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सोनपुर गांव के कुम्हारों की अनूठी कहानी, पारा प्रदर्शनी में मिट्टी के बर्तन बने आकर्षण का केंद्र

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में कुम्हार पारा प्रदर्शनी का हुआ आयोजन, ओडिशा के सोनपुर गांव से आये कलाकारों ने अपने पारंपरिक मटकों, मिट्टी के दीये और मूर्तियों को बनाया.

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Published : Apr 3, 2019, 7:58 PM IST

कुम्हारों ने लगाई प्रदर्शनी

भोपाल। राजधानी के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में कुम्हार पारा प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. जिसमें ओडिशा के सोनपुर गांव से आये कलाकारों ने अपने पारंपरिक मटकों, मिट्टी के दीये और मूर्तियों को बनाया. प्रदर्शनी में कुम्हारी कला में लगे लोगों की जनसंख्या, उनसे जुड़े सामाजिक - आर्थिक पहलुओं, पारंपरिक ज्ञान मान्यताएं, अनुष्ठान, उत्पादन की तकनीक और परंपराओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया.

संग्रहालय के जनसंपर्क अधिकारी अशोक शर्मा ने बताया कि सोनपुर गांव के लोग मानते हैं कि सोनपुर के पास एक क्षेत्र था जो कि रावण की लंका थी. वह वर्तमान श्रीलंका को रावण की लंका नहीं मानते हैं. इस गांव मे रहने वाले सभी लोग कुम्हार थे और राज्य की समृद्धि में योगदान देने के लिए मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां बनाते थे. गांव मे छोटे दीयों की जगह बड़े दीयों का इस्तेमाल किया जाता है. कलाकृतियों का इस्तेमाल त्योहारों, अनुष्ठानों और दैनिक उपयोग में किया जाता है. अपनी इसी पारंपरिक कला को संग्रहालय में आये कलाकरों ने प्रदर्शित किया है.

कुम्हारों ने लगाई प्रदर्शनी

अशोक शर्मा ने बताया कि सोनपुर गांव के लोगों की मान्यता है कि हनुमान जी वहां लंकापति हनुमान के रूप में विराजते हैं. मान्यता के अनुसार वहां के लोग मिट्टी के हनुमान बनाते हैं और उसके पूंछ में कपड़ा लपेट कर आग लगाया जाता है. और मूर्ति के पैरों में चक्के लगाए जाते हैं जिसके सहारे मूर्ति को पूरे गांव में घुमाया जाता है और अंत में रावण के नीचे रखकर रावण दहन किया जाता है. इतने साल बाद भी सोनपुर गांव अपनी कला को सहेजे हुए है.

भोपाल। राजधानी के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में कुम्हार पारा प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. जिसमें ओडिशा के सोनपुर गांव से आये कलाकारों ने अपने पारंपरिक मटकों, मिट्टी के दीये और मूर्तियों को बनाया. प्रदर्शनी में कुम्हारी कला में लगे लोगों की जनसंख्या, उनसे जुड़े सामाजिक - आर्थिक पहलुओं, पारंपरिक ज्ञान मान्यताएं, अनुष्ठान, उत्पादन की तकनीक और परंपराओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया.

संग्रहालय के जनसंपर्क अधिकारी अशोक शर्मा ने बताया कि सोनपुर गांव के लोग मानते हैं कि सोनपुर के पास एक क्षेत्र था जो कि रावण की लंका थी. वह वर्तमान श्रीलंका को रावण की लंका नहीं मानते हैं. इस गांव मे रहने वाले सभी लोग कुम्हार थे और राज्य की समृद्धि में योगदान देने के लिए मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां बनाते थे. गांव मे छोटे दीयों की जगह बड़े दीयों का इस्तेमाल किया जाता है. कलाकृतियों का इस्तेमाल त्योहारों, अनुष्ठानों और दैनिक उपयोग में किया जाता है. अपनी इसी पारंपरिक कला को संग्रहालय में आये कलाकरों ने प्रदर्शित किया है.

कुम्हारों ने लगाई प्रदर्शनी

अशोक शर्मा ने बताया कि सोनपुर गांव के लोगों की मान्यता है कि हनुमान जी वहां लंकापति हनुमान के रूप में विराजते हैं. मान्यता के अनुसार वहां के लोग मिट्टी के हनुमान बनाते हैं और उसके पूंछ में कपड़ा लपेट कर आग लगाया जाता है. और मूर्ति के पैरों में चक्के लगाए जाते हैं जिसके सहारे मूर्ति को पूरे गांव में घुमाया जाता है और अंत में रावण के नीचे रखकर रावण दहन किया जाता है. इतने साल बाद भी सोनपुर गांव अपनी कला को सहेजे हुए है.

Intro:भोपाल- राजधानी के मानव संग्रहालय में इन दिनों कुम्हार पारा प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है,जिसमें उड़ीसा के सोनपुर गाँव से आये कलाकारों ने अपने पारंपरिक मटकों, दियों और मूर्तियों को बनाया है।


Body:इस बारे में जानकारी देते हुए संग्रहालय के जनसंपर्क अधिकारी अशोक शर्मा ने बताया कि सोनपुर गाँव के लोग मानते है कि सोनपुर के पास एक क्षेत्र था जो कि रावण की लंका थी, वह यह नहीं मानते कि वर्तमान श्री लंका,रावण की लंका नहीं है।
इस गाँव मे रहने वाले सभी लोग कुम्हार थे और राज्य की समृद्धि में योगदान देने के लिए मिट्टी के बर्तन,मूर्तियां बनाते थे।
अपनी इसी पारंपरिक कला को संग्रहालय में आये कलाकरों ने प्रदर्शित किया है।


Conclusion:इन बनाई गई कलाकृतियों में मान्यता है कि हनुमान जी यहाँ लंकापति हनुमान के रूप में विराजते हैं।
साथ ही गाँव मे छोटे दियों की जगह बड़े दियों का इस्तेमाल किया जाता है।
इतने साल बाद भी सोनपुर गाँव अपनी कला को सहेजे हुए है और इन कलाकृतियों का उपयोग त्यौहारों, अनुष्ठानों और दैनिक उपयोग में किया जाता है।
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