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Chhatarpur Diwari Dance: खजुराहो में दिवारी नृत्य की धूम, हाथ में मोर का पंख लेकर मौनियों संग थिरके सैलानी

विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थली खजुराहो में दीपावली के दूसरे दिन पारंपरिक नृत्य दीवारी की धूम देखने को मिली. यहां समूचे बुंदेलखंड से पहुंची दिवारी नृत्य की टोलियां अपनी प्रस्तुतियां दी. इस दौरान विदेशी पर्यटक नृत्य को देख अपने आपको रोक नहीं सके. (chhatarpur divari dance) (Khajuraho Tourists dancing Diwari Dance) (Khajuraho tourist Diwari dance) (chhatarpur Diwari Nritya) (Matangeshwar Temple in Chhatarpur)

Chhatarpur Diwari Dance
खजुराहो में दिवारी नृत्य की धूम
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Published : Oct 27, 2022, 8:49 AM IST

Updated : Oct 27, 2022, 10:21 AM IST

छतरपुर। खजुराहो में दिवाली के दूसरे दिन होने वाले बुंदेलखंड के पारंपरिक नृत्य दीवारी की धूम देखने को मिली. यहां बुंदेलखंड के कई इलाके से पहुंची दिवारी नृत्य की टोलियां मतंगेश्वर महादेव मंदिर के सामने अपनी प्रस्तुतियां देती नजर आई. पारंपरिक नृत्य की यह धूम पूरा दिन बनी रही. हालांकि, सूर्य ग्रहण होने के कारण नृत्य की रौनक में थोड़ी कमी का भी एहसास हुआ. फिर भी विदेशी पर्यटक यहां के लोगों को नृत्य करते देख अपने आपको रोक नहीं सके और जमकर टोलियों के साथ हाथ में मोर के पंख का बंडल लेकर नृत्य करने लगे.(chhatarpur divari dance) (Khajuraho Tourists dancing Diwari Dance)

खजुराहो में दिवारी नृत्य की धूम

भगवान श्री कृष्ण को समर्पित नृत्य: बुंदेलखंड की अनोखी परंपराओं में से एक दिवारी भी है. जो अपने आप में एक अलग महत्व रखती है. बुंदेलखंड के अधिकांश ग्रामीण अंचलों में आज भी लोग पुरानी संस्कृति एवं परंपराओं को संजोए हुए हैं. दिवाली के एक दिन बाद लोग मोनिया नृत्य करते हैं. यह नृत्य भगवान श्री कृष्ण को समर्पित होता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की याद में जो लोग आज के दिन उनकी भक्ति करते हैं उनके पूरे जीवन काल में उन्हें कभी किसी भी प्रकार का कोई दुख नहीं होता है. यही वजह है कि गांव के युवा एवं बुजुर्ग इस व्रत के लिए पूरे दिन मौन रहते हैं और कुछ खाते पीते भी नहीं है.

पारंपरिक दिवारी नृत्य: दिवाली के दूसरे दिन उस समय गाए जाते हैं. जब मौनिया मौन व्रत रख कर गांव-गांव में घूमते हैं. दीपावली के पूजन के बाद मध्य रात्रि में मौनिया-व्रत शुरू हो जाता है. गांव के अहीर-गडरिया और पशु पालक तालाब, नदी में नहा कर, सज-धज कर मौन व्रत लेते हैं. इसी कारण इन्हें मौनिया भी कहा जाता है. (Matangeshwar Temple in Chhatarpur)

मतंगेश्वर मंदिर में हजारों की संख्या के पहुंचे श्रद्धालु, दिवाली के बाद दिवारी नृत्य में जमकर थिरके लोग

मैनियों संग थिरके सैलानी: मौन चराने वाले मौनियों के अनुसार द्वापर युग से प्रचलित इस परंपरा के अनुसार विपत्तियों को दूर करने के लिए ग्वाले मौन चराने का कठिन व्रत रखते हैं. यह मौन व्रत बारह वर्ष तक रखना पड़ता है. तेरहवें वर्ष में मथुरा व वृंदावन जाकर मौन चराना पड़ता है, वहां यमुना नदी के तट पर बसे विश्राम घाट में पूजन का व्रत तोड़ना पड़ता है. शुरुआत में पांच मोर पंख लेने पड़ते हैं. प्रतिवर्ष पांच-पांच पंख जुड़ते रहते हैं. इस प्रकार उनके मुट्ठे में बारह वर्ष में साठ मोर पंखों का जोड़ इकट्ठा हो जाता है.(chhatarpur divari dance) (Khajuraho Tourists dancing Diwari Dance) (Khajuraho tourist Diwari dance) (chhatarpur Diwari Nritya) (Matangeshwar Temple in Chhatarpur)

