छिंदवाड़ा। जिन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से बच्चों को दूर रहने की सलाह दी जाती है और वे उनके लिए खतरनाक भी साबित हो सकते हैं, लेकिन कोरोना महामारी के चलते अब बच्चे मजबूरी में उन्हीं के सहारे अपना भविष्य संवारने की कोशिश में जुटे हैं, मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ये बच्चों के लिए नुकसादायक भी हो सकता है.
जब बच्चा ज्यादा मोबाइल खेल लेता था या इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का आदि हो जाता था तो खुद टीचर और पैरेंट्स इससे बचने की सलाह देते थे, लेकिन कोरोना महामारी ने अब नजरिया ही बदल कर रख दिया है. भले ही मजबूरी में कहें लेकिन सभी लोग अपने बच्चों को अब मोबाइल और गैजेट्स का सहारा देकर पढ़ाई करा रहे हैं.
बच्चों की आंखों पर पड़ रहा असर
ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चे ने बताया कि 40- 40 मिनट के पीरियड मोबाइल के जरिए पढ़ाए जाते हैं, स्क्रीन काफी छोटी होने के चलते आंखों पर जोर पड़ता है और उससे सिर में दर्द होता है, लेकिन पढ़ाई जरूरी है, इसलिए मोबाइल का उपयोग करना पड़ता है.
कोरोना ने बदल दिया नजरिया
पेरेंट्स बताते हैं कि बच्चों को इस उम्र में गैजेट्स काम उपयोग करना चाहिए लेकिन अब पढ़ाई जरूरी है और वे पिछड़ ना जाये इसलिए इतनी मोबाइल और गैजेट्स का सहारा लेना पड़ रहा है जबकि उन्हें पता है कि इससे बच्चों की सेहत पर पर बुरा असर पड़ेगा लेकिन पढ़ाई जरूरी है.
मानसिक और शारीरिक परेशानियों का करना पड़ेगा सामना
राजमाता गर्ल्स कॉलेज की प्रिंसिपल और मनोवैज्ञानिक डॉक्टर कामना वर्मा बताती हैं कि पढ़ाई जरूरी है, इसलिए इस तकनीक का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन इसके लिए पेरेंट्स को जागरुक रहने की जरूरत है, क्योंकि इससे बच्चों को मोबाइल की लत लगेगी जिसके चलते मानसिक और शारीरिक दोनों परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. बच्चे मोबाइल के शौकीन होते हैं और जब उन्हें ज्यादा छूट मिलेगी तो वे इसके आदि हो जाएंगे.