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Sankashti chaturthi 2021: जानिए! गणपति के किस रूप की होती है पूजा और क्या है इस बार का शुभ संयोग?

आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी रविवार, 27 जून को है. इस दिन गणपति के कृष्णपिंगाक्ष रूप की पूजा (krishnapingakasha puja) होती है. ये रूप प्रकृति से प्रेरित है.

Sankashti chaturthi 2021
संकष्टी चतुर्थी 2021
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Published : Jun 26, 2021, 2:00 PM IST

Updated : Jun 28, 2021, 7:01 AM IST

भोपाल। भगवान गणपति दुख हरण और सुख के प्रदाता हैं. इनकी कृपा से बिगड़े काम क्षणभर में दूर हो जाते हैं. खुद को मनाने का हर मास वो अवसर भी भक्तगणों को देते हैं. यानी हर महीने शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की चतुर्थी पार्वती पुत्र गणेश को समर्पित होती है. पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं तो शुक्लपक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी का नाम दिया गया है. आषाढ़ मास का यह व्रत रविवार, 27 जून को है. रविवार को पड़ने वाली तिथि को रविवती संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. यह तिथि उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर स्थिति में हो. इस दिन भगवान गणेश के कृष्णपिंगाक्ष रूप की पूजा (Krishnapingakasha Puja) और चंद्र देवता को अर्घ्य देकर उपासना करने का विधान है. ऐसा करने से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं.

गणेश पुराण में है वर्णन (Ganesh Puran)

गणेश पुराण में आषाढ़ महीने की संकष्टी चतुर्थी व्रत का वर्णन है. कहा गया है कि आषाढ़ महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेशजी की पूजा और व्रत करना चाहिए और इस व्रत में गणेश जी के कृष्णपिंगाक्ष रूप की पूजा (Krishnapingakasha Puja) करनी चाहिए. ऐसा करने से हर तरह के संकटों से छुटकारा मिलता है.

कृष्णपिंगाक्ष रूप- प्रकृति पूजा के लिए करता है प्रेरित

इस रूप की अराधना से पहले इसका अर्थ समझना आवश्यक है. यह नाम कृष्ण पिंग और अक्ष, इन शब्दों की संधि से बना है. इनका अर्थ कुछ ऐसे समझ सकते हैं. कृष्ण यानी सांवला, पिंग यानी धुएं के समान रंग वाला और अक्ष का मतलब होता है आंखें. भगवान गणेश का ये रूप प्रकृति पूजा के लिए प्रेरित करता है. सांवला पृथ्वी के संदर्भ में है, धूम्रवर्ण यानी बादल. यानी पृथ्वी और मेघ जिसके नेत्र हैं. वो शक्ति जो धरती से लेकर बादलों तक जो कुछ भी है, उसे पूरी तरह देख सकती है. वो शक्ति हमें लगातार जीवन दे रही है. उन्हें प्रणाम करना चाहिए.

संकष्टी चतुर्थी का महत्व (Sankashti Chaturthi significance)

चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन की प्रथा है. चन्द्रोदय के बाद ही व्रत पूर्ण होता है. मान्यता यह है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसकी संतान संबंधी समस्याएं भी दूर होती हैं. अपयश और बदनामी के योग कट जाते हैं. हर तरह के कार्यों की बाधा दूर होती है. धन तथा कर्ज संबंधी समस्याओं का समाधान होता है.

कमाल का संयोग

इस बार चतुर्थी तिथि पर रविवती संकष्टी चतुर्थी (Ravivati Sankashti Chaturthi) संयोग बन रहा है इसलिए सूर्य को अनुकूल बनाने के लिए यह दिन बहुत शुभ है. इस दिन प्रातः स्नानदि करके भगवान सूर्यनारायण को प्रणाम करें और उन्हें तांबे के लोटे से जल दें. इससे सूर्य संबंधी दोष दूर होते हैं.