छतरपुर। खजुराहो में दिवाली के दूसरे दिन होने वाले बुंदेलखंड के पारंपरिक नृत्य दीवारी की धूम देखने को मिली. यहां बुंदेलखंड के कई इलाके से पहुंची दिवारी नृत्य की टोलियां मतंगेश्वर महादेव मंदिर के सामने अपनी प्रस्तुतियां देती नजर आई. पारंपरिक नृत्य की यह धूम पूरा दिन बनी रही. हालांकि, सूर्य ग्रहण होने के कारण नृत्य की रौनक में थोड़ी कमी का भी एहसास हुआ. फिर भी विदेशी पर्यटक यहां के लोगों को नृत्य करते देख अपने आपको रोक नहीं सके और जमकर टोलियों के साथ हाथ में मोर के पंख का बंडल लेकर नृत्य करने लगे.(chhatarpur divari dance) (Khajuraho Tourists dancing Diwari Dance)

खजुराहो में दिवारी नृत्य की धूम

भगवान श्री कृष्ण को समर्पित नृत्य: बुंदेलखंड की अनोखी परंपराओं में से एक दिवारी भी है. जो अपने आप में एक अलग महत्व रखती है. बुंदेलखंड के अधिकांश ग्रामीण अंचलों में आज भी लोग पुरानी संस्कृति एवं परंपराओं को संजोए हुए हैं. दिवाली के एक दिन बाद लोग मोनिया नृत्य करते हैं. यह नृत्य भगवान श्री कृष्ण को समर्पित होता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की याद में जो लोग आज के दिन उनकी भक्ति करते हैं उनके पूरे जीवन काल में उन्हें कभी किसी भी प्रकार का कोई दुख नहीं होता है. यही वजह है कि गांव के युवा एवं बुजुर्ग इस व्रत के लिए पूरे दिन मौन रहते हैं और कुछ खाते पीते भी नहीं है.

पारंपरिक दिवारी नृत्य: दिवाली के दूसरे दिन उस समय गाए जाते हैं. जब मौनिया मौन व्रत रख कर गांव-गांव में घूमते हैं. दीपावली के पूजन के बाद मध्य रात्रि में मौनिया-व्रत शुरू हो जाता है. गांव के अहीर-गडरिया और पशु पालक तालाब, नदी में नहा कर, सज-धज कर मौन व्रत लेते हैं. इसी कारण इन्हें मौनिया भी कहा जाता है. (Matangeshwar Temple in Chhatarpur)

मतंगेश्वर मंदिर में हजारों की संख्या के पहुंचे श्रद्धालु, दिवाली के बाद दिवारी नृत्य में जमकर थिरके लोग

मैनियों संग थिरके सैलानी: मौन चराने वाले मौनियों के अनुसार द्वापर युग से प्रचलित इस परंपरा के अनुसार विपत्तियों को दूर करने के लिए ग्वाले मौन चराने का कठिन व्रत रखते हैं. यह मौन व्रत बारह वर्ष तक रखना पड़ता है. तेरहवें वर्ष में मथुरा व वृंदावन जाकर मौन चराना पड़ता है, वहां यमुना नदी के तट पर बसे विश्राम घाट में पूजन का व्रत तोड़ना पड़ता है. शुरुआत में पांच मोर पंख लेने पड़ते हैं. प्रतिवर्ष पांच-पांच पंख जुड़ते रहते हैं. इस प्रकार उनके मुट्ठे में बारह वर्ष में साठ मोर पंखों का जोड़ इकट्ठा हो जाता है.(chhatarpur divari dance) (Khajuraho Tourists dancing Diwari Dance) (Khajuraho tourist Diwari dance) (chhatarpur Diwari Nritya) (Matangeshwar Temple in Chhatarpur)

Last Updated : Oct 27, 2022, 10:21 AM IST
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