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लोकसभा के रण में अकेले पड़े सीएम कमलनाथ, पास या फेल तय करेगा लोकसभा का परिणाम?

मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ के लिए लोकसभा चुनाव चुनोतियों से भरा हुआ माना जा रहा है. क्योंकि बेटे नकुलनाथ को लोकसभा पहुंचाने के साथ ही उन्हें खुद भी विधानसभा में एंट्री के लिए चुनावी जंग में उतरना है. वचन पत्र के वादों और पूरे प्रदेश में प्रचार की जिम्मेदारी भी कमलनाथ के कंधों पर है

सीएम कमलनाथ
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Published : Mar 23, 2019, 1:27 PM IST

Updated : Mar 23, 2019, 3:27 PM IST

भोपाल। अपने रणनीतिक कौशल के जरिये 15 साल बाद सूबे की सत्ता में कांग्रेस की वापसी कराने वाले सीएम कमलनाथ को लोकसभा चुनाव में कठिन अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरना होगा. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदों पर खरा उतरने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें मध्यप्रदेश में लोकसभा के रण का रणनीतिकार बनाया है.

सूबे की कमान संभालने के बाद से पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की दोहरी भूमिका निभा रहे कमलनाथ के लिए परिस्थितियां थोड़ी कठिन नजर आ रही हैं. जानकार मानते हैं कि उन्हें लोकसभा चुनाव में चार तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. बेटे नकुलनाथ को लोकसभा पहुंचाने के साथ ही उन्हें खुद भी विधानसभा में एंट्री के लिए चुनावी जंग में उतरना है. वचन पत्र के वादों और पूरे प्रदेश में प्रचार की जिम्मेदारी भी कमलनाथ के कंधों पर है.

यही वजह है कि कमलनाथ के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं माना जा रहा है. कांग्रेस प्रवक्ता अजय यादव कहते हैं कि अगर लोकसभा चुनाव कमलनाथ के लिए अग्निपरीक्षा ही माना जा रहा है. वे इस अग्नि परीक्षा पर खरा उतरेंगे.

वीडियो

खास बात यह है कि विधानसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस की परिस्थितियां तेजी से बदली हैं. विधानसभा चुनाव में पार्टी के स्टार प्रचारक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाने के बाद प्रदेश में कांग्रेस को उनकी कमी खलती दिख रही है. इसके साथ ही दिग्विजय सिंह, अजय सिंह और सुरेश पचौरी जैसे बड़े नेता विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में अब तक सक्रिय नहीं दिखे हैं, जिससे कमलनाथ की चुनौतियां बढ़ गयी हैं. हालांकि कांग्रेस को भरोसा है कि अपने तीन महीने के कार्यकाल और वचन पत्र के वादों को पूरा करने का दावा करने वाले कमलनाथ इन सभी चुनौतियों पर खरा उतरेंगे.

वहीं कांग्रेस के वचन पत्र के वादे निभाने के मामले में सीएम कमलनाथ दावा कर चुके हैं कि सरकार के 76 दिनों के कार्यकाल में ही वे 13 बड़े वचन निभा चुके हैं. कर्ज माफी और ओबीसी आरक्षण जैसे बड़े वचनों को पूरा करने का दावा किया जा रहा है. यही वजह है कि कमलनाथ के बतौर मुख्यमंत्री किए गए कामों का लोकसभा चुनाव में एक तरह से लिटमस टेस्ट होगा. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि कमलनाथ विधानसभा की तरह ही लोकसभा में अपना दम दिखा पाएंगे या नहीं.

भोपाल। अपने रणनीतिक कौशल के जरिये 15 साल बाद सूबे की सत्ता में कांग्रेस की वापसी कराने वाले सीएम कमलनाथ को लोकसभा चुनाव में कठिन अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरना होगा. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदों पर खरा उतरने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें मध्यप्रदेश में लोकसभा के रण का रणनीतिकार बनाया है.

