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सियासी पिच पर साध्वी बचा पायेंगी बीजेपी का गढ़, या दिग्विजय करेंगे वापसी

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Published : May 11, 2019, 12:42 AM IST

भोपाल लोकसभा सीट पर इस बार पूरे देश की निगाहें टिकी हैं क्योंकि यहां बीजेपी की साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का मुकाबला कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले दिग्विजय सिंह से है. भोपाल लोकसभा सीट बीजेपी का मजबूत गढ़ मानी जाती है, लेकिन इस बार बीजेपी की राह आसान नहीं है.

बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह

भोपाल। एक शहर जो न रुकता है-न थकता है, हर पल दुनिया के साथ कदमताल करता है. जिसे झीलों की नगरी भोपाल के नाम से जाना जाता है. जिसके सीने पर कई जख्म हैं तो माथे पर उपलब्धियों से भरे कई ताज. जो देश के हृदय प्रदेश की सियासत का सबसे बड़ा केंद्र है और इसी सियासत ने इस बार शहर का नाम पूरे देश में फैला दिया है क्योंकि यहां कांग्रेस के चाणक्य का मुकाबला बीजेपी की साध्वी से है, जिस पर पूरे देश की निगाहें हैं.

कभी कांग्रेस के दबदबे वाली भोपाल लोकसभा सीट अब बीजेपी के मजबूत किले में तब्दील हो चुकी है. बात अगर शहर-ए-नवाब यानि भोपाल के सियासी इतिहास की करें तो यहां अब तक आठ बार बीजेपी का कमल खिला है, जबकि कांग्रेस भी जीत का सिक्सर लगा चुकी है. वहीं, जनसंघ और लोकदल के प्रत्याशी ने भी यहां जीत दर्ज की है. इस सीट से हमेशा दिग्गज ही चुनाव जीतते रहे हैं. पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और कैलाश जोशी जैसे दिग्गज इस सीट का प्रतिनिधित्व देश की सबसे बड़ी पंचायत में कर चुके हैं. हालांकि, 1989 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है पार्टी ने यहां प्रत्याशी भी बदले, लेकिन उसकी जीत का सिलसिला बरकरार रहा.

भोपाल लोकसभा सीट पर टिकी हैं देशभर की निगाहें

भोपाल लोकसभा सीट के 21 लाख 41 हजार 88 मतदाता इस बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 11 लाख 20 हजार 108 पुरुष मतदाता और 10 लाख 20 हजार 789 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 180 है. इस बार 2510 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें 462 को संवेदनशील और 58 बूथ को अतिसंवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है.

भोपाल संसदीय क्षेत्र के तहत गोविंदपुरा, नरेला, भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, हुजूर, बैरसिया और सीहोर विधानसभा सीटें आती हैं, पिछले विधानसभा चुनाव में इन आठ सीटों में से पांच पर बीजेपी का कमल खिला था, जबकि तीन पर कांग्रेस ने फतह हासिल की थी. 2014 में इस सीट पर बीजेपी के आलोक संजर ने कांग्रेस के पीसी शर्मा को हराया था.

ढाई दशक से इस सीट पर हार का सामना कर रही कांग्रेस ने बड़ा दांव चलते हुए पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बीजेपी का गढ़ बचाने की जिम्मेदारी सौंपी है. इन दोनों में आर-पार की लड़ाई मानी जा रही है. इस सीट के नतीजों पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं.

खास बात ये है कि भोपाल के खामोश वोटर दोनों दलों के प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ा रहे हैं. भोपाल में एक तरफ जहां विकास के दावे और वादे का शोर है, वहीं धर्म से जुड़े मुद्दे भी सियासी हवा में उड़ रहे हैं. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि भोपाल के इस रण में साध्वी बीजेपी का विजय पताका फहरा पाती हैं, या कांग्रेस के चाणक्य ढाई दशक का वनवास खत्म करा पाते हैं. इसका खुलासा तो 23 मई को आने वाले नतीजे ही करेंगे.

भोपाल। एक शहर जो न रुकता है-न थकता है, हर पल दुनिया के साथ कदमताल करता है. जिसे झीलों की नगरी भोपाल के नाम से जाना जाता है. जिसके सीने पर कई जख्म हैं तो माथे पर उपलब्धियों से भरे कई ताज. जो देश के हृदय प्रदेश की सियासत का सबसे बड़ा केंद्र है और इसी सियासत ने इस बार शहर का नाम पूरे देश में फैला दिया है क्योंकि यहां कांग्रेस के चाणक्य का मुकाबला बीजेपी की साध्वी से है, जिस पर पूरे देश की निगाहें हैं.

कभी कांग्रेस के दबदबे वाली भोपाल लोकसभा सीट अब बीजेपी के मजबूत किले में तब्दील हो चुकी है. बात अगर शहर-ए-नवाब यानि भोपाल के सियासी इतिहास की करें तो यहां अब तक आठ बार बीजेपी का कमल खिला है, जबकि कांग्रेस भी जीत का सिक्सर लगा चुकी है. वहीं, जनसंघ और लोकदल के प्रत्याशी ने भी यहां जीत दर्ज की है. इस सीट से हमेशा दिग्गज ही चुनाव जीतते रहे हैं. पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और कैलाश जोशी जैसे दिग्गज इस सीट का प्रतिनिधित्व देश की सबसे बड़ी पंचायत में कर चुके हैं. हालांकि, 1989 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है पार्टी ने यहां प्रत्याशी भी बदले, लेकिन उसकी जीत का सिलसिला बरकरार रहा.

भोपाल लोकसभा सीट पर टिकी हैं देशभर की निगाहें

भोपाल लोकसभा सीट के 21 लाख 41 हजार 88 मतदाता इस बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 11 लाख 20 हजार 108 पुरुष मतदाता और 10 लाख 20 हजार 789 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 180 है. इस बार 2510 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें 462 को संवेदनशील और 58 बूथ को अतिसंवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है.

भोपाल संसदीय क्षेत्र के तहत गोविंदपुरा, नरेला, भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, हुजूर, बैरसिया और सीहोर विधानसभा सीटें आती हैं, पिछले विधानसभा चुनाव में इन आठ सीटों में से पांच पर बीजेपी का कमल खिला था, जबकि तीन पर कांग्रेस ने फतह हासिल की थी. 2014 में इस सीट पर बीजेपी के आलोक संजर ने कांग्रेस के पीसी शर्मा को हराया था.

ढाई दशक से इस सीट पर हार का सामना कर रही कांग्रेस ने बड़ा दांव चलते हुए पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बीजेपी का गढ़ बचाने की जिम्मेदारी सौंपी है. इन दोनों में आर-पार की लड़ाई मानी जा रही है. इस सीट के नतीजों पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं.

खास बात ये है कि भोपाल के खामोश वोटर दोनों दलों के प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ा रहे हैं. भोपाल में एक तरफ जहां विकास के दावे और वादे का शोर है, वहीं धर्म से जुड़े मुद्दे भी सियासी हवा में उड़ रहे हैं. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि भोपाल के इस रण में साध्वी बीजेपी का विजय पताका फहरा पाती हैं, या कांग्रेस के चाणक्य ढाई दशक का वनवास खत्म करा पाते हैं. इसका खुलासा तो 23 मई को आने वाले नतीजे ही करेंगे.

डेक्स के द्वारा भोपाल के शॉर्ट मंगाए गए थे जिसमें राजनीतिक लोग और कुछ भोपाल के विजुअल शामिल है जिसे मेल किया जा रहा है  
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