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सरपंच-सचिव की मनमानी से ग्रामीणों से दूर होती सरकारी योजनाएं

सरपंच-सचिव की मनमानी के चलते भ्रष्टाचार चरम पर है, ग्रामीण शासन की योजनाओं से काफी दूर है. ग्राम पंचायतों में सरपंच सचिव की लापरवाही के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं, इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.

Sarpanch Secretary's negligence in damoh
सरपंच सचिव की लापरवाही
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Published : Aug 13, 2020, 5:52 PM IST

दमोह। पथरिया मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर मेहलवार पंचायत के पीपरखिरिया गांव में सरपंच-सचिव की मिलीभगत से भ्रष्टाचार और लापरवाहियां चरम पर हैं, बात चाहे स्वच्छता मिशन के तहत बनने वाले शौचालय की हो या आवास योजना के तहत हर बेघर को घर देने की. नल जल योजना से लेकर पेंशन व्यवस्था सहित सभी मूलभूत सुविधाएं जोकि ग्रामीणों को हाथो-हाथ उपलब्ध हो जानी चाहिए, सरपंच सचिव की लापरवाह नीति और अनियमितताओं के कारण जनता से कोसों दूर है.

मामला 2017 में अनुसूचित जाति एवं जनजाति विभाग के सामुदायिक भवन निर्माण का है, जिसे तीन साल पहले शासन ने पंचायत के लिए मंजूर किया था. इसकी लागत राशि दस लाख रुपए थी, लेकिन आज तक सामुदायिक भवन निर्माण का कार्य अधूरा पड़ा है. इसके निर्माण में भी घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि ये कार्य अधिकारियों की देखरेख में होता है, इसके बावजूद ग्रामीणों के साथ सरपंच, सरपंच सचिव मनमानी कर रहे हैं.

ग्रामीणों का कहना है कि सरपंच केराबाई ठाकुर और सचिव शिवकुमार पटेल अपने निजी खर्चे के लिए भ्रष्टाचार का तरीका अपनाते हैं. जिसके लिए उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. भवन निर्माण करने वाले कारीगरों ने बताया कि जैसा सामान मिलता है वैसा ही लगाते हैं. काली रेत जोकि प्रशासन ने सभी शासकीय कार्यों के लिए वर्जित किया है, इसका इस्तेमाल इस काम में किया जा रहा है. भवन में कम गुणवत्ता वाली रेत और सफेद गिट्टी, पत्थर, कमजोर ईट लगाई जा रही है. जिसके चलते जो कार्य हुआ है, वह अपनी क्षमता खोता दिखाई दे रहा है. मुख्य कार्यपालन अधिकारी आशीष अग्रवाल ने जांच कराने की बात कही है.

दमोह। पथरिया मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर मेहलवार पंचायत के पीपरखिरिया गांव में सरपंच-सचिव की मिलीभगत से भ्रष्टाचार और लापरवाहियां चरम पर हैं, बात चाहे स्वच्छता मिशन के तहत बनने वाले शौचालय की हो या आवास योजना के तहत हर बेघर को घर देने की. नल जल योजना से लेकर पेंशन व्यवस्था सहित सभी मूलभूत सुविधाएं जोकि ग्रामीणों को हाथो-हाथ उपलब्ध हो जानी चाहिए, सरपंच सचिव की लापरवाह नीति और अनियमितताओं के कारण जनता से कोसों दूर है.

मामला 2017 में अनुसूचित जाति एवं जनजाति विभाग के सामुदायिक भवन निर्माण का है, जिसे तीन साल पहले शासन ने पंचायत के लिए मंजूर किया था. इसकी लागत राशि दस लाख रुपए थी, लेकिन आज तक सामुदायिक भवन निर्माण का कार्य अधूरा पड़ा है. इसके निर्माण में भी घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि ये कार्य अधिकारियों की देखरेख में होता है, इसके बावजूद ग्रामीणों के साथ सरपंच, सरपंच सचिव मनमानी कर रहे हैं.

ग्रामीणों का कहना है कि सरपंच केराबाई ठाकुर और सचिव शिवकुमार पटेल अपने निजी खर्चे के लिए भ्रष्टाचार का तरीका अपनाते हैं. जिसके लिए उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. भवन निर्माण करने वाले कारीगरों ने बताया कि जैसा सामान मिलता है वैसा ही लगाते हैं. काली रेत जोकि प्रशासन ने सभी शासकीय कार्यों के लिए वर्जित किया है, इसका इस्तेमाल इस काम में किया जा रहा है. भवन में कम गुणवत्ता वाली रेत और सफेद गिट्टी, पत्थर, कमजोर ईट लगाई जा रही है. जिसके चलते जो कार्य हुआ है, वह अपनी क्षमता खोता दिखाई दे रहा है. मुख्य कार्यपालन अधिकारी आशीष अग्रवाल ने जांच कराने की बात कही है.

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