भोपाल। अपने रणनीतिक कौशल के जरिये 15 साल बाद सूबे की सत्ता में कांग्रेस की वापसी कराने वाले सीएम कमलनाथ को लोकसभा चुनाव में कठिन अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरना होगा. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदों पर खरा उतरने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें मध्यप्रदेश में लोकसभा के रण का रणनीतिकार बनाया है.
सूबे की कमान संभालने के बाद से पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की दोहरी भूमिका निभा रहे कमलनाथ के लिए परिस्थितियां थोड़ी कठिन नजर आ रही हैं. जानकार मानते हैं कि उन्हें लोकसभा चुनाव में चार तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. बेटे नकुलनाथ को लोकसभा पहुंचाने के साथ ही उन्हें खुद भी विधानसभा में एंट्री के लिए चुनावी जंग में उतरना है. वचन पत्र के वादों और पूरे प्रदेश में प्रचार की जिम्मेदारी भी कमलनाथ के कंधों पर है.
यही वजह है कि कमलनाथ के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं माना जा रहा है. कांग्रेस प्रवक्ता अजय यादव कहते हैं कि अगर लोकसभा चुनाव कमलनाथ के लिए अग्निपरीक्षा ही माना जा रहा है. वे इस अग्नि परीक्षा पर खरा उतरेंगे.
खास बात यह है कि विधानसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस की परिस्थितियां तेजी से बदली हैं. विधानसभा चुनाव में पार्टी के स्टार प्रचारक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाने के बाद प्रदेश में कांग्रेस को उनकी कमी खलती दिख रही है. इसके साथ ही दिग्विजय सिंह, अजय सिंह और सुरेश पचौरी जैसे बड़े नेता विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में अब तक सक्रिय नहीं दिखे हैं, जिससे कमलनाथ की चुनौतियां बढ़ गयी हैं. हालांकि कांग्रेस को भरोसा है कि अपने तीन महीने के कार्यकाल और वचन पत्र के वादों को पूरा करने का दावा करने वाले कमलनाथ इन सभी चुनौतियों पर खरा उतरेंगे.
वहीं कांग्रेस के वचन पत्र के वादे निभाने के मामले में सीएम कमलनाथ दावा कर चुके हैं कि सरकार के 76 दिनों के कार्यकाल में ही वे 13 बड़े वचन निभा चुके हैं. कर्ज माफी और ओबीसी आरक्षण जैसे बड़े वचनों को पूरा करने का दावा किया जा रहा है. यही वजह है कि कमलनाथ के बतौर मुख्यमंत्री किए गए कामों का लोकसभा चुनाव में एक तरह से लिटमस टेस्ट होगा. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि कमलनाथ विधानसभा की तरह ही लोकसभा में अपना दम दिखा पाएंगे या नहीं.