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जलवायु परीक्षण का देशी तरीका!अक्षय तृतीया पर पता लगा लेते हैं किस माह कितनी बारिश होगी

मौसम का अनुमान लगाने के लिए भले ही आधुनिक वैज्ञानिक तरीके आ गए हों, लेकिन कई बार ये सटीक नहीं बैठते. लेकिन गांवों में आज भी एक ऐसा तरीका है जिससे किसान अक्षय तृतीया के दिन पता लगा लेते हैं कि बारिश कितनी होगी और उनकी फसल कैसी होगी. आइए जानते हैं क्या है ये जलवायु परीक्षण का देशी तरीका.

Indigenous way of testing climate
अक्षय तृतीया पर पता लगा लेते हैं किस माह कितनी बारिश होगी
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Published : Apr 22, 2023, 4:20 PM IST

अक्षय तृतीया पर पता लगा लेते हैं किस माह कितनी बारिश होगी

छिंदवाड़ा। किसान मिट्टी के ढेले गीले होने के आधार पर पता लगा लेते हैं कि किस महीने में कितनी बारिश होगी. इलाके के प्रगतिशील किसान अजब सिंह वर्मा बताते हैं कि ये मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान बारह धरती माता को ऊपर लेकर आए थे. इसी शुभ दिन के मौके पर किसान आने वाले 4 महीने में बारिश का अंदाजा लगाते हैं. साथ ही ये भी पता लगाते हैं कि उनकी फसल कैसी होगी. किसान इसी अनुमान के आधार पर अपनी फसल को लेकर तैयारियां करते हैं.

मिट्टी के ढेले से परीक्षण : तरीका ये है कि अक्षय तृतीया के दिन किसान मिट्टी की चार ढेले (क्यूब) अपने खेतों से लाते हैं और सभी मिट्टी के ढेलों का महीनों के हिसाब से नामकरण करते हैं, जिसमें आषाढ़, सावन, भादो और क्वांर का महीना होता है. चारों महीने की मिट्टी के टीले में जो जिस तरीके से गीला होता है, उस हिसाब से किसान मान लेते हैं कि कितनी बारिश किस महीने में संभावित है. मान्यता के अनुसार मिट्टी की ढेलों के ऊपर नए घड़े में पानी भरकर पूजा करते हैं. आषाढ़ से ही बारिश का सीजन माना जाता है.

सटीक अनुमान का दावा : स्थानीय लोगों का मानना है कि इन 4 महीनों के ढेलों में जो ढेला सबसे ज्यादा गीला होता है, उस हिसाब से इस महीने में कितनी बारिश होगी, इसका सटीक अनुमान होता है. आज भी ग्रामीण इलाकों में मान्यता है कि अक्षय तृतीया तक नए घड़े का पानी नहीं पीना चाहिए. इसी दिन नए घड़े की पूजा कर उसका पानी पीना शुरू किया जाता है. इस वजह से गांव में मौसमी बीमारियों का डर भी नहीं रहता. अक्षय तृतीया की पूजन के बाद किसान अपने खेतों की बारिश के सीजन के लिए तैयारियां शुरू कर देते हैं.

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पलाश और आम के पत्ते की पूजा : अक्षय तृतीया के दिन ही रंगोली से सजे घड़े, जिसे गागर कहा जाता है, उसमें पानी भरा जाता है. सनातन धर्म में मान्यता है कि आम के पत्तों से पूजा की जानी चाहिए. इसलिए आम के पत्ते, पलाश के पत्ते सहित आम का पन्ना और महिलाओं के द्वारा हाथों से बनाई गई आटे की सेवइयां से इस दिन भगवान को भोग लगाया जाता है और फिर किसान अपनी फसलों की तैयारी में जुट जाते हैं.

अक्षय तृतीया पर पता लगा लेते हैं किस माह कितनी बारिश होगी

छिंदवाड़ा। किसान मिट्टी के ढेले गीले होने के आधार पर पता लगा लेते हैं कि किस महीने में कितनी बारिश होगी. इलाके के प्रगतिशील किसान अजब सिंह वर्मा बताते हैं कि ये मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान बारह धरती माता को ऊपर लेकर आए थे. इसी शुभ दिन के मौके पर किसान आने वाले 4 महीने में बारिश का अंदाजा लगाते हैं. साथ ही ये भी पता लगाते हैं कि उनकी फसल कैसी होगी. किसान इसी अनुमान के आधार पर अपनी फसल को लेकर तैयारियां करते हैं.

मिट्टी के ढेले से परीक्षण : तरीका ये है कि अक्षय तृतीया के दिन किसान मिट्टी की चार ढेले (क्यूब) अपने खेतों से लाते हैं और सभी मिट्टी के ढेलों का महीनों के हिसाब से नामकरण करते हैं, जिसमें आषाढ़, सावन, भादो और क्वांर का महीना होता है. चारों महीने की मिट्टी के टीले में जो जिस तरीके से गीला होता है, उस हिसाब से किसान मान लेते हैं कि कितनी बारिश किस महीने में संभावित है. मान्यता के अनुसार मिट्टी की ढेलों के ऊपर नए घड़े में पानी भरकर पूजा करते हैं. आषाढ़ से ही बारिश का सीजन माना जाता है.

सटीक अनुमान का दावा : स्थानीय लोगों का मानना है कि इन 4 महीनों के ढेलों में जो ढेला सबसे ज्यादा गीला होता है, उस हिसाब से इस महीने में कितनी बारिश होगी, इसका सटीक अनुमान होता है. आज भी ग्रामीण इलाकों में मान्यता है कि अक्षय तृतीया तक नए घड़े का पानी नहीं पीना चाहिए. इसी दिन नए घड़े की पूजा कर उसका पानी पीना शुरू किया जाता है. इस वजह से गांव में मौसमी बीमारियों का डर भी नहीं रहता. अक्षय तृतीया की पूजन के बाद किसान अपने खेतों की बारिश के सीजन के लिए तैयारियां शुरू कर देते हैं.

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पलाश और आम के पत्ते की पूजा : अक्षय तृतीया के दिन ही रंगोली से सजे घड़े, जिसे गागर कहा जाता है, उसमें पानी भरा जाता है. सनातन धर्म में मान्यता है कि आम के पत्तों से पूजा की जानी चाहिए. इसलिए आम के पत्ते, पलाश के पत्ते सहित आम का पन्ना और महिलाओं के द्वारा हाथों से बनाई गई आटे की सेवइयां से इस दिन भगवान को भोग लगाया जाता है और फिर किसान अपनी फसलों की तैयारी में जुट जाते हैं.

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