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बुंदेलखंड की बदहाल तस्वीर, आजादी के 70 साल बाद भी वोट की कीमत पानी - ग्रामीण

बुंदेलखंड के एक गांव में पानी ने अब वोट का रूप ले लिया है. यहां के दबंग कुएं से पानी भरने के एवज में दलितों से विशेष पार्टी के लिए वोट करने का दबाव डालते हैं, वहीं दलितों के ऐसा नहीं करने पर उनका पानी बंद कर दिया जाता है.

बुंदेलखंड में पानी के लिए जूझ रहे लोग
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Published : Apr 16, 2019, 8:06 AM IST

छतरपुर। बुंदेलखंड का नाम जुबां पर आते ही हमारे सामने सूखे खेतों, सूखे कुओं और हवा उगलते हैंडपंप की तस्वीर सामने आने लगती है. सरकारें तमाम दावे करती रहीं कि बुंदेलखंड की तस्वीर बदल गई है लेकिन आजादी के 70 साल भी स्थिति जस की तस है. यहां आज भी लोगों को पानी के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है और रोजाना छूआछूत का दंश झेलना पड़ता है.

बुंदेलखंड में पानी हमेशा से ही एक बड़ी समस्या रही है, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आज बुंदेलखंड के एक गांव में पानी ने अब वोट का रूप ले लिया है. जी हां पानी के नाम पर मतों का ध्रुवीकरण किया जा रहा है. दलित बस्ती में रहने वाले ग्रामीणों एवं महिलाओं की मानें तो उनको पानी के नाम पर वोटों को लेकर दबाव बनाया जाता है.

यहां देखें बुंदेलखंड की बदहाल तस्वीर

हम बात कर रहे हैं छतरपुर जिले के राजनगर क्षेत्र से लगा हुआ गांव जमुनिया कि जहां लगभग एक हजार दलित रहते हैं, ऐसा नहीं है कि इस गांव में अन्य जातियां नहीं रहती हैं और पानी की व्यवस्था नहीं है, लेकिन इन दलित परिवारों को आसपास पानी की सुविधा ना होने के कारण खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. दलित बस्ती के लोगों की मानें तो इनके पास एक भी कुआं नहीं है लिहाजा वह किसी जाति विशेष के वहां से पानी भरते हैं, क्योंकि कुआं प्राइवेट है इसलिए जब उनकी मर्जी होती है वह भरने देते हैं जब मर्जी नहीं होती है वक्त से मना कर देते हैं.

वहीं बस्ती में रहने वाले युवक छबि लाल का आरोप है कि जब चुनाव नजदीक आते हैं तब हमें किसी विशेष पार्टी को सहयोग करने के लिए या वोट देने के लिए कहा जाता है, लेकिन जब हम उनकी बात नहीं मानते हैं तो हमें पानी देना बंद कर दिया जाता है. ऐसी स्थिति में हमारे बच्चे एवं गांव की महिलाएं कई किलोमीटर दूर जाकर पानी भरते हैं और आखिरकार हार थककर हमें उनकी बात माननी पड़ती है. ऐसी अक्सर चुनावों के दौरान होता है.

वहीं गांव में रहने वाली महिलाओं का कहना है कि जिन का कुआं है वह चुनावी समय में पार्टी से संबंधित वोट डालने की बात तो करती ही हैं, साथ में रोजमर्रा के कई काम भी हमें पानी के लिए करने पड़ते हैं. सारे काम हमें छोड़ कर उनका काम करना पड़ता है मजबूरी यह है कि उनके पास केवल वही एक कुआं है अगर सरकार हमारी मदद करें तो हमें इस परेशानी से मुक्ति मिल सकती है.

गांव में ही रहने वाली एक युवती पूजा अहिरवार का कहना है कि जब स्कूल से पानी भरने जाती है तो उसके साथ छुआछूत का व्यवहार किया था है कई बार तो उसके बर्तन भी वहां से फेंक दिए गए लेकिन मजबूरी है कि पास में कोई कुआं नहीं है और वहां जाना पड़ता है.