संकष्टी चतुर्थी की पूजन विधि

  • प्रातः काल जल्दी उठकर स्नानादि कर लें.
  • पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनें.
  • पूजा स्थान की सफाई करके एक लाल रंग का आसन बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करें.
  • गणेश जी के समक्ष घी का दीपक व सुगंधित धूप प्रज्वलित करें और लाल सिंदूर से तिलक करें
  • फल-फूल व मिष्ठान अर्पित करें. लम्बोदर को मिठाई में मोदक या मोतीचूर के लड्डू पसंद हैं वही अर्पित करें.
  • गजानन को दूर्वा अतिप्रिय है इसलिए इस दिन 21 दूर्वा की गांठे भगवान गणेश के अलग-अलग नामों का उच्चारण करते हुए अर्पित करें.
  • संकष्टी चतुर्थी का व्रत गणेश जी की पूजा से आरंभ होकर चंद्रमा को अर्घ्य देने के साथ ही पूर्ण होता है.
  • इस दिन यथाशक्ति दान देने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए.

रविवती संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat of Sankashti Chaturthi)

आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ- 27 जून 2021 शाम 03 बजकर 54 मिनट से

आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त- 28 जून 2021 दोपहर 02 बजकर 16 मिनट पर

संकष्टी के दिन चन्द्रोदय - 27 जून 2021 10 बजकर 03 मिनट पर

आषाढ़ कृष्ण संकष्टी चतुर्थी कथा-
द्वापर युग में महिष्मति नगरी का महीजित नामक राजा था. वह बड़ा ही पुण्यशील और प्रतापी राजा था. वह अपनी प्रजा का पालन पुत्रवत करता था. किन्तु संतानविहीन होने के कारण उसे राजमहल का वैभव अच्छा नहीं लगता था. वेदों में निसंतान का जीवन व्यर्थ माना गया हैं. यदि संतानविहीन व्यक्ति अपने पितरों को जल दान देता हैं तो उसके पितृगण उस जल को गरम जल के रूप में ग्रहण करते हैं.इसी उहापोह में राजा का बहुत समय व्यतीत हो गया. उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुत से दान, यज्ञ आदि कार्य किए. फिर भी राज को पुत्रोत्पत्ति न हुई. जवानी ढल गई और बुढ़ापा आ गया किंतु वंश वृद्धि न हुई. तदनंतर राजा ने विद्वान ब्राह्मणों और प्रजाजनों से इस संदर्भ में परामर्श किया.

राजा ने कहा कि हे ब्राह्मणों तथा प्रजाजनों! हम तो संतानहीन हो गए, अब मेरी क्या गति होगी? मैंने जीवन में तो किंचित भी पाप कर्म नहीं किया. मैंने कभी अत्याचार द्वारा धन संग्रह नहीं किया. मैंने तो सदैव प्रजा का पुत्रवत पालन किया तथा धर्माचरण द्वारा ही पृथ्वी शासन किया. मैंने चोर-डाकुओं को दंडित किया. इष्ट मित्रों के भोजन की व्यवस्था की, गौ, ब्राह्मणों का हित चिंतन करते हुए शिष्ट पुरुषों का आदर सत्कार किया. फिर भी मुझे अब तक पुत्र न होने का क्या कारण हैं?

विद्वान् ब्राह्मणों ने कहा कि, हे महाराज! हम लोग वैसा ही प्रयत्न करेंगे जिससे आपके वंश कि वृद्धि हो. इस प्रकार कहकर सब लोग युक्ति सोचने लगे. सारी प्रजा राजा के मनोरथ की सिद्धि के लिए ब्राह्मणों के साथ वन में चली गई.

