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नगरीय निकाय चुनावः पहली बार पार्षदों को देना होगा खर्च का ब्यौरा, जनसंख्या के आधार पर तय हुई सीमा

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Published : Dec 24, 2020, 4:26 PM IST

नगरीय निकाय चुनाव(Urban body elections) में अब पार्षद प्रत्याशियों को भी चुनाव में किए गए खर्च का पूरा हिसाब-किताब निर्वाचन आयोग को देना होगा. अगर निर्धारित अवधि में प्रत्याशी की ओर से जानकारी नहीं दी जाती है तो राज्य निर्वाचन आयोग(State election commission) उसे अयोग्य घोषित कर सकता है.

Election expenditure details
चुनावी खर्च का ब्यौरा

भोपाल। मध्यप्रदेश में होने जा रहे आगामी नगरीय निकाय चुनाव (Urban body elections) में राज्य निर्वाचन आयोग (State election commission) पहली बार पार्षदों की खर्च की सीमा तय करने जा रहा है. राज्य निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में परिपत्र जारी कर दिया है. चुनाव में होने वाली फिजूलखर्ची को लेकर चुनावी उम्मीदवार और राजनैतिक दल निर्वाचन आयोग के इस फैसले को अच्छा बता रहे हैं. लेकिन फैसले के क्रियान्वयन को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं. उम्मीदवारों का कहना है कि फैसला स्वागत योग्य है. लेकिन इस फैसले का क्रियान्वयन आयोग निष्पक्ष रूप से करे. ऐसा ना हो के इस फैसले के जरिए सत्ताधारी दल को मदद की जाए.

कांग्रेस नेता जेपी धनोपिया

पहली बार तय की गई पार्षद चुनाव के खर्च की सीमा

नगरीय निकाय चुनाव (Urban body elections) में ऐसा पहली बार हो रहा है कि चुनाव में हिस्सा लेने वाले पार्षद पद के उम्मीदवारों की खर्च की सीमा से की गई है. इसके पहले सिर्फ नगर निगम के महापौर नगर पालिका परिषद और नगर परिषद के अध्यक्षों की खर्च की सीमा तय की गई थी.

राहुल

महापौर और अध्यक्ष पद के लिए तय सीमा

नगर निगम के महापौर और नगर पालिका परिषद और नगर परिषद के अध्यक्ष के लिए खर्च की सीमा तय की गई है. वह जनसंख्या के आधार पर तय की गई है. यह सीमा 2011 की जनसंख्या के आधार पर तय की गई है.

10 लाख के ऊपर जनसंख्या वाली नगर निगम के लिए खर्च की सीमा-35 लाख.

10 लाख से कम जनसंख्या वाली नगर निगम के लिए खर्च की सीमा - 15 लाख.

एक लाख जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद की खर्च की सीमा - 10 लाख.

50 हजार से 1 लाख जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद की खर्च की सीमा - 6 लाख.

50 हजार से कम जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद की खर्च की सीमा - 4 लाख.

पार्षदों के लिए तय सीमा

10 लाख से ज्यादा की जनसंख्या वाले नगर निगमों के पार्षद पद के उम्मीदवार की खर्च की सीमा- 8.75 लाख.

10 लाख से कम जनसंख्या वाले नगर निगम के पार्षद पद के उम्मीदवार के खर्च की सीमा- 3.75 लाख.

1 लाख के ऊपर की जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद के पार्षद पद के उम्मीदवार की खर्च की सीमा-2.50 लाख.

50 हजार से एक लाख तक की जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद के पार्षद पद के उम्मीदवार की खर्च की सीमा -1.50 लाख.

50 हजार से कम जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद के पार्षद पद के उम्मीदवार की खर्च की सीमा- 1 लाख.

नगर परिषद के पार्षद पद के उम्मीदवारों के खर्च की सीमा-75 हजार रुपए.

प्रशासनिक स्तर पर इसका पालन होना मुश्किल

मध्यप्रदेश कांग्रेस के चुनाव आयोग प्रभारी जेपी धनोपिया का कहना है कि राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा बताया गया है कि इस चुनाव में उम्मीदवार का खर्च कितना होगा. पहली बार पार्षद के खर्चे की राशि भी तय की गई है. लेकिन अक्सर देखा जाता है कि चुनाव में लोग घोषित खर्च भी करते हैं. इसलिए सही मायने में खर्च की मॉनिटरिंग कर पाना मुश्किल है.

'सत्ताधारी दल पर भी लगे लगाम'

पार्षद चुनाव में उम्मीदवार राहुल का कहना है कि मैं भी नरेला विधानसभा के वार्ड क्रमांक 58 से दावेदारी कर रहा हूं.विगत कई वर्षों से संघर्ष कर रहा हूं. राज्य निर्वाचन आयोग का फैसला स्वागत योग्य है,लेकिन यह भी देखा गया है कि जिस तरह से सत्ताधारी दल की तरफ से धांधली आ सामने आई हैं. तमाम तरह की शिकायतों के बावजूद कोई निराकरण नहीं हुआ है. ऐसे में देखना रोचक होगा कि इस मामले में सत्ताधारी दल पर आयोग लगाम लगा पाएगा या यह नहीं.