इस संबंध में जब हमने ADM प्रेम सिंह चौहान से बात की तो उन्होंने मामले को बेहद गंभीर बताते हुए कहा क्योंकि चुनाव नजदीक है, हम एसडीएम से बात करते हुए पूरे मामले की जांच कराएंगे. गांव में एक जांच दल भी जाएगा उसके बाद उस बस्ती के लोगों को जो भी हमारी मदद की आवश्यकता होगी हम करेंगे. पानी के नाम पर कोई भी व्यक्ति मतों का ध्रुवीकरण नहीं कर सकता है अगर ऐसा पाया जाता है तो निश्चित तौर पर कार्रवाई भी की जाएगी.

अब मामला अधिकारियों के सामने आया है और अधिकारी जांच करने के बाद कार्रवाई की बात कर रहे हैं. देखने वाली बात यह होगी कि कितने समय में उस दलित बस्ती में रहने वाले लोगों को पानी की उचित व्यवस्था की जा सकेगी या यह चुनाव भी निकल जायेगा और ग्रामीण पानी की बाट जोहते रहेंगे.

छतरपुर। बुंदेलखंड का नाम जुबां पर आते ही हमारे सामने सूखे खेतों, सूखे कुओं और हवा उगलते हैंडपंप की तस्वीर सामने आने लगती है. सरकारें तमाम दावे करती रहीं कि बुंदेलखंड की तस्वीर बदल गई है लेकिन आजादी के 70 साल भी स्थिति जस की तस है. यहां आज भी लोगों को पानी के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है और रोजाना छूआछूत का दंश झेलना पड़ता है.

बुंदेलखंड में पानी हमेशा से ही एक बड़ी समस्या रही है, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आज बुंदेलखंड के एक गांव में पानी ने अब वोट का रूप ले लिया है. जी हां पानी के नाम पर मतों का ध्रुवीकरण किया जा रहा है. दलित बस्ती में रहने वाले ग्रामीणों एवं महिलाओं की मानें तो उनको पानी के नाम पर वोटों को लेकर दबाव बनाया जाता है.

यहां देखें बुंदेलखंड की बदहाल तस्वीर

हम बात कर रहे हैं छतरपुर जिले के राजनगर क्षेत्र से लगा हुआ गांव जमुनिया कि जहां लगभग एक हजार दलित रहते हैं, ऐसा नहीं है कि इस गांव में अन्य जातियां नहीं रहती हैं और पानी की व्यवस्था नहीं है, लेकिन इन दलित परिवारों को आसपास पानी की सुविधा ना होने के कारण खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. दलित बस्ती के लोगों की मानें तो इनके पास एक भी कुआं नहीं है लिहाजा वह किसी जाति विशेष के वहां से पानी भरते हैं, क्योंकि कुआं प्राइवेट है इसलिए जब उनकी मर्जी होती है वह भरने देते हैं जब मर्जी नहीं होती है वक्त से मना कर देते हैं.

वहीं बस्ती में रहने वाले युवक छबि लाल का आरोप है कि जब चुनाव नजदीक आते हैं तब हमें किसी विशेष पार्टी को सहयोग करने के लिए या वोट देने के लिए कहा जाता है, लेकिन जब हम उनकी बात नहीं मानते हैं तो हमें पानी देना बंद कर दिया जाता है. ऐसी स्थिति में हमारे बच्चे एवं गांव की महिलाएं कई किलोमीटर दूर जाकर पानी भरते हैं और आखिरकार हार थककर हमें उनकी बात माननी पड़ती है. ऐसी अक्सर चुनावों के दौरान होता है.

वहीं गांव में रहने वाली महिलाओं का कहना है कि जिन का कुआं है वह चुनावी समय में पार्टी से संबंधित वोट डालने की बात तो करती ही हैं, साथ में रोजमर्रा के कई काम भी हमें पानी के लिए करने पड़ते हैं. सारे काम हमें छोड़ कर उनका काम करना पड़ता है मजबूरी यह है कि उनके पास केवल वही एक कुआं है अगर सरकार हमारी मदद करें तो हमें इस परेशानी से मुक्ति मिल सकती है.

