छिंदवाड़ा। धरातल से करीब 3000 फीट नीचे बसे पातालकोट के आदिवासियों के लिए प्रशासन ने चार पोलिंग बूथ तो बना दिए हैं लेकिन पोलिंग बूथ तक वोटरों को लाना चुनौती से कम नहीं है. क्योंकि पहाड़ी इलाकों में बसे इन गांव में पगडंडियों के सहारे ही आना जाना पड़ता है. अगर बारिश हो जाए तो और मुसीबत हो जाती है. ऐसे में यहां पर मतदान कराना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाला है.
पोलिंग बूथ तक सड़क लेकिन गांव में पगडंडियों का सहारा: पातालकोट के रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि ''पहले तो उन्हें पातालकोट से निकलकर ऊपर के गांव में वोट करना होता था लेकिन कुछ साल पहले ही प्रशासन ने चार पोलिंग बूथ बना दिए हैं. इन चारों पोलिंग बूथ तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क भी है. लेकिन चार पोलिंग बूथ में करीब 12 गांव के आदिवासी वोट डालने के लिए पहुंचते हैं इनमें से अधिकतर गांवों में सड़क नहीं है. इसकी वजह से ग्रामीणों को पगडंडियों का सहारा लेना पड़ता है. आदिवासी अधिकतर खेतों और पहाड़ों में दूर-दूर मकान बनाकर रहते हैं जिसकी वजह से सड़कों का निर्माण करना भी प्रशासन के लिए चुनौती है. मतदान के समय बूथ लेवल अधिकारी उनके घरों तक पैदल पहुंचकर मतदान की पर्चियां देते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान केंद्र तक वोट डालने के लिए पहुंच सकें.''
12 गांव के लिए चार पोलिंग बूथ, बारिश में होती है मुश्किल: पातालकोट के सिथौली, कारेआम रातेड़, थानाखेड़ा और जड़मादल हर्राकछार को मतदान केंद्र बनाया गया है. इन चार मतदान केंद्रों में सिथौली, कारेआम रातेड़, सतलवाह, बीजाढाना, घोगरीगुजजा, डोंगरी, चिमटीपुर, थानाखेड़ा, दवाकुंडी, कठौतिया, सानी जड़, मॉदल, हर्राकछार, बातरा, खमरपुरसहारा, पंचगोल और झिरना गांव शामिल हैं. चारों मतदान केंद्र तक तो पहुंचने के लिए सड़क मार्ग है लेकिन इन 12 गांव में करीब छह गांव ऐसे हैं जहां पर सड़क नहीं है. ऐसा ही गांव झिरपानी है जहां पगडंडी के सहारे ही ग्रामीणों को पहुंचना होता है. अगर हल्की बारिश भी हो जाए तो इन गांवों तक पहुंचना दूभर हो जाता है.
विश्व की अनोखी दुनिया है पातालकोट: छिंदवाड़ा जिले के तामिया के पास विश्व की अनोखी दुनिया पातालकोट है. चारों तरफ घने जंगलों से घिरे पातालकोट के करीब 12 गांव धरातल से 3000 फीट नीचे हैं. इन गांव में भारिया और गोंड समाज की जनजातियां निवास करती हैं. धीरे-धीरे अब पातालकोट में सरकार ने सुविधा पहुंचाना शुरू कर दिया है. इसलिए यहां के आदिवासी सामान्य जनजीवन में आ रहे हैं लेकिन पहले यहां के लोग पातालकोट से बाहर नहीं निकाल पाते थे और वनोपज उनका जीवन निर्भर रहता था. जिसके कारण इनके पहनावे से लेकर इनका पारंपरिक खान-पान लोगों के लिए कोतूहल का विषय बना हुआ था.
बुजुर्ग और दिव्यांगों को घर से मतदान की सुविधा: जिला निर्वाचन अधिकारी मनोज पुष्प ने बताया है कि ''पातालकोट समेत अमरवाड़ा विधानसभा में 332 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. सभी मतदान केंद्रों तक मतदान दल के पहुंचने की सुविधा है. हालांकि कुछ ग्रामीण और जंगल वाले इलाकों में मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए मतदाताओं को कच्चे रास्तों का सहारा लेना पड़ेगा. प्रशासन की टीम ने हर मतदाता से मतदान केंद्र में पहुंचकर मतदान करने की अपील की है. जो मतदाता 80 साल से ज्यादा उम्र के हैं या फिर दिव्यांग या बीमारी से जूझ रहे हैं उनके लिए घर पहुंच कर मतदान कराया जा रहा है.''
छिंदवाड़ा से होकर जाना पड़ता है नर्मदापुरम के गांवों में: सतपुड़ा अंचल और पातालकोट की पहाड़ियों के बीच कुछ ऐसे गांव भी हैं जो सरकारी रिकॉर्ड में नर्मदा पुरम जिले में हैं, लेकिन उनके सारे काम छिंदवाड़ा के बगैर संभव नहीं हो पाते हैं. वह इसलिए क्योंकि ये गांव नर्मदापुरम की सीमा में तो हैं लेकिन नर्मदा पुरम जिले से जोड़ने के लिए कोई भी रास्ता नहीं है. इसलिए सभी ग्रामीणों को छिंदवाड़ा जिले की सतपुड़ा जंगलों को पार कर पातालकोट के रास्ते करीब 190 किलोमीटर जिला मुख्यालय पहुंचना होता है. अभी तक यह गांव मतदान के लिए भी संभव नहीं थे. लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में खुद भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने इन गांव का जिक्र कर यहां पर मतदान सुलभ तरीके से करने की बात कही है. इन्ही गांव का ईटीवी भारत की टीम ने जाकर जायजा लिया.