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2024 का सबसे बड़ा रहस्य, ऐसा कुंड जिसमें पानी! कभी कम हुआ ना ज्यादा

Chhindwara Devgarh Kund: छिंदवाड़ा के देवगढ़ में मौजूद कुंड अपनी खूबी के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है. इस कुंड का खासियत यह है कि इसमें पानी न ज्यादा होता और न कम होता है. पढ़िए छिंदवाड़ा से महेंद्र राय की यह रिपोर्ट...

Chhindwara Devgarh Kund
छिंदवाड़ा देवगढ़ कुंड
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 3, 2024, 7:24 PM IST

छिंदवाड़ा। अगर किसी भी पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों की बात करें, तो अपने आप में बहुत खूबसूरत होते हैं. जो खुद में कई इतिहास छिपाए रहते हैं. इन ऐतिहासिक किलो, मंदिरों, कुंड, मीनारों की बनावट और कलाकृति भी बहुत अलग और सुंदर होती है. ऐसा ही एक हैरान करने वाला कुंड प्रदेश के छिंदवाड़ा में मौजूद है. 16वीं शताब्दी के देवगढ़ किले में भले ही महल अब खंडहर में तब्दील हो गए हों, लेकिन एक कुंड ऐसा है, जिसमें ना तो कभी पानी का कम हुआ है और ना कभी ज्यादा. इसे मोती टांका कहा जाता है. माना जाता है कि इस कुंड के अंदर पारसमणी पत्थर है.

Chhindwara Devgarh Kund
खंडहर में तब्दील देवगढ़ का महल

क्या है मोती टांका का रहस्य, पारस पत्थर की कहानी: देवगढ़ किले में पहाड़ के ऊपर बने कुंड का रहस्य क्या 2024 में खुल पाएगा. इस कुंड की खासियत ये है कि इस कुंड का पानी ना कम होता और ना ज्यादा. इसे मोती टांका कहा जाता है. किवंदती ये भी है कि इसमें पारस पत्थर है. इंदिरा गांधी जिस समय प्रधानमंत्री थीं, तो इसे खाली करवाने बड़े-बडे पंप लगवाए गए, लेकिन लेकिन कुंड खाली नहीं हुआ. Archaeological Survey of India यानि ASI के अनुसार उंची पहाड़ी पर स्थित मोती टांके में प्राकृतिक रूप से हमेशा पानी का उपलब्ध रहना लोगों के लिये सदा से आश्चर्यजनक रहा है.

इसका वैज्ञानिक कारण चट्टान की दो कठोर परतों के बीच आ जाने वाली वह नरम परत है. जिसमें वर्षों से भर रहे पानी ने एक समय झिरी फोड़कर कोटोरेनुमा स्थान पर तालाब का रूप ले लिया. सुरक्षित पहाड़ी पर भरपूर पानी मिलने के कारण ही इस स्थान पर किले का निर्माण किया गया. स्थानीय लोग इस तालाब के पानी को पवित्र एवं चमत्कारी मानकर बीमारी में इसका सेवन करते हैं.

Chhindwara Devgarh Kund
चोटी पर मौजूद मोती टांका

16वीं शताब्दी में किया गया देवगढ़ किला का निर्माण: यह किला 16वीं सदी में गोंड शासकों द्वारा निर्मित किया गया. गोंड मध्य प्रदेश में रहने वाली एक जनजाति है, जिसने सोलहवीं सदी के लगभग मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों पर शासन किया. यह किला समुद्र सतह से लगभग 650 मीटर उंचाई पर स्थित है. गोंड किला अपनी सुरक्षा व्यवस्थाओं के लिए प्रसिद्ध है. इस किले का निर्माण भी अत्यधिक योजनाबद्ध तरीके से किया गया है. किले की इमारतें इस्लामिक शैली से निर्मित है. जिसमें स्थानीय गोंड कला का प्रभाव दिखता है.

