भोपाल। लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही दल वोटरों को लुभाने के लिए दो बड़े दांव खेले हैं. केंद्र की मोदी सरकार ने सवर्ण गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण ऐलान किया, तो मध्यप्रदेश में नवनिर्वाचित कमलनाथ सरकार ने पिछड़ा वर्ग को 14 फ़ीसदी से 27 फीसदी आरक्षण देने का एलान करके सभी को चौका दिया . लेकिन दोनों ने दांव कानूनी दांव-पेंच में उलझ कर रह गए हैं.
बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने बताया कि पहले केंद्र सरकार ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संविधान में संशोधन करके सामान्य वर्ग के गरीबों को 10% आरक्षण सुनिश्चित करवाया, लेकिन कमलनाथ सरकार ने प्रदेश में लागू ना करके सामान्य वर्ग के प्रति पाप करने का काम किया है. इसके साथ-साथ सीएम कमलनाथ ने पिछड़े वर्ग को 27% आरक्षण देने का जो वादा किया है उसे कोर्ट ने भी नकार दिया है. उन्होंने कहा कि 'कमलथाथ सरकार ने पिछड़े वर्ग के साथ बड़ा धोखा किया है'.
राज्यसभा सांसद राजमणि पटेल का कहना है कि कांग्रेस पार्टी की नियत बिल्कुल साफ है. 10% आरक्षण को लेकर हम भी लंबे समय से आवाज उठा रहे थे, कि सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण मिलना चाहिए. केंद्र सरकार ने 10% आरक्षण कर दिया, पटेल ने का कि अगर हमारी नीयत साफ नहीं होती तो हम इसका विरोध करते, लेकिन हमने ईमानदारी से इसका समर्थन किया है. वहीं बीजेपी प्रदेश के ओबीसी वर्ग के 14% आरक्षण 27% किए जाने पर भाजपा चुप्पी साधे हुए हैं.
आरक्षण मुद्दे का चुनावी समीकरण
भारतीय जनता पार्टी वोट बैंक शुरु से ही सवर्ण वोट रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 'माई के लाल' वाले बयान ने बीजेपी का मध्यप्रदेश में बड़ा नुकसान किया, पार्टी समीक्षा में सामने आया कि केंद्र की बीजेपी सरकार की तरफ से एससी-एसटी एक्ट बिल के संबंध में जारी अध्यादेश के चलते सवर्ण वर्ग बीजेपी से नाराज चल रहा रहा था. वहीं लोकसभा चुनाव में ऐसी स्थिति ना बने इस बात को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने चुनाव के पहले गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण देने का ऐलान कर दिया. इन परिस्थितियों में कांग्रेस ने अपनी राज्य सरकारों को ओबीसी वोट बैंक पर फोकस करने के निर्देश दिए है. जिसके बाद कमलनाथ सरकार ने बड़ा दांव खेलते हुए मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का काम किया है. मध्यप्रदेश में 52% ओबीसी जनसंख्या है और कांग्रेस ने बीजेपी के सवर्ण आरक्षण के दांव पर ओबीसी आरक्षण के जरिए उसे कमजोर करने की कोशिश की है. अब दोनों दल अपने-अपने आरक्षण प्रावधानों के जरिए सवर्ण और ओबीसी वोटर्स को रिझाने का काम कर रहे हैं.