भोपाल। मध्यप्रदेश में होने जा रहे आगामी नगरीय निकाय चुनाव (Urban body elections) में राज्य निर्वाचन आयोग (State election commission) पहली बार पार्षदों की खर्च की सीमा तय करने जा रहा है. राज्य निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में परिपत्र जारी कर दिया है. चुनाव में होने वाली फिजूलखर्ची को लेकर चुनावी उम्मीदवार और राजनैतिक दल निर्वाचन आयोग के इस फैसले को अच्छा बता रहे हैं. लेकिन फैसले के क्रियान्वयन को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं. उम्मीदवारों का कहना है कि फैसला स्वागत योग्य है. लेकिन इस फैसले का क्रियान्वयन आयोग निष्पक्ष रूप से करे. ऐसा ना हो के इस फैसले के जरिए सत्ताधारी दल को मदद की जाए.

कांग्रेस नेता जेपी धनोपिया

पहली बार तय की गई पार्षद चुनाव के खर्च की सीमा

नगरीय निकाय चुनाव (Urban body elections) में ऐसा पहली बार हो रहा है कि चुनाव में हिस्सा लेने वाले पार्षद पद के उम्मीदवारों की खर्च की सीमा से की गई है. इसके पहले सिर्फ नगर निगम के महापौर नगर पालिका परिषद और नगर परिषद के अध्यक्षों की खर्च की सीमा तय की गई थी.

राहुल

महापौर और अध्यक्ष पद के लिए तय सीमा

नगर निगम के महापौर और नगर पालिका परिषद और नगर परिषद के अध्यक्ष के लिए खर्च की सीमा तय की गई है. वह जनसंख्या के आधार पर तय की गई है. यह सीमा 2011 की जनसंख्या के आधार पर तय की गई है.

10 लाख के ऊपर जनसंख्या वाली नगर निगम के लिए खर्च की सीमा-35 लाख.

10 लाख से कम जनसंख्या वाली नगर निगम के लिए खर्च की सीमा - 15 लाख.

एक लाख जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद की खर्च की सीमा - 10 लाख.

50 हजार से 1 लाख जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद की खर्च की सीमा - 6 लाख.

50 हजार से कम जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद की खर्च की सीमा - 4 लाख.

पार्षदों के लिए तय सीमा

10 लाख से ज्यादा की जनसंख्या वाले नगर निगमों के पार्षद पद के उम्मीदवार की खर्च की सीमा- 8.75 लाख.

10 लाख से कम जनसंख्या वाले नगर निगम के पार्षद पद के उम्मीदवार के खर्च की सीमा- 3.75 लाख.

1 लाख के ऊपर की जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद के पार्षद पद के उम्मीदवार की खर्च की सीमा-2.50 लाख.

50 हजार से एक लाख तक की जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद के पार्षद पद के उम्मीदवार की खर्च की सीमा -1.50 लाख.

50 हजार से कम जनसंख्या वाली नगर पालिका परिषद के पार्षद पद के उम्मीदवार की खर्च की सीमा- 1 लाख.

नगर परिषद के पार्षद पद के उम्मीदवारों के खर्च की सीमा-75 हजार रुपए.

प्रशासनिक स्तर पर इसका पालन होना मुश्किल

मध्यप्रदेश कांग्रेस के चुनाव आयोग प्रभारी जेपी धनोपिया का कहना है कि राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा बताया गया है कि इस चुनाव में उम्मीदवार का खर्च कितना होगा. पहली बार पार्षद के खर्चे की राशि भी तय की गई है. लेकिन अक्सर देखा जाता है कि चुनाव में लोग घोषित खर्च भी करते हैं. इसलिए सही मायने में खर्च की मॉनिटरिंग कर पाना मुश्किल है.

'सत्ताधारी दल पर भी लगे लगाम'

पार्षद चुनाव में उम्मीदवार राहुल का कहना है कि मैं भी नरेला विधानसभा के वार्ड क्रमांक 58 से दावेदारी कर रहा हूं.विगत कई वर्षों से संघर्ष कर रहा हूं. राज्य निर्वाचन आयोग का फैसला स्वागत योग्य है,लेकिन यह भी देखा गया है कि जिस तरह से सत्ताधारी दल की तरफ से धांधली आ सामने आई हैं. तमाम तरह की शिकायतों के बावजूद कोई निराकरण नहीं हुआ है. ऐसे में देखना रोचक होगा कि इस मामले में सत्ताधारी दल पर आयोग लगाम लगा पाएगा या यह नहीं.

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