किले की इमारतें मुख्यतः पत्थर एवं चूने से बनी है. देवगढ़ का कोई प्रत्यक्ष लिखित इतिहास प्राप्त नहीं है. अप्रत्यक्ष रूप से अनेक बार बादशाहनामा एवं अन्य मुगल साहित्य मे देवगढ़ की चर्चा की गयी है. अकबर के समय जाटवा का राज्य वर्तमान छिंदवाड़ा, नागपुर और भंडारा जिलों तक था. जाटवा के उपरांत उसके वंशजों कोकसा (1570-1620 ई), जाटवा द्वितीय (1640-57 ई), को कशाह द्वितीय (1657-87 ई) व बख्तबुलंद (1687-1700 ई) ने शासन किया. बख्तबुलन्द के समय ही देवगढ़ का नाम इस्लामगढ़ रख दिया गया था. उसके पुत्र चांद सुल्तान के समय मुगलों के आक्रमणों के कारण राजधानी देवगढ़ से नागपुर शिफ्ट हो गई थी. यहां मोती टांका, नक्कारखाना, हाथीखाना, कचहरी, राजा की बैठक, खजाना व बादल महल दर्शनीय है.

Chhindwara Devgarh Kund
देवगढ़ किला मानचित्र का फोटो

यहां पढ़ें...

एक कहानी ये भी मालिक का वध करके कर्मचारी बना था राजा: देवगढ़ किले के संबंध में एक किवदंति है कि देवगढ़ पर घणसूर- रणसूर नामक दो ग्वाली बंधुओं का राज था. एक दिन उनके यहां काम करने वाले जाटवा नामक एक लड़के ने किले का दरवाजा अकेले ही उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर रख दिया. इसको बीस व्यक्तियों द्वारा भी उठाया नहीं जा सकता था. ग्वाली बंधु जाटवा की शक्ति से डर गए. उन्होंने जाटवा को धोखे से मारने की योजना बनाई. उसी रात्रि देवी ने जाटवा को सपने में इस योजना के बारे में बता दिया. दीवाली के बढ़ी ग्वाली बंधुओं ने जाटवा को लकड़ी की तलवार देकर भैंस का वध करने का आदेश दिया. जाटवा ने सपने के अनुसार लकड़ी की तलवार से भैंस के वध के साथ ही ग्वालि बंधुओं को भी मारकर कर खुद देवगढ़ का राजा बन गया.

छिंदवाड़ा। अगर किसी भी पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों की बात करें, तो अपने आप में बहुत खूबसूरत होते हैं. जो खुद में कई इतिहास छिपाए रहते हैं. इन ऐतिहासिक किलो, मंदिरों, कुंड, मीनारों की बनावट और कलाकृति भी बहुत अलग और सुंदर होती है. ऐसा ही एक हैरान करने वाला कुंड प्रदेश के छिंदवाड़ा में मौजूद है. 16वीं शताब्दी के देवगढ़ किले में भले ही महल अब खंडहर में तब्दील हो गए हों, लेकिन एक कुंड ऐसा है, जिसमें ना तो कभी पानी का कम हुआ है और ना कभी ज्यादा. इसे मोती टांका कहा जाता है. माना जाता है कि इस कुंड के अंदर पारसमणी पत्थर है.

Chhindwara Devgarh Kund
खंडहर में तब्दील देवगढ़ का महल

क्या है मोती टांका का रहस्य, पारस पत्थर की कहानी: देवगढ़ किले में पहाड़ के ऊपर बने कुंड का रहस्य क्या 2024 में खुल पाएगा. इस कुंड की खासियत ये है कि इस कुंड का पानी ना कम होता और ना ज्यादा. इसे मोती टांका कहा जाता है. किवंदती ये भी है कि इसमें पारस पत्थर है. इंदिरा गांधी जिस समय प्रधानमंत्री थीं, तो इसे खाली करवाने बड़े-बडे पंप लगवाए गए, लेकिन लेकिन कुंड खाली नहीं हुआ. Archaeological Survey of India यानि ASI के अनुसार उंची पहाड़ी पर स्थित मोती टांके में प्राकृतिक रूप से हमेशा पानी का उपलब्ध रहना लोगों के लिये सदा से आश्चर्यजनक रहा है.