सूबे की कमान संभालने के बाद से पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की दोहरी भूमिका निभा रहे कमलनाथ के लिए परिस्थितियां थोड़ी कठिन नजर आ रही हैं. जानकार मानते हैं कि उन्हें लोकसभा चुनाव में चार तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. बेटे नकुलनाथ को लोकसभा पहुंचाने के साथ ही उन्हें खुद भी विधानसभा में एंट्री के लिए चुनावी जंग में उतरना है. वचन पत्र के वादों और पूरे प्रदेश में प्रचार की जिम्मेदारी भी कमलनाथ के कंधों पर है.

यही वजह है कि कमलनाथ के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं माना जा रहा है. कांग्रेस प्रवक्ता अजय यादव कहते हैं कि अगर लोकसभा चुनाव कमलनाथ के लिए अग्निपरीक्षा ही माना जा रहा है. वे इस अग्नि परीक्षा पर खरा उतरेंगे.

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खास बात यह है कि विधानसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस की परिस्थितियां तेजी से बदली हैं. विधानसभा चुनाव में पार्टी के स्टार प्रचारक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाने के बाद प्रदेश में कांग्रेस को उनकी कमी खलती दिख रही है. इसके साथ ही दिग्विजय सिंह, अजय सिंह और सुरेश पचौरी जैसे बड़े नेता विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में अब तक सक्रिय नहीं दिखे हैं, जिससे कमलनाथ की चुनौतियां बढ़ गयी हैं. हालांकि कांग्रेस को भरोसा है कि अपने तीन महीने के कार्यकाल और वचन पत्र के वादों को पूरा करने का दावा करने वाले कमलनाथ इन सभी चुनौतियों पर खरा उतरेंगे.

वहीं कांग्रेस के वचन पत्र के वादे निभाने के मामले में सीएम कमलनाथ दावा कर चुके हैं कि सरकार के 76 दिनों के कार्यकाल में ही वे 13 बड़े वचन निभा चुके हैं. कर्ज माफी और ओबीसी आरक्षण जैसे बड़े वचनों को पूरा करने का दावा किया जा रहा है. यही वजह है कि कमलनाथ के बतौर मुख्यमंत्री किए गए कामों का लोकसभा चुनाव में एक तरह से लिटमस टेस्ट होगा. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि कमलनाथ विधानसभा की तरह ही लोकसभा में अपना दम दिखा पाएंगे या नहीं.

Intro:भोपाल। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी कार्यशैली के चलते सबका ध्यान खींच रहे हैं और विधानसभा चुनाव के पहले किए गए वचनों को निभा कर एक संवेदनशील और काम करने वाले मुख्यमंत्री के तौर पर छवि बना रहे हैं। लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव मैं उन्हें कठिन अग्नि परीक्षा के दौर से गुजरना होगा। दरअसल लोकसभा चुनाव में उन्हें व्यक्तिगत तौर पर और प्रदेश अध्यक्ष के साथ साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने आप को साबित करना होगा। हालांकि विधानसभा चुनाव में अपने रणनीतिक कौशल के जरिए 15 साल बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी करा चुके कमलनाथ से कांग्रेस को उम्मीद है कि वह अपनी तमाम परीक्षाओं पर खरे उतरेंगे।


Body:कमलनाथ की अग्नि परीक्षा कैसे।

आगामी लोकसभा चुनाव को कमलनाथ की अग्नि परीक्षा का जाना गलत नहीं है इन 4 कारणों के कारण कमलनाथ के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है

1- विधानसभा उपचुनाव में खुद होंगे मैदान में - मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ के लिए 6 माह के अंदर मध्य प्रदेश में विधायक बनना जरूरी है। इसके लिए छिंदवाड़ा से उनके करीबी कांग्रेस के विधायक रहे दीपक सक्सेना उनके लिए सीट खाली कर चुके हैं। आगामी 29 अप्रैल को छिंदवाड़ा विधानसभा का उपचुनाव है। हालांकि कमलनाथ के लिए यह बड़ी चुनौती नहीं है।लेकिन अपनी अन्य जिम्मेदारियों के साथ वह अपने ही चुनाव में कम वक्त दे पाएंगे।