गांव में ही रहने वाली एक युवती पूजा अहिरवार का कहना है कि जब स्कूल से पानी भरने जाती है तो उसके साथ छुआछूत का व्यवहार किया था है कई बार तो उसके बर्तन भी वहां से फेंक दिए गए लेकिन मजबूरी है कि पास में कोई कुआं नहीं है और वहां जाना पड़ता है.

इस संबंध में जब हमने ADM प्रेम सिंह चौहान से बात की तो उन्होंने मामले को बेहद गंभीर बताते हुए कहा क्योंकि चुनाव नजदीक है, हम एसडीएम से बात करते हुए पूरे मामले की जांच कराएंगे. गांव में एक जांच दल भी जाएगा उसके बाद उस बस्ती के लोगों को जो भी हमारी मदद की आवश्यकता होगी हम करेंगे. पानी के नाम पर कोई भी व्यक्ति मतों का ध्रुवीकरण नहीं कर सकता है अगर ऐसा पाया जाता है तो निश्चित तौर पर कार्रवाई भी की जाएगी.

अब मामला अधिकारियों के सामने आया है और अधिकारी जांच करने के बाद कार्रवाई की बात कर रहे हैं. देखने वाली बात यह होगी कि कितने समय में उस दलित बस्ती में रहने वाले लोगों को पानी की उचित व्यवस्था की जा सकेगी या यह चुनाव भी निकल जायेगा और ग्रामीण पानी की बाट जोहते रहेंगे.

Intro:आज हम आपको बुंदेलखंड की वह बदहाल तस्वीर दिखाने जा रहे हैं जो आजादी के 70 साल बाद भी नहीं सुधरी है चौंकाने वाली बात यह है कि भले ही बुंदेलखंड में लोग छुआछूत मिटाने और सामाजिक समरसता लाने की बात करते हो लेकिन मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड का क्षेत्र आज भी इन तमाम बड़ी-बड़ी बातों को न सिर्फ झूठा साबित करता है बल्कि इसके ठीक विपरीत बुंदेलखंड में आज भी दलित परिवारों को कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है यह सोच पाना भी मुश्किल है!

बुंदेलखंड में आज पानी की समस्या सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रही है पानी आज सबसे बड़ा मुद्दा हो गया है लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बुंदेलखंड के एक गांव में एक वोट की कीमत पानी है!

जी हां पानी के नाम पर मतों का ध्रुवीकरण किया जा रहा है दलित बस्ती में रहने वाले ग्रामीणों एवं महिलाओं की मानें तो उनको पानी के नाम पर वोटों को लेकर दबाव बनाया जाता है!


Body: भारत देश भले ही आज आधुनिकता की दौड़ में चमकता हुआ सितारा हो लेकिन मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में आज भी हालात बद से बदतर हैं बुंदेलखंड में पानी एक विकराल समस्या का रूप ले चुका है ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में पानी को लेकर ना सिर्फ ग्रामीणों को बल्कि महिलाओं को खासी मशक्कत करनी पड़ती है दूरस्थ क्षेत्रों में दलित बस्तियों की बात करें तो पानी उनके लिए धीरे-धीरे दूर की कौड़ी साबित होता जा रहा!

छतरपुर जिले के राजनगर क्षेत्र से लगा हुआ गांव जमुनिया जहां लगभग 1 हजार दलित रहते हैं ऐसा नहीं है कि इस गांव में अन्य जातियां नहीं रहती हैं पानी की व्यवस्था नहीं है सब कुछ है लेकिन इन दलित परिवारों को आसपास पानी की सुविधा ना होने के कारण खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है दलित बस्ती के लोगों की मानें तो इनके पास एक भी तो नहीं है जिसमें से यह पानी भरते हैं वह किसी जाति विशेष के व्यक्ति का है जिस कारण पानी को लेकर कई समस्याएं आती हैं क्योंकि कुआं प्राइवेट है इसलिए जब उनकी मर्जी होती है वह भरने देते हैं जब मर्जी नहीं होती है वक्त से मना कर देते हैं!