इसका वैज्ञानिक कारण चट्टान की दो कठोर परतों के बीच आ जाने वाली वह नरम परत है. जिसमें वर्षों से भर रहे पानी ने एक समय झिरी फोड़कर कोटोरेनुमा स्थान पर तालाब का रूप ले लिया. सुरक्षित पहाड़ी पर भरपूर पानी मिलने के कारण ही इस स्थान पर किले का निर्माण किया गया. स्थानीय लोग इस तालाब के पानी को पवित्र एवं चमत्कारी मानकर बीमारी में इसका सेवन करते हैं.

Chhindwara Devgarh Kund
चोटी पर मौजूद मोती टांका

16वीं शताब्दी में किया गया देवगढ़ किला का निर्माण: यह किला 16वीं सदी में गोंड शासकों द्वारा निर्मित किया गया. गोंड मध्य प्रदेश में रहने वाली एक जनजाति है, जिसने सोलहवीं सदी के लगभग मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों पर शासन किया. यह किला समुद्र सतह से लगभग 650 मीटर उंचाई पर स्थित है. गोंड किला अपनी सुरक्षा व्यवस्थाओं के लिए प्रसिद्ध है. इस किले का निर्माण भी अत्यधिक योजनाबद्ध तरीके से किया गया है. किले की इमारतें इस्लामिक शैली से निर्मित है. जिसमें स्थानीय गोंड कला का प्रभाव दिखता है.

किले की इमारतें मुख्यतः पत्थर एवं चूने से बनी है. देवगढ़ का कोई प्रत्यक्ष लिखित इतिहास प्राप्त नहीं है. अप्रत्यक्ष रूप से अनेक बार बादशाहनामा एवं अन्य मुगल साहित्य मे देवगढ़ की चर्चा की गयी है. अकबर के समय जाटवा का राज्य वर्तमान छिंदवाड़ा, नागपुर और भंडारा जिलों तक था. जाटवा के उपरांत उसके वंशजों कोकसा (1570-1620 ई), जाटवा द्वितीय (1640-57 ई), को कशाह द्वितीय (1657-87 ई) व बख्तबुलंद (1687-1700 ई) ने शासन किया. बख्तबुलन्द के समय ही देवगढ़ का नाम इस्लामगढ़ रख दिया गया था. उसके पुत्र चांद सुल्तान के समय मुगलों के आक्रमणों के कारण राजधानी देवगढ़ से नागपुर शिफ्ट हो गई थी. यहां मोती टांका, नक्कारखाना, हाथीखाना, कचहरी, राजा की बैठक, खजाना व बादल महल दर्शनीय है.

Chhindwara Devgarh Kund
देवगढ़ किला मानचित्र का फोटो

यहां पढ़ें...

एक कहानी ये भी मालिक का वध करके कर्मचारी बना था राजा: देवगढ़ किले के संबंध में एक किवदंति है कि देवगढ़ पर घणसूर- रणसूर नामक दो ग्वाली बंधुओं का राज था. एक दिन उनके यहां काम करने वाले जाटवा नामक एक लड़के ने किले का दरवाजा अकेले ही उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर रख दिया. इसको बीस व्यक्तियों द्वारा भी उठाया नहीं जा सकता था. ग्वाली बंधु जाटवा की शक्ति से डर गए. उन्होंने जाटवा को धोखे से मारने की योजना बनाई. उसी रात्रि देवी ने जाटवा को सपने में इस योजना के बारे में बता दिया. दीवाली के बढ़ी ग्वाली बंधुओं ने जाटवा को लकड़ी की तलवार देकर भैंस का वध करने का आदेश दिया. जाटवा ने सपने के अनुसार लकड़ी की तलवार से भैंस के वध के साथ ही ग्वालि बंधुओं को भी मारकर कर खुद देवगढ़ का राजा बन गया.

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