भोपाल। बर्लिन में हुए स्पेशल ओलंपिक में भारतीय दल ने इतिहास रच दिया है. इस टीम में मध्यप्रदेश से भी कई खिलाड़ी शामिल थे. जिसमें भोपाल की तीन बेटिया भी थी. इसमें से दो बेटियों ने सिल्वर मेडल हासिल किया है जबकी पूजा चौथे स्थान पर रही है. प्रतियोगिता में मध्यप्रदेश से दिशा तिवारी और लक्ष्मी ने बास्केटबॉल मेडल जीता है. दिशा बचपन से ही मानसिक बीमारी एम्नेशिया (amnesia) का शिकार हैं. जिस तरह से फिल्म गजनी में आमिर खान थोड़ी देर बाद ही अपनी मेमोरी लॉस कर जाते थे उसी तरह दिशा भी कोई चीज रटाने के बाद उसे बाद में भूल जाती हैं लेकिन खेल के प्रति उनकी एकाग्रता कहें या इसे उनके अंदर का साहस कि वह बास्केटबॉल इतना बेहतर खेलती हैं कि इसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पेशल ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली टीम की वह मुख्य खिलाड़ी रही. लेकिन उन्हें जो भी चीज बताओ उसे वह तुरंत ही भूल जाती हैं.
हिम्मत नहीं हारी दिशा: दिशा तिवारी बताती हैं कि उन्हें यह खेल बचपन से ही पसंद था लेकिन जब भी स्कूल जाती थी तो लोग उनसे अलग ही तरह से बर्ताव करते थे लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इस खेल को चुना. दिशा कहती हैं कि ओलंपिक का सफर अच्छा रहा, ऐसे में जब यह सभी लौट कर वापस आए थे तो राष्ट्रपति से भी मुलाकात हुई थी. सीएम शिवराज ने जाने से पहले इनसे जीत कर आने पर इन्हें नौकरी देने की बात कही थी. दिशा को उम्मीद है कि भले ही वह स्पेशल कैटेगरी की खिलाड़ी हैं लेकिन उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाएगी.
बास्केटबॉल में नाम रोशन: दिशा की तरह ही लक्ष्मी ने भी स्पेशल ओलंपिक में सिल्वर मेडल बास्केटबॉल में जीता है. लक्ष्मी मूकबधिर हैं और बोल व सुन नहीं सकतीं. लेकिन इशारों में अपनी सारी भावनाएं व्यक्त करती हैं. उनकी ट्रांसलेटर इन्हें बोलकर बताती हैं. लक्ष्मी जब 8 साल की थी तब वह भोपाल के एस.ओ.एस चाइल्ड विलेज में आ गई थी उनके माता-पिता हैं या नहीं वह यह भी नहीं जानती लेकिन यही SOS में ही लक्ष्मी ने बास्केटबॉल खेलना सीखा. अपनी ट्रांसलेटर के माध्यम से लक्ष्मी बताती है कि यहां एसओएस में जब यह खेल होता था तब उन्हें बहुत अच्छा लगता था और उन्होंने इसको चुना. मन लगाकर सीखा और अच्छी खिलाड़ी बन गई. लक्ष्मी कहती हैं कि उनकी तरह अन्य बच्चे जो मूकबधिर हैं या स्पेशल चाइल्ड है वह घबराएं नहीं ,हौसला बनाए रखें और अन्य गतिविधियों के माध्यम से अपना और देश का नाम रोशन करें.
मजदूरी करते है दिशा का पिता: दिशा के पिता महेश तिवारी मजदूरी करते हैं वह बताते हैं कि उनकी पत्नी और वो खुद गैस पीड़ित हैं और सरकार की ओर से उन्हें मुआवजा भी मिलता है. दिशा के अलावा दो बच्चे उनके और हैं. दिशा 3 बच्चों में सबसे बड़ी हैं जब दिशा पैदा हुई थी तब से ही वह इसी तरह मानसिक विकार की शिकार है, इनको तो इसका पता भी नहीं था लेकिन आसपास बनी गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली चिंगारी ट्रस्ट आदि के लोगों ने उन्हें बताया कि बेटी को इस तरह की बीमारी है. जब इन्होंने अस्पताल में जाकर चेक करवाया तो पता चला कि बेटी के मस्तिष्क में समस्या है, जिसके चलते वह हर बात को भूल जाती है.
महेश कहते हैं कि गैस पीड़ित बस्तियों में आने वाले प्रदूषित पानी के कारण भी बिटिया की यह स्थिति संभवत हो सकती है क्योंकि जब माता-पिता गैस पीड़ित हैं तो उनकी बेटी पर भी इसका असर जरूर पढ़ा होगा लेकिन बेटी ने इस दिक्कत को भी दरकिनार करते हुए आगे कदम बढ़ाया है पहले जो लोग इनकी बेटी के इस तरह की कंडीशन के चलते इनको दूर रखते थे वहीं अब बेटी की कामयाबी के बाद इनके घर आ रहे हैं.
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शासकीय नौकरी का मौका: फिलहाल तो लक्ष्मी और दिशा की तरह ही कई और स्पेशल चाइल्ड है, जिनसे ईश्वर ने कुछ छीना है तो वह दूसरी विधाओं में आगे हैं लेकिन दिशा और लक्ष्मी तो बस अब स्पेशल ओलंपिक में पदक हासिल करने के बाद सरकार से यही आस रखनी है कि उन्हें भी शासकीय नौकरी का फायदा मिल सके. ये तीन 03 खिलाड़ी के अलावा स्नेहलता बारस्कर साइकिलिंग कोच, काजल छत्रसाल जूडो कोच, प्रियंका जोनवाल बास्केटबॉल कोच, सिमरन तिवारी फुटबॉल कोचरूप में भारत का प्रतिनिधित्व किया था.
भारतीय एथलीटों का दबदबा: स्पेशल ओलंपिक्स की ग्रीष्मकालीन अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता के लिए मानसिक दिव्यांग खिलाडी ने उत्कर्ष प्रदर्शन किया. ये अंतर्राष्ट्रीय ग्रीष्मकालीन खेल प्रतियोगिता 17 से 25 जून 2023 को बर्लिन जर्मनी में आयोजित की गई थी. इन खेलों में भारत से 198 खिलाड़ी व 57 कोच ने भाग लिया था. प्रतियोगिता में भारत ने 202 पदक जीते. जिनमें से 76 गोल्ड, 75 सिल्वर और 51 कांस्य पदक अपने नाम किए. जिसमें आखिरी दिन धावकों का दबदबा रहा. भारतीय एथलीटों ने इस प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन किया.