2- अपनी संसदीय सीट से बेटे नकुल नाथ को चुनाव जिताना - कमलनाथ की दूसरी बड़ी परीक्षा होगी, छिंदवाड़ा संसदीय सीट से अपने बेटे नकुल नाथ को चुनाव जिताना। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ आगामी लोकसभा चुनाव में मैदान में नहीं होंगे। ऐसे में उन्होंने अपने बेटे को अपनी संसदीय सीट छिंदवाड़ा से चुनाव मैदान में उतारा है। बतौर नेता नकुल नाथ की सक्रियता छिंदवाड़ा में कम रही है। ऐसे में अपने बेटे को चुनाव जिताने कमलनाथ की ही जिम्मेदारी होगी।

3- प्रदेश अध्यक्ष के नाते कांग्रेस को मध्य प्रदेश से ज्यादा से ज्यादा सीटें जिताना - विधानसभा चुनाव के पहले मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बैठे कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनने के बाद भी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया नहीं गया है। ऐसे में उनके ऊपर जिम्मेदारी है कि वह मध्य प्रदेश की 29 सीटों में से ज्यादा से ज्यादा सीटें कांग्रेस की झोली में डालें। पिछले लोकसभा चुनाव के निराशाजनक परिणाम से बेहतर परिणाम देना कमलनाथ के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं होगा।

4 - मुख्यमंत्री के कार्य काल के तौर पर परीक्षा - मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन चुकी है, कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया है। विधानसभा चुनाव के कांग्रेस के वचन पत्र के वचन निभाने के मामले में कमलनाथ खुद बता चुके हैं कि उन्होंने 76 दिन में 13 ही वचन निभा दिए। जिस में कर्ज माफी और ओबीसी आरक्षण जैसे बड़े वचन भी निभाने की बात है। कमलनाथ के बतौर मुख्यमंत्री के तौर पर किए गए कामों का लोकसभा चुनाव में एक तरह से लिटमस टेस्ट होगा।


Conclusion:कांग्रेस को भरोसा है कि कमलनाथ अपनी अग्नि परीक्षा में सफल होंगे। मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है कि कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए पूरी गंभीर है। यदि से अग्निपरीक्षा माना जाए तो कांग्रेस और कमलनाथ अग्नि परीक्षा में सफलता के साथ बाहर निकलेंगे। जहां तक कमलनाथ के खुद उप चुनाव लड़ने का सवाल है या नकुल नाथ का छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ने का सवाल है। तो वहां की जनता में अपार उत्साह है, दोनों को भारी से भारी बहुमत से देश के तमाम रिकॉर्ड तोड़ कर चुनाव जिताने का काम छिंदवाड़ा की जनता करेगी। जहां तक मध्य प्रदेश की बात है, तो मध्य प्रदेश की जनता को कांग्रेस पार्टी ने अपने वादे वचन पत्र के आधार पर किए थे। हमने करीब 3 महीने के अंदर 83 से ज्यादा वचन पूरे कर दिए हैं, लगभग 70 फ़ीसदी वचन पत्र पूरा हो चुका है। प्रदेश की जनता ने कांग्रेस पर विश्वास किया है, हम अपने किए कामों के आधार पर प्रदेश की जनता के बीच में जाएंगे और दूसरी तरफ भाजपा के जुमले बाजों की सरकार है, जिन्होंने कोई वादा पूरा नहीं किया है। चाहे 15 लाख की बात हो, 2 करोड़ रोजगार की बात हो, आज बेरोजगारी 45 साल में सबसे ज्यादा ऊपर आ गई है। भाजपा की सरकार जवाब नहीं दे पाएगी, इसलिए प्रदेश की जनता कांग्रेस पर विश्वास करेगी और अग्नि परीक्षा में कांग्रेस और कमलनाथ सफल होंगे। हम मध्य प्रदेश में 20 से ज्यादा सीटें जीतेंगे।
Last Updated : Mar 23, 2019, 3:27 PM IST
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