वहीं बस्ती में रहने वाले युवक छबि लाल का आरोप है कि जब चुनाव नजदीक आते हैं तब हमें किसी विशेष पार्टी को सहयोग करने के लिए या वोट देने के लिए कहा जाता है लेकिन जब हम उनकी बात नहीं मानते हैं तो हमें पानी देना बंद कर दिया जाता है ऐसी स्थिति में हमारे बच्चे एवं गांव की महिलाएं कई किलोमीटर दूर जाकर पानी भरते हैं और आखिरकार हार शक्कर हमें उनकी बात माननी पड़ती है! अधिकांश पानी के लिए मना हमें चुनावी माहौल में कर दिया जाता है क्योंकि उस समय हमें एक विशेष पार्टी को सहयोग करने के लिए कहा जाता है लेकिन जब हम मना कर देते हैं तो यह हमारे लिए मुसीबत की बात होती है!

बाइट_छवि लाल_अहिरवार

गांव में ही रहने वाले जालिम अहिरवार बताते हैं कि गांव में चुनाव नजदीक आते ही इस प्रकार की बातें शुरू हो जाती हैं जिन का कुआं है वह चाहते हैं कि हम उनके अनुसार किसी पार्टी विशेष का सहयोग करें जब हम ऐसा नहीं करते हैं तो पानी बंद कर दिया जाता है और उनका कहना होता है कि पानी पीने के लिए तो आप लोग हमारे पूरे पार आते हैं लेकिन जब चुनाव और अन्य चीजों की बात आती है तो आप लोग भाग जाते हैं!

बाइट_जालिम अहिरवार_ग्रामीण

वहीं गांव में रहने वाली महिलाओं का कहना है कि जिन का कुआं है वह चुनावी समय में पार्टी से संबंधित वोट डालने की बात तो करती ही हैं साथ में रोजमर्रा के कई काम भी हमें पाने के लिए करने पड़ते हैं सारे काम हमें छोड़ कर उनका काम करना पड़ता है मजबूरी यह है कि उनके पास केवल वही एक कुआं है अगर सरकार हमारी मदद करें तो हमें इस परेशानी से मुक्ति मिल सकती है!

बाइट_नौनी बाई_ग्रामीण महिला
बाइट_ग्रामीण महिला
बाइट_तीजा बाई_ग्रामीण महिला

गांव में ही रहने वाली एक युवती पूजा अहिरवार का कहना है कि जब स्कूल से पानी भरने जाती है तो उसके साथ छुआछूत का व्यवहार किया था है कई बार तो उसके बर्तन भी वहां से फेंक दिए गए लेकिन मजबूरी है कि पास में कोई हुआ नहीं है और वहां जाना पड़ता है!

इस संबंध में जब हमने ADM प्रेम सिंह चौहान से बात की तो उन्होंने मामले को बेहद गंभीर बताते हुए कहा क्योंकि चुनाव नजदीक है हम एसडीएम से बात करते हुए पूरे मामले की जांच कराएंगे गांव में एक जांच दल भी जाएगा उसके बाद उस बस्ती के लोगों को जो भी हमारी मदद की आवश्यकता होगी हम करेंगे पानी के नाम पर कोई भी व्यक्ति मतों का ध्रुवीकरण नहीं कर सकता है अगर ऐसा पाया जाता है तो निश्चित तौर पर कार्यवाही भी की जाएगी!


Conclusion: क्योंकि अब मामला अधिकारियों के सामने आया है और अधिकारी जांच करने के बाद कार्रवाई की बात कर रहे हैं देखने वाली बात यह होगी कि कितने समय में उस दलित बस्ती में रहने वाले लोगों को पानी की उचित व्यवस्था की जा सकेगी या फिर ऐसे ही उन्हें तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा!
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