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'तीन दिन से नहीं जला चूल्हा, खाना मिला तो ठीक, नहीं तो भूखे सो जाते हैं बच्चे'

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Published : Apr 25, 2020, 1:58 PM IST

धीरे-धीरे लॉकडाउन की कुछ मार्मिक तस्वीरें सामने आने लगी हैं, जहां- तहां फंसे मजदूर अब बेहद परेशान हो रहे हैं. गरीब मजदूरों के पास अब खाने की दिक्कत होने लगी है. यही वजह है कि, अब मजदूर वर्ग के लोगों के सामने भुखमरी जैसे हालात पैदा हो रहे हैं.

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पेट पर वार भारी लॉकडाउन

छतरपुर। देरी रोड पर किराए के मकान में रामकुमार विश्वकर्मा अपनी पत्नी और तीन बेटों के साथ रहते हैं, घर के मुखिया राजकुमार दिव्यांग हैं और सिलाई का काम करते हैं. एक बेटा 10 साल का है, दूसरा बेटा 16, तीसरे की उम्र 14 साल है, गरीबी के चलते तीनों बेटे बीच में ही पढ़ाई छोड़ चुके हैं. लॉकडाउन की वजह से घर में खाने की बड़ी दिक्कत है. रामकुमार और उनकी पत्नी कहती है कि 3 दिनों से उनके घर में चूल्हा नहीं जला है.

पेट पर वार भारी लॉकडाउन

राम कुमार विश्वकर्मा के छोटे बेटे अजय का कहना है कि, कई दिनों से उसके घर में चूल्हा नहीं जला है. खिचड़ी बांटने वाले कुछ लोग आते हैं और उन्हीं की खिचड़ी एक बार खाकर पूरा दिन निकालना पड़ता है. कभी-कभी खिचड़ी के अलावा कच्ची सब्जी भी खा लेते हैं. जिससे सभी का पेट भर जाता है. अजय का कहना है कि, खिचड़ी के साथ वो कच्ची सब्जी खाता है और पानी पी लेता है, जिससे उसका पेट भर जाता है.

अजय के पिता रामकुमार विश्वकर्मा बताते हैं कि, घर में आटा नहीं है और ना ही गैस सिलेंडर है. कुछ दिनों तक रखे पैसों से खाना चलता रहा, लेकिन अब स्थिति खराब है, जो खाना बाहर से मिलता है उसी में ही पूरा दिन गुजारना पड़ता है. कई बार समाजसेवी खाना देने नहीं आते हैं, तो भूखा भी रहना पड़ता है. रामकुमार का कहना है कि, घर में ना तो राशन है और ना ही गैस, जब कभी थोड़ा बहुत खाना बनाते हैं तो बाहर से गाय के उपले बटोर कर लड़का लाता है, जिससे कभी-कभी चाय या चावल बन जाते हैं.

रामकुमार की पत्नी सुशीला का कहना है कि, घर में खाना और राशन खरीदने के पैसे नहीं हैं, मकान मालिक कई बार खाने के लिए दे देते हैं, लेकिन रोज कोई खाना नहीं देता, लिहाजा कई बार भूखा भी रहना पड़ता है.

मामला सामने आते ही, कई समाजसेवी संगठनों ने अब इस परिवार की मदद करने की बात कही है, लेकिन सरकार की तरफ से अभी तक कोई सहायता नहीं मिली है.

छतरपुर। देरी रोड पर किराए के मकान में रामकुमार विश्वकर्मा अपनी पत्नी और तीन बेटों के साथ रहते हैं, घर के मुखिया राजकुमार दिव्यांग हैं और सिलाई का काम करते हैं. एक बेटा 10 साल का है, दूसरा बेटा 16, तीसरे की उम्र 14 साल है, गरीबी के चलते तीनों बेटे बीच में ही पढ़ाई छोड़ चुके हैं. लॉकडाउन की वजह से घर में खाने की बड़ी दिक्कत है. रामकुमार और उनकी पत्नी कहती है कि 3 दिनों से उनके घर में चूल्हा नहीं जला है.

पेट पर वार भारी लॉकडाउन

राम कुमार विश्वकर्मा के छोटे बेटे अजय का कहना है कि, कई दिनों से उसके घर में चूल्हा नहीं जला है. खिचड़ी बांटने वाले कुछ लोग आते हैं और उन्हीं की खिचड़ी एक बार खाकर पूरा दिन निकालना पड़ता है. कभी-कभी खिचड़ी के अलावा कच्ची सब्जी भी खा लेते हैं. जिससे सभी का पेट भर जाता है. अजय का कहना है कि, खिचड़ी के साथ वो कच्ची सब्जी खाता है और पानी पी लेता है, जिससे उसका पेट भर जाता है.

अजय के पिता रामकुमार विश्वकर्मा बताते हैं कि, घर में आटा नहीं है और ना ही गैस सिलेंडर है. कुछ दिनों तक रखे पैसों से खाना चलता रहा, लेकिन अब स्थिति खराब है, जो खाना बाहर से मिलता है उसी में ही पूरा दिन गुजारना पड़ता है. कई बार समाजसेवी खाना देने नहीं आते हैं, तो भूखा भी रहना पड़ता है. रामकुमार का कहना है कि, घर में ना तो राशन है और ना ही गैस, जब कभी थोड़ा बहुत खाना बनाते हैं तो बाहर से गाय के उपले बटोर कर लड़का लाता है, जिससे कभी-कभी चाय या चावल बन जाते हैं.

रामकुमार की पत्नी सुशीला का कहना है कि, घर में खाना और राशन खरीदने के पैसे नहीं हैं, मकान मालिक कई बार खाने के लिए दे देते हैं, लेकिन रोज कोई खाना नहीं देता, लिहाजा कई बार भूखा भी रहना पड़ता है.

मामला सामने आते ही, कई समाजसेवी संगठनों ने अब इस परिवार की मदद करने की बात कही है, लेकिन सरकार की तरफ से अभी तक कोई सहायता नहीं मिली है.

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