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World Sparrow Day: गौरेया संरक्षण के लिए व्यापारियों ने दुकानों पर बनाए घोंसले, दाना-पानी भी रखा

हर साल 20 मार्च को विश्व गौरेया दिवस मनाया जाता है. इसी दिन गौरेया की लगातार कम होती संख्या को लेकर चिंता जाई जाती है. लेकिन राजधानी भोपाल से सटे रायसेन जिले के खरबई गांव के दुकानदारों ने चिंता करने की वजाय गौरेया का संरक्षण शुरू कर दिया. करीब 15 साल से दुकानदार ने अपनी दुकानों के सामने सामान के लिए इस्तेमाल करने वाले हार्ड कार्ड बोर्ड वाले बॉक्स में घोंसला बनाकर लगा रहे हैं.

World Sparrow Day
गौरेया संरक्षण के लिए व्यापारियों ने दुकानों पर बनाए घोंसले
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Published : Mar 20, 2023, 2:16 PM IST

Updated : Mar 20, 2023, 2:29 PM IST

भोपाल। राजधानी से महज 25 किमी दूर नेशनल हाइवे 146 भोपाल-रायसेन रोड पर खरबई बाजार है. यहां बमुश्किल 50 दुकानें पूरे बाजार में होंगी. देखने में भी साधारण ही लगता है. लेकिन एक बात इसे बहुत खास बनाती है. इस बाजार की प्रत्येक दुकान के सामने एक पेपर बॉक्स लटका हुआ है और हरेक में चिड़िया का एक परिवार रहता है. किसी परिवार में दो सदस्य हैं तो किसी में तीन.

15 साल से बना रहे हैं घोंसले : किराने का व्यवसाय करने वाले अजेश सिकरवार बताते हैं कि यह सिलसिला 15 साल से चल रहा है. इसकी शुरूआत के बारे में वे बताते हैं कि चिड़िया दुकानों की शटर के भीतर अंडे देती थीं. कई बार शटर खोलने में ये अंडे गिर गए और नष्ट हो गए. यह देखकर कुछ दुकानदारों ने खाली बॉक्स को रस्सी में बांधकर दुकान के सामने ही लटकाना शुरू कर दिया. यह देखकर दूसरे दुकानदारों ने भी ऐसा ही किया. घोंसले के साथ अब दाना-पानी भी ये लोग रखने लगे हैं.

खरबई से जुड़ा है चिड़िया का नाम : खरबई में दुकानों पर चिड़ियों के लिए घोंसले बनाकर इन दुकानदारों ने अपनी जगह का नाम और मजबूत किया है. दरअसल, खरबई की दूसरी पहचान चिड़िया टोल के नाम से है. ईको पर्यटन के तहत खरबई के एक स्थान को चिड़िया टोल का नाम दिया गया है. इस टोल के सामने एक छोटा पोखर है और इसके ठीक बीचों-बीच एक पेड़ लगा है, जिस पर हाजी लक लक नामक पक्षी अंडे देते हैं. तीन साल पहले यहां ईको पर्यटन बनाने के लिए 23 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट भी तैयार किया गया था. साथ ही 450 एकड़ क्षेत्र में जू और रेस्क्यू सेंटर बनना था. हालांकि ये दोनों ही मामले ठंडे बस्ते में चले गए.

World Sparrow Day
गौरेया संरक्षण की कोशिश

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अप्रैल से अगस्त के बीच देती हैं अंडे : यहां पर चिड़िया टोल लोगों को आकर्षित करती है. खास बात यह है कि इस पूरे इलाके में गौरेया बड़ी संख्या में पाई जाती हैं. भोपाल बर्डस ग्रुप के संचालक मोहम्मद खालिद ने बताया कि गौरेया और कबूतर शहरों से पलायन कर रहे हैं और ऐसे में यदि गांव के लोग उन्हें खुले दिल से अपना रहे हैं तो इन पक्षियों के लिए यह जीवनदायिनी है. खासतौर से गौरेया अब शहर में बहुत कम हो गई हैं. ये अप्रैल से अगस्त के बीच अंडे देती हैं और इन 4 महीनों में इनके बच्चे इतने बड़े हो जाते हैं, वे उड़ सकें. गौरेया और कबूतर लोगों पर निर्भर है, इसलिए ऐसे पेपर नेस्ट बनाकर लगाना इनके लिए सबसे मुफीद हैं.

