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विलुप्ति की कगार पर बुंदेलखंड का अनोखा नृत्य 'दलदल घोड़ी', कभी इसके लिए जमती थीं महफिलें

बुंदेलखंड का अनोखा नृत्य दलदल घोड़ी धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है. छतरपुर के नौगांव में रहने वाले बालीदन प्रजापति ने विलुप्त होती इस नृत्य कला को लोगों के बीच पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. उनका मानना है कि ये काम थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं

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Published : Mar 18, 2019, 7:09 PM IST

छतरपुर। घोड़ी का रूप बनाकर अनोखे अंदाज में जो नृत्य आप देख रहे हैं, उसे दलदल घोड़ी नृत्य नाम से जाना जाता है. घोड़ी जैसे ढांचे को पहनकर किये जाने वाले नृत्य की ये शैली बुंदेलखंड को विश्व पटल पर पहचान दिलाती है. एक दौर था जब पूरे बुंदेलखंड में दलदल घोड़ी नृत्य लोगों के सिर चढ़कर बोलता था. आलम ये था कि जिस शादी में दलदल घोड़ी नृत्य हो गया, उसे उस दौर की सबसे शानदार शादी माना जाता था.

दलदल घोड़ी की खासियत यह है कि इसमें घोड़ी के रूप में सजा कलाकार इतना खूबसूरत दिखता है कि हकीकत के घोड़े को भी मात दे दे. अफसोस कि आधुनिकता के दौर में बुंदेलखंड की ये अनोखी कला विलुप्त हो रही है. लोग बताते हैं कि उन्होंने शादियों में करीब तीन दशक पहले दलदल घोड़ी देखी थी. लेकिन, लोगों को भरोसा है कि एक बार फिर शादियों में दलदल घोड़ी का क्रेज बढ़ेगा.

पैकेज


छतरपुर के नौगांव में रहने वाले बालीदन प्रजापति ने विलुप्त होती इस नृत्य कला को लोगों के बीच पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. उनका मानना है कि ये काम थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं. सालों बाद दलदल घोड़ी ने एक बार फिर लोगों के बीच दस्तक दी है, लेकिन इस कला को जीवित करने के लिए सरकार को भी कोई कदम उठाना चाहिये. सरकार को चाहिये की वह इस नृत्य के कलाकारों को भी आर्थिक रूप से मदद मुहैया कराए.

छतरपुर। घोड़ी का रूप बनाकर अनोखे अंदाज में जो नृत्य आप देख रहे हैं, उसे दलदल घोड़ी नृत्य नाम से जाना जाता है. घोड़ी जैसे ढांचे को पहनकर किये जाने वाले नृत्य की ये शैली बुंदेलखंड को विश्व पटल पर पहचान दिलाती है. एक दौर था जब पूरे बुंदेलखंड में दलदल घोड़ी नृत्य लोगों के सिर चढ़कर बोलता था. आलम ये था कि जिस शादी में दलदल घोड़ी नृत्य हो गया, उसे उस दौर की सबसे शानदार शादी माना जाता था.

दलदल घोड़ी की खासियत यह है कि इसमें घोड़ी के रूप में सजा कलाकार इतना खूबसूरत दिखता है कि हकीकत के घोड़े को भी मात दे दे. अफसोस कि आधुनिकता के दौर में बुंदेलखंड की ये अनोखी कला विलुप्त हो रही है. लोग बताते हैं कि उन्होंने शादियों में करीब तीन दशक पहले दलदल घोड़ी देखी थी. लेकिन, लोगों को भरोसा है कि एक बार फिर शादियों में दलदल घोड़ी का क्रेज बढ़ेगा.

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छतरपुर के नौगांव में रहने वाले बालीदन प्रजापति ने विलुप्त होती इस नृत्य कला को लोगों के बीच पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. उनका मानना है कि ये काम थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं. सालों बाद दलदल घोड़ी ने एक बार फिर लोगों के बीच दस्तक दी है, लेकिन इस कला को जीवित करने के लिए सरकार को भी कोई कदम उठाना चाहिये. सरकार को चाहिये की वह इस नृत्य के कलाकारों को भी आर्थिक रूप से मदद मुहैया कराए.
एमपी_छतरपुर
रिपोर्ट_जयप्रकाश
स्टोरी स्लग_बुंदेली झलक सबसे अलग "दलदल घोड़ी" [स्पेसल]
डेट_18/03/2019
छतरपुर| वैसे तो बुंदेलखंड अपनी संस्कृति और अनोखी कला कृति के लिए पूरे विश्व मे जाना जाता है| लेकिन बहुत कम लोग ही होंगे जो बुंदेलखंड की अनोखी नृत्य कला "दलदल घोड़ी" के बारे में जानते होंगे!

दल दल घोड़ी बुंदेलखंड की सबसे पुरानी लोक कला है जिसका उपयोग सबसे ज्यादा शादियों में किया जाता था लेकिन आज यह कला धीरे धीरे विलुप्त हो गई है आज से लगभग 50 से 60 वर्ष पूर्व यह कला बुंदेलखंड में सबसे अधिक प्रसिद्ध थी बुंदेलखंड में कहीं पर भी शादियां हुआ करती थी तो दलदल घोड़ी को जरूर बुलाया जाता था जिन शादियों में दलदल घोड़ी नाचने के लिए जाती थी लोग उसे उस समय की सबसे शानदार और बेहतरीन शादियों में से एक मानते थे लेकिन धीरे-धीरे आधुनिकता के चलते  इसका चलन धीरे धीरे  बंद हो गया  और अब यह कला हैं लगभग खत्म होने की कगार पर है|

दलदल घोड़ी वह नृत्य होता है जिसमें एक कलाकार घोड़े या घोड़ी नुमा कलाकृति के अंदर घुसकर कुछ इस प्रकार से नृत्य करता है कि दूर से देखने वालों को ऐसा प्रतीत होता है जैसे घोड़े पर बैठा कोई व्यक्ति घोड़े को नृत्य कर आ रहा हो लेकिन हकीकत में यह केवल एक कलाकृति होती है और इसे अपने हाथों से ही कलाकार बनाते हैं घोड़े नुमा कलाकृति को कुछ इस तरह सजाया जाता है कि यह हकीकत के घोड़े या घोड़ी को मात दे दे!

आधुनिकता के दौर में दलदल घोड़ी की जगह शादियों में आज डीजे और बैंड बाजे  ने ले ली ऐसे में दलदल घोड़ी जैसे लोक कला नृत्य का वापस शादियों में जलन होना कितना कारगर होगा यह महज सोचने वाली बात है|

लेकिन बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के नौगाँव क्षेत्र में रहने एक ग्रामीण बालादीन प्रजापति ने एक बार इस लोक कला को लोगों के बीच पहुंचाने की कोशिश सुरु कर दी है बालादीन का कहना है थोड़ी मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नही है भले ही सुरु में थोड़ा संघर्ष करना पड़ेगा लेकिन जल्द ही एक बार फिर दलदल घोड़ी बुंदेलखंड की शादियों में दिखाई देनी सुरु हो जाएगी|

डीजे और बैंड के जामने में बालादीन ने दलदल घोड़ी को एक बार फिर लोगों के बीच पहुंचा कर लोगों का मन जरूर मोह लिया है लेकिन इस कला को एक बार फिर जीवित कर इससे जीविका चलाना इतना आसान नही होगा | सरकार को चाहिए कि विलुप्त हो रही ऐसी कलाओं के लिए न सिर्फ पुनः जीवित करे बल्कि कलाकरों को आर्थिक रूप से मदत भी मुहैया कराए|

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