छिंदवाड़ा/भोपाल। क्या केवल योग की ट्रेनिंग देने के साथ थम सकती है युवाओं में बढ़ते गुस्से और अपराधों पर लगाम ?. छिंदवाड़ा में युवक की हत्या के मामले में फैसला सुनाते हुए जिला अदालत की चतुर्थ अपर सत्र न्यायधीश कुमुदनी पटेल ने युवा पीढ़ी के भविष्य को बचाने के लिए एक ऐतिहासिक फैसला दिया है. इसमें कहा गया है कि नौजवानों में बढ़ते गुस्से को संभालने के लिए शासन की ओर से योग और ध्यान केन्द्र खोले जाने चाहिए. इसके अलावा मामले पर मनोचिकित्सक की राय है कि योग मानसिक तनाव से पड़ने वाले शारीरिक प्रभावों को कम कर सकता है, लेकिन केवल योग के बूते गुस्से और अपराध पर काबू नहीं हो सकता. वहीं योगाचार्य का मानना है कि केवल योग ही है, जिससे क्षणिक आवेग को रोका जा सकता है. (Chhindwara District Court)
योग से रुकेंगे अपराध: हत्या के मामले में फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश कुमुदनी पटेल ने कहा कि, "युवा पीढ़ी भाविष्य के नियामक होते हैं उनके गलत कृत्य वा आचरण से जीवन व समाज पर दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है जो उनके पूरे जीवन को नष्ट कर सकता है. वर्तमान में युवा पीढ़ी की प्रकृति आक्रमक हो गई है किसी भी कृत्य का तुरंत प्रतिक्रिया करना यह दर्शाता है कि उनके जीवन में स्थिरता शांति व अच्छे उद्देश्य का अभाव है. युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक है कि शासन हर जिले तहसील गांव में ध्यान और योग के लिए निश्चित व्यवस्था स्थापित करें." उन्होंने ये डायरेक्शन प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य प्रमुख सचिव, तकनीकी शिक्षा कौशल विभाग को भेजने के लिए भी कहा है.
क्या है पूरा मामला: छिंदवाड़ा के कुंडीपुरा थाना क्षेत्र के सोनाखार में 13 मार्च 2019 को रजनीश वर्मा की हत्या हुई थी, पुलिस ने पुरानी रंजिश के चलते हत्या के आरोप में आशीष वर्मा, आकाश वर्मा और शंकर वर्मा के खिलाफ हत्या का प्रकरण दर्ज किया था. इस मामले में चतुर्थ अपर सत्र न्यायधीश श्रीमती कुमुदनी पटेल ने तीनों आरोपियों को दोषी पाते हुए धारा 302 में आजीवन कठोर कैद की सजा सुनाई है और इसी फैसले के साथ योग से युवाओं में गुस्से और अपराध को रोकने के डायरेक्शन भी दिए. इसके अलावा मामले में अपर लोक अभियोजक सुनील सिंधिया ने इसकी पैरवी की.
केवल योग से अपराध पर काबू संभव नहीं: मामले में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी की राय है कि, "योग मानसिक तनाव से पड़ने वाले शारीरिक प्रभावों को कम कर सकता है, लेकिन केवल योग से गुस्से और अपराध पर काबू संभव नहीं है. व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य- मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, और पारिवारिक कारकों का मिला जुला प्रतिबिंब है, इसलिए होलिस्टिक अप्रोच की जरुरत होगी. समग्र रूप से मिल-जुलकर नीति बनानी होगी, लाइफ स्किल्स समेत सारे फैक्टर्स पर ध्यान देना होगा. तब ही नौजवानों में बढ़ते गुस्से और अपराध पर काबू किया जा सकता है."
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योग रोकता है क्षणिक आवेग: योगाचार्य पवन गुरु का कहना है कि, "हमारे पास कई ऐसे लोग आए जिनका गुस्सा तेज था. कुछ ने गुस्से की वजह से अपराध भी किए, लेकिन निरंतर योग करने से उनका गुस्सा भी काबू में आया और अपराध की तरफ फिर उन्होंने रुख नहीं किया. असल में योग से शरीर के भीतर तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन का स्तर नीचे आता है. जब ऐसा होता है तो व्यक्ति का आईक्यू लेवल बढ़ता है, वह सही गलत का निर्णय ले पाता है. आत्महत्या से लेकर अपराध तक सारे गलत फैसले क्षणिक आवेश में ही होते हैं, योग इस क्षणिक आवेश को संभालना सिखा देता है."