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कोरोना काल में रेशम ने बनाया आत्मनिर्भर, आर्थिक संकट से उबर रहे कई परिवार - tribal people silk culture

देश रेशम की खेती के साथ आत्मनिर्भर होने की ओर बढ़ रहा है. प्रदेश के कई हिस्सों में आदिवासी वर्ग के सैकड़ों परिवारों ने रेशम के जरिए आय का जरिया खोजा है. साथ ही आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम उठाए हैं.

Women making silk thread
रेशम का धागा बनाती युवतियां
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Published : Jul 21, 2020, 4:35 PM IST

भोपाल। देश और दुनिया पर गहराए कोरोना संकट ने रोजी-रोटी की मुसीबत खड़ी कर दी है. इस संकट से उबरने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में नवाचार किए जा रहे हैं. मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में भी रोजगार के संकट से जूझ रहे आदिवासी वर्ग के सैकड़ों परिवारों ने रेशम के जरिए आय का जरिया न केवल खोजा है, बल्कि अपने को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ाया है.

employement by silk
रेशम के धागे का निर्माण

कोरोना के कारण अन्य हिस्सों की तरह होशंगाबाद में भी लोगों के सामने रोजगार का संकट था. इस स्थिति में यहां के सैकड़ों आदिवासियों ने रोजगार के लिए रेशम को चुना. यहां के सैकड़ों आदिवासी परिवारों ने रोजगार की खातिर 25 किलो ककून इकट्ठा कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में काम किया है.

जानकारी के मुताबिक कोरोना काल में जिले के लगभग 20 गांव के 700 किसान परिवार ने रेशम के कारोबार को अपनाया है. इन परिवारों ने 60 लाख रुपये से ज्यादा की रकम कमाने में सफलता पाई है. साथ ही उन्हें आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है.

जिले के रेशम अधिकारी शरद श्रीवास्तव के मुताबिक, रेशम फायदे की खेती है, विभाग द्वारा यह कोशिश की जा रही है कि ज्यादा से ज्यादा किसान रेशम कृमि पालन योजना को अपनाकर अपने को आर्थिक तौर पर समृद्ध बनाने में सफल होंगे.

Silk made aatm nirbhar
रेशम ने बनाया आत्मनिर्भर

रेशम विभाग करता है सहायता

रेशम की खेती करने वाली उषा कुशवाहा बताती हैं कि इस खेती के जरिए उनकी आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है. रेशम विभाग समय पर भुगतान कर देता है, जिससे उनके सामने कोई आर्थिक समस्या नहीं आई है. साथ ही जानकारों का मार्गदर्शन मिलता रहता है, जिससे उनकी हर समस्या का निदान भी हो रहा है.

इसी तरह विकास कुमार बताते हैं कि वे पिछले छह साल से रेशम की खेती करते आ रहे हैं. एक एकड़ जमीन पर रेशम की खेती से उन्हें हर साल लगभग एक से दो लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है. इसके चलते उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है.

इन राज्यों में सप्लाई

मध्यप्रदेश के अलावा कर्नाटक, बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में सिल्क की साड़ी और अन्य परिधान बनाने वाले संस्थान होशंगाबाद से रेशम का धागा खरीदकर ले जाते हैं. रेशम की खेती से इस इलाके में किसानों की आर्थिक स्थिति में न केवल तेजी से बदलाव आ रहा है, बल्कि वे आत्मनिर्भर होने की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं.

साल पांच करोड़ की खरीदी

राज्य में रेशम विभाग किसानों से साल में लगभग पांच करोड़ रुपये के ककून खरीदता है और धागा तैयार करता है. विभाग की पहल सार्थक हो और किसानों में भरोसा पैदा हो जाए तो देश को रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में यह बड़ी पहल साबित हो सकती है.

भोपाल। देश और दुनिया पर गहराए कोरोना संकट ने रोजी-रोटी की मुसीबत खड़ी कर दी है. इस संकट से उबरने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में नवाचार किए जा रहे हैं. मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में भी रोजगार के संकट से जूझ रहे आदिवासी वर्ग के सैकड़ों परिवारों ने रेशम के जरिए आय का जरिया न केवल खोजा है, बल्कि अपने को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ाया है.

employement by silk
रेशम के धागे का निर्माण

कोरोना के कारण अन्य हिस्सों की तरह होशंगाबाद में भी लोगों के सामने रोजगार का संकट था. इस स्थिति में यहां के सैकड़ों आदिवासियों ने रोजगार के लिए रेशम को चुना. यहां के सैकड़ों आदिवासी परिवारों ने रोजगार की खातिर 25 किलो ककून इकट्ठा कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में काम किया है.

जानकारी के मुताबिक कोरोना काल में जिले के लगभग 20 गांव के 700 किसान परिवार ने रेशम के कारोबार को अपनाया है. इन परिवारों ने 60 लाख रुपये से ज्यादा की रकम कमाने में सफलता पाई है. साथ ही उन्हें आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है.

जिले के रेशम अधिकारी शरद श्रीवास्तव के मुताबिक, रेशम फायदे की खेती है, विभाग द्वारा यह कोशिश की जा रही है कि ज्यादा से ज्यादा किसान रेशम कृमि पालन योजना को अपनाकर अपने को आर्थिक तौर पर समृद्ध बनाने में सफल होंगे.

Silk made aatm nirbhar
रेशम ने बनाया आत्मनिर्भर

रेशम विभाग करता है सहायता

रेशम की खेती करने वाली उषा कुशवाहा बताती हैं कि इस खेती के जरिए उनकी आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है. रेशम विभाग समय पर भुगतान कर देता है, जिससे उनके सामने कोई आर्थिक समस्या नहीं आई है. साथ ही जानकारों का मार्गदर्शन मिलता रहता है, जिससे उनकी हर समस्या का निदान भी हो रहा है.

इसी तरह विकास कुमार बताते हैं कि वे पिछले छह साल से रेशम की खेती करते आ रहे हैं. एक एकड़ जमीन पर रेशम की खेती से उन्हें हर साल लगभग एक से दो लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है. इसके चलते उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है.

इन राज्यों में सप्लाई

मध्यप्रदेश के अलावा कर्नाटक, बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में सिल्क की साड़ी और अन्य परिधान बनाने वाले संस्थान होशंगाबाद से रेशम का धागा खरीदकर ले जाते हैं. रेशम की खेती से इस इलाके में किसानों की आर्थिक स्थिति में न केवल तेजी से बदलाव आ रहा है, बल्कि वे आत्मनिर्भर होने की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं.

साल पांच करोड़ की खरीदी

राज्य में रेशम विभाग किसानों से साल में लगभग पांच करोड़ रुपये के ककून खरीदता है और धागा तैयार करता है. विभाग की पहल सार्थक हो और किसानों में भरोसा पैदा हो जाए तो देश को रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में यह बड़ी पहल साबित हो सकती है.

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