भोपाल। राजधानी से महज 25 किमी दूर नेशनल हाइवे 146 भोपाल-रायसेन रोड पर खरबई बाजार है. यहां बमुश्किल 50 दुकानें पूरे बाजार में होंगी. देखने में भी साधारण ही लगता है. लेकिन एक बात इसे बहुत खास बनाती है. इस बाजार की प्रत्येक दुकान के सामने एक पेपर बॉक्स लटका हुआ है और हरेक में चिड़िया का एक परिवार रहता है. किसी परिवार में दो सदस्य हैं तो किसी में तीन.

15 साल से बना रहे हैं घोंसले : किराने का व्यवसाय करने वाले अजेश सिकरवार बताते हैं कि यह सिलसिला 15 साल से चल रहा है. इसकी शुरूआत के बारे में वे बताते हैं कि चिड़िया दुकानों की शटर के भीतर अंडे देती थीं. कई बार शटर खोलने में ये अंडे गिर गए और नष्ट हो गए. यह देखकर कुछ दुकानदारों ने खाली बॉक्स को रस्सी में बांधकर दुकान के सामने ही लटकाना शुरू कर दिया. यह देखकर दूसरे दुकानदारों ने भी ऐसा ही किया. घोंसले के साथ अब दाना-पानी भी ये लोग रखने लगे हैं.

खरबई से जुड़ा है चिड़िया का नाम : खरबई में दुकानों पर चिड़ियों के लिए घोंसले बनाकर इन दुकानदारों ने अपनी जगह का नाम और मजबूत किया है. दरअसल, खरबई की दूसरी पहचान चिड़िया टोल के नाम से है. ईको पर्यटन के तहत खरबई के एक स्थान को चिड़िया टोल का नाम दिया गया है. इस टोल के सामने एक छोटा पोखर है और इसके ठीक बीचों-बीच एक पेड़ लगा है, जिस पर हाजी लक लक नामक पक्षी अंडे देते हैं. तीन साल पहले यहां ईको पर्यटन बनाने के लिए 23 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट भी तैयार किया गया था. साथ ही 450 एकड़ क्षेत्र में जू और रेस्क्यू सेंटर बनना था. हालांकि ये दोनों ही मामले ठंडे बस्ते में चले गए.

World Sparrow Day
गौरेया संरक्षण की कोशिश

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अप्रैल से अगस्त के बीच देती हैं अंडे : यहां पर चिड़िया टोल लोगों को आकर्षित करती है. खास बात यह है कि इस पूरे इलाके में गौरेया बड़ी संख्या में पाई जाती हैं. भोपाल बर्डस ग्रुप के संचालक मोहम्मद खालिद ने बताया कि गौरेया और कबूतर शहरों से पलायन कर रहे हैं और ऐसे में यदि गांव के लोग उन्हें खुले दिल से अपना रहे हैं तो इन पक्षियों के लिए यह जीवनदायिनी है. खासतौर से गौरेया अब शहर में बहुत कम हो गई हैं. ये अप्रैल से अगस्त के बीच अंडे देती हैं और इन 4 महीनों में इनके बच्चे इतने बड़े हो जाते हैं, वे उड़ सकें. गौरेया और कबूतर लोगों पर निर्भर है, इसलिए ऐसे पेपर नेस्ट बनाकर लगाना इनके लिए सबसे मुफीद हैं.

Last Updated : Mar 20, 2023, 2:29 PM IST
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