती है, यही वजह है कि इस शिवलिंग को देश के 13वें ज्योतिर्लिंग का दर्जा प्राप्त है, ऐसे में भक्त एक बार भगवान जागेश्वर नाथ के दर्शन करने जरुर पहुंचते हैं.

दमोह। ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए भगवान शंकर के दर्शन के लिए लगी भक्तों की भीड़ का ये नजारा दमोह जिले के बांदकपुर धाम का है, जहां जागेश्वर नाथ के नाम से विराजे शिवलिंग को स्थानीय लोग देश का तेरहवां ज्योर्तिलिंग भी मानते हैं. यहां महाशिवरात्रि के दिन आस्था का सैलाब उमड़ता है.

बांदकपुर के जागेश्वर नाथ

ईटीवी भारत आज आपको भगवान जागेश्वर की महिमा बता रहा है, जिनके चमत्कार की कहानी यहां पीढ़ियों से सुनी जा रहा रही हैं. मान्यता है कि भगवान शिव का ये शिवलिंग स्यंभू है, जो जमीन से प्रकट हुआ था. कहा जाता है कि भगवान शिव का ये शिवलिंग हर साल तिल के एक दाने के बराबर बढ़ता है.

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स्थानीय लोग बताते हैं कि सन 1711 में दीवान बालाजी राव चांदोरकर कहीं यात्रा पर जा रहे थे. रात्रि विश्राम के लिए वे यहां रुके तो भगवान शिव ने स्वप्न में आकर उन्हें बताया कि जहां उनका घोड़ा बंधा है, वहां शिवलिंग है, दीवान बालाजी राव ने उस स्थान पर खुदाई कराई तो शिवलिंग प्रकट हो गया. करीब 40 फीट तक खुदाई कराने के बाद भी जब शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिला, तब बालाजी राव ने उसी स्थान पर भगवान शंकर के इस मंदिर का निर्माण करवा दिया.

300 सालों से भगवान जागेश्वर का ये मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है, कहा जाता है कि मंदिर की दीवार पर अगर कोई भक्त उल्टे हाथों के निशान बनाता है तो उसकी मनोकामनाएं जरुर पूरी होती हैं, मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त हाथों के उल्टे निशान पर फिर सीधे निशान बनाकर यहां पूजा कराते हैं, जिसका रिकॉर्ड भी मंदिर में रखा जाता है.

अनादिकाल से बने इस मंदिर की ख्याति पूरे भारत वर्ष में है. इसलिए चारों धाम की तीर्थ यात्रा करने के बाद भी अगर भक्त मां नर्मदा के जल से भगवान जागेश्वर नाथ का अभिषेक नहीं करते तो उनकी यात्रा अधूरी मानी जाती है, यही वजह है कि इस शिवलिंग को देश के 13वें ज्योतिर्लिंग का दर्जा प्राप्त है, ऐसे में भक्त एक बार भगवान जागेश्वर नाथ के दर्शन करने जरुर पहुंचते हैं.

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