वन में उन लोगों को एक श्रेष्ठ मुनि के दर्शन हुए. वे मुनिराज निराहार रहकर तपस्या में लीन थे. ब्रह्माजी के सामान वे आत्मजित, क्रोधजित तथा सनातन पुरुष थे. संपूर्ण वेद-विशारद एवं अनेक ब्रह्म ज्ञान संपन्न वे महात्मा थे. उनका निर्मल नाम लोमश ऋषि था. प्रत्येक कल्पांत में उनके एक-एक रोम पतित होते थे. इसलिए उनका नाम लोमश ऋषि पड़ गया. ऐसे त्रिकालदर्शी महर्षि लोमेश के उन लोगों ने दर्शन किए. सब लोग उन तेजस्वी मुनि के पास गए. उचित अभ्यर्थना एवं प्रणामदि के अनंतर सभी लोग उनके समक्ष खड़े हो गए. मुनि के दर्शन से सभी लोग प्रसन्न होकर परस्पर कहने लगे कि हम लोगों को सौभाग्य से ही ऐसे मुनि के दर्शन हुए. इनके उपदेश से हम सभी का मंगल होगा, ऐसा निश्चय कर उन लोगों ने मुनिराज से कहा.

हे ब्रह्मऋषि! हम लोगों के दुःख का कारण सुनिए. अपने संदेह के निवारण के लिए हम लोग आपके पास आए हैं. हे भगवन! आप कोई उपाय बतलाइए. महर्षि लोमेश ने पूछा-सज्जनों! आप लोग यहां किस अभिप्राय से आए हैं? मुझसे आपका क्या प्रयोजन हैं? स्पष्ट रूप से कहिए. मैं आपके सभी संदेहों का निवारण करूंगा. प्रजाजनों ने उत्तर दिया- हे मुनिवर! हम महिष्मति नगरी के निवासी हैं. हमारे राजा का नाम महीजित है. वह राजा ब्राह्मणों का रक्षक, धर्मात्मा, दानवीर, शूरवीर एवं मधुरभाषी है. उस राजा ने हम लोगों का पालन पोषण किया है, परंतु ऐसे राज को आज तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई. हे भगवान्! माता-पिता तो केवल जन्मदाता ही होते हैं, किंतु राज ही वास्तव में पोषक एवं संवर्धक होता हैं. उसी राजा के निमित हम लोग ऐसे गहन वन में आए है. हे महर्षि! आप कोई ऐसी युक्ति बताइए जिससे राजा को संतान की प्राप्ति हो, क्योंकि ऐसे गुणवान राजा को कोई पुत्र न हो, यह बड़े दुर्भाग्य की बात हैं.

हम लोग परस्पर विचार-विमर्श करके इस गंभीर वन में आए हैं. उनके सौभाग्य से ही हम लोगों ने आपका दर्शन किया हैं. हे मुनिवर! किस व्रत, दान, पूजन आदि अनुष्ठान कराने से राजा को पुत्र होगा. आप कृपा करके हम सभी को बतलाएं. प्रजा की बात सुनकर महर्षि लोमेश ने कहा- हे भक्तजनो! आप लोग ध्यानपूर्वक सुनो. मैं संकटनाशन व्रत को बतला रहा हूं. यह व्रत निसंतान को संतान और निर्धनों को धन देता हैं. आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को ‘एकदंत गजानन’ नामक गणेश की पूजा करें. राजा व्रत करके श्रद्धायुक्त हो ब्राह्मण भोजन करावें और उन्हें वस्त्र दान करें. गणेश जी की कृपा से उन्हें अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होगी. महर्षि लोमश की यह बात सुनकर सभी लोग करबद्ध होकर उठ खड़े हुए. नतमस्तक होकर दंडवत प्रणाम करके सभी लोग नगर में लौट आए.

वन में घटित सभी घटनाओं को प्रजाजनों ने राजा से बताया. प्रजाजनों की बात सुनकर राज बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रद्धापूर्वक विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन वस्त्रादि का दान दिया. रानी सुदक्षिणा को गणेश जी कृपा से सुंदर और सुलक्षण पुत्र प्राप्त हुआ. श्रीकृष्ण जी कहते है कि हे राजन! इस व्रत का ऐसा ही प्रभाव हैं. जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करेंगे वे समस्त सांसारिक सुख के अधिकारी होंगे.

