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मक्के की फसल पर फॉल आर्मीवर्म का खतरा, कृषि वैज्ञानिक ने बचाव के लिए दिए अहम सुझाव

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Published : Jun 22, 2020, 3:04 AM IST

बंपर मक्का उत्पादन के चलते जिले की पहचान कार्न सिटी के तौर पर हो चुकी है, यही नहीं बीते दो सालों से जिले में कार्न फेस्टिवल का आयोजन भी धूमधाम से किया गया, लेकिन इस साल इस पहचान पर संकट दिखाई दे रहा है, क्योंकि इस बार फसल पर आर्मीवर्म का खतरा बढ़ गया है, ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने इससे फसलों को बचाने के लिए अहम सुझाव दिए हैं. पढ़िए पूरी खबर...

Threat of armyworm on crop
फसल पर आर्मीवर्म का खतरा

छिंदवाड़ा । जिले को कॉर्न सिटी का तमगा मिला हुआ है, वहीं किसान अब मक्का फसल की बुवाई करने लगा है. मक्के के पौधों में अंकुरण भी होने लगा है, लेकिन इस पर फॉल आर्मीवर्म का खतरा मंडरा रहा है. जिले में अब तक करीब 7 इंच से ज्यादा बारिश हो चुकी है. खेतों में नमीं देखकर किसान अब खेत जोतने में जुट गया है. हालांकि पिछले साल मक्के में फॉल आर्मीवर्म का प्रकोप और कम दाने से इस साल मक्के को रखने में कमी आई है. कुछ किसानों ने मक्का की बोनी जून के पहले पखवाड़े में ही कर दी है, इसके बाद खेतों में अब फॉल आर्मीवर्म के लक्षण नजर आने लगे हैं.

मक्के की फसल पर फॉल आर्मीवर्म का खतरा

बारीक इल्लियां अंकुरित पौधों को खाने लगी हैं. जिले में पिछले साल करीब 2 लाख 98 हजार हेक्टेयर में मक्के की बोनी की गई थी. इस साल इसका रखवा करीब 35 से 45 फीसदी तक कम होने की आशंका है. मक्के की फसल फॉल आर्मीवर्म कीट की पसंदीदा फसल है. कृषि वैज्ञानिक विजय कुमार का कहना है कि खेतों में अंकुरित हो रहे पौधों की पत्तियों और तने को बेहद सुष्मिता से देखना चाहिए. फॉल आर्मीवर्म के लक्षण दिखते ही कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करना चाहिए, जिससे इन्हें पहले ही रोका जा सके.

ये आर्मीवर्म पत्तियों में जालीदार प्रकार का गोला बनाते हैं और छोटे-छोटे छेद होने लगते हैं. पत्तियों में ये उसकी पहचान है. वैज्ञानिक ने बताया कि इन कीड़ों को पत्तियों पर नहीं देखा जा सकता है. ये दिन के समय में दिखाई नहीं देते हैं, ये कीड़े रात के समय पत्तियों पर रहते हैं. इन्हें पत्तियों में दाग और बारीक गड्ढे से पहचाना जा सकता है. बचाव के लिए जैविक रसायन, नीम ऑयल या नीम डस्ट का उपयोग करें. ये कीड़े एक सैनिक के रूप में रहते हैं, जो पत्तियों का हरा रंग उड़ा देता है. इस वजह से इन्हे आर्मीवर्म कहते हैं.

छिंदवाड़ा । जिले को कॉर्न सिटी का तमगा मिला हुआ है, वहीं किसान अब मक्का फसल की बुवाई करने लगा है. मक्के के पौधों में अंकुरण भी होने लगा है, लेकिन इस पर फॉल आर्मीवर्म का खतरा मंडरा रहा है. जिले में अब तक करीब 7 इंच से ज्यादा बारिश हो चुकी है. खेतों में नमीं देखकर किसान अब खेत जोतने में जुट गया है. हालांकि पिछले साल मक्के में फॉल आर्मीवर्म का प्रकोप और कम दाने से इस साल मक्के को रखने में कमी आई है. कुछ किसानों ने मक्का की बोनी जून के पहले पखवाड़े में ही कर दी है, इसके बाद खेतों में अब फॉल आर्मीवर्म के लक्षण नजर आने लगे हैं.

मक्के की फसल पर फॉल आर्मीवर्म का खतरा

बारीक इल्लियां अंकुरित पौधों को खाने लगी हैं. जिले में पिछले साल करीब 2 लाख 98 हजार हेक्टेयर में मक्के की बोनी की गई थी. इस साल इसका रखवा करीब 35 से 45 फीसदी तक कम होने की आशंका है. मक्के की फसल फॉल आर्मीवर्म कीट की पसंदीदा फसल है. कृषि वैज्ञानिक विजय कुमार का कहना है कि खेतों में अंकुरित हो रहे पौधों की पत्तियों और तने को बेहद सुष्मिता से देखना चाहिए. फॉल आर्मीवर्म के लक्षण दिखते ही कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करना चाहिए, जिससे इन्हें पहले ही रोका जा सके.

ये आर्मीवर्म पत्तियों में जालीदार प्रकार का गोला बनाते हैं और छोटे-छोटे छेद होने लगते हैं. पत्तियों में ये उसकी पहचान है. वैज्ञानिक ने बताया कि इन कीड़ों को पत्तियों पर नहीं देखा जा सकता है. ये दिन के समय में दिखाई नहीं देते हैं, ये कीड़े रात के समय पत्तियों पर रहते हैं. इन्हें पत्तियों में दाग और बारीक गड्ढे से पहचाना जा सकता है. बचाव के लिए जैविक रसायन, नीम ऑयल या नीम डस्ट का उपयोग करें. ये कीड़े एक सैनिक के रूप में रहते हैं, जो पत्तियों का हरा रंग उड़ा देता है. इस वजह से इन्हे आर्मीवर्म कहते हैं.

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