दमोह। सोशल मीडिया जहां एक तरफ भ्रामक जानकारियां फैलाने के लिए बदनाम है, वहीं कई बार यह लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो जाती है. ऐसा कुछ मामला दमोह में रह रही एक महिला के साथ हुआ, जिसे सोशल मीडिया के जरिए अपना परिवार मिल गया है. जिले के एक गांव में करीब 43 साल से एक महिला परिवार के सदस्य की तरह रह रही थी. इस महिला का परिवार कहीं और था. महिला 43 साल पहले अनजाने में दमोह पहुंच गई थी, जहां एक मुस्लिम परिवार ने इस महिला को अपने घर में शरण दी थी. तभी से अब तक वह परिवार के सदस्य की तरह यही रह रही थी. अब इस महिला को सोशल मीडिया के माध्यम से अपना परिवार मिल गया है. जिसके बाद बुजुर्ग महिला के पोते ने दमोह पहुंचकर अपनी दादी को घर आने निवेदन किया, तो दादी भी घर जाने तैयार हो गई.
पंचू बाई नाम की महिला महाराष्ट्र के अमरावती जिले की है, जो 45 साल पहले दमोह के पास के जंगलों में नूर खान को मधुमक्खियों के हमले से घायल पड़ी हुई मिली थी. नूर खान एक ट्रक ड्राइवर थे, वे बुजुर्ग महिला को अपने घर लेकर आ गए. जहां पर उन्हें अपने एक परिवार के सदस्य की तरह शरण दी. वहीं नूर खान के परिवार में उनके बेटे इसरार खान ने भी उन्हें अपनी मौसी के रूप में माना और गांव के लोग भी उन्हें मौसी ही पुकारते थे. इसरार खान ने लॉकडाउन के दिनों में अपनी मौसी के परिजनों का पता लगाने की कोशिश शुरू की और फिर क्या था, विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से वीडियो शेयर करते हुए उनकी तलाश की. जिसके बाद वो वीडियो पंचू बाई के पोते पृथ्वी कुमार शिंदे तक पहुंच गया. फिर क्या था अमरावती जिले के खानम नगर की रहने वाली महिला पंचू बाई करीब 43 साल बाद अपने गांव परिवार के पास पहुंच गईं.
पृथ्वी कुमार शिंदे अपनी पत्नी के साथ अपनी दादी को लेने के लिए दमोह के कोटा ताला गांव पहुंच गए. जहां वे मुस्लिम परिवार से भी मिले और उन्होंने दादी को घर चलने के लिए निवेदन किया. मुस्लिम परिवार की सहमति के बाद पंचू बाई 43 साल पुराना अपना ये परिवार छोड़कर अपने असली परिवार के साथ नागपुर रवाना हो गईं.