भोपाल। भगवान गणपति दुख हरण और सुख के प्रदाता हैं. इनकी कृपा से बिगड़े काम क्षणभर में दूर हो जाते हैं. खुद को मनाने का हर मास वो अवसर भी भक्तगणों को देते हैं. यानी हर महीने शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की चतुर्थी पार्वती पुत्र गणेश को समर्पित होती है. पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं तो शुक्लपक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी का नाम दिया गया है. आषाढ़ मास का यह व्रत रविवार, 27 जून को है. रविवार को पड़ने वाली तिथि को रविवती संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. यह तिथि उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर स्थिति में हो. इस दिन भगवान गणेश के कृष्णपिंगाक्ष रूप की पूजा (Krishnapingakasha Puja) और चंद्र देवता को अर्घ्य देकर उपासना करने का विधान है. ऐसा करने से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं.

गणेश पुराण में है वर्णन (Ganesh Puran)

गणेश पुराण में आषाढ़ महीने की संकष्टी चतुर्थी व्रत का वर्णन है. कहा गया है कि आषाढ़ महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेशजी की पूजा और व्रत करना चाहिए और इस व्रत में गणेश जी के कृष्णपिंगाक्ष रूप की पूजा (Krishnapingakasha Puja) करनी चाहिए. ऐसा करने से हर तरह के संकटों से छुटकारा मिलता है.

कृष्णपिंगाक्ष रूप- प्रकृति पूजा के लिए करता है प्रेरित

इस रूप की अराधना से पहले इसका अर्थ समझना आवश्यक है. यह नाम कृष्ण पिंग और अक्ष, इन शब्दों की संधि से बना है. इनका अर्थ कुछ ऐसे समझ सकते हैं. कृष्ण यानी सांवला, पिंग यानी धुएं के समान रंग वाला और अक्ष का मतलब होता है आंखें. भगवान गणेश का ये रूप प्रकृति पूजा के लिए प्रेरित करता है. सांवला पृथ्वी के संदर्भ में है, धूम्रवर्ण यानी बादल. यानी पृथ्वी और मेघ जिसके नेत्र हैं. वो शक्ति जो धरती से लेकर बादलों तक जो कुछ भी है, उसे पूरी तरह देख सकती है. वो शक्ति हमें लगातार जीवन दे रही है. उन्हें प्रणाम करना चाहिए.

संकष्टी चतुर्थी का महत्व (Sankashti Chaturthi significance)

चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन की प्रथा है. चन्द्रोदय के बाद ही व्रत पूर्ण होता है. मान्यता यह है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसकी संतान संबंधी समस्याएं भी दूर होती हैं. अपयश और बदनामी के योग कट जाते हैं. हर तरह के कार्यों की बाधा दूर होती है. धन तथा कर्ज संबंधी समस्याओं का समाधान होता है.

कमाल का संयोग

इस बार चतुर्थी तिथि पर रविवती संकष्टी चतुर्थी (Ravivati Sankashti Chaturthi) संयोग बन रहा है इसलिए सूर्य को अनुकूल बनाने के लिए यह दिन बहुत शुभ है. इस दिन प्रातः स्नानदि करके भगवान सूर्यनारायण को प्रणाम करें और उन्हें तांबे के लोटे से जल दें. इससे सूर्य संबंधी दोष दूर होते हैं.

संकष्टी चतुर्थी की पूजन विधि

  • प्रातः काल जल्दी उठकर स्नानादि कर लें.
  • पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनें.
  • पूजा स्थान की सफाई करके एक लाल रंग का आसन बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करें.
  • गणेश जी के समक्ष घी का दीपक व सुगंधित धूप प्रज्वलित करें और लाल सिंदूर से तिलक करें
  • फल-फूल व मिष्ठान अर्पित करें. लम्बोदर को मिठाई में मोदक या मोतीचूर के लड्डू पसंद हैं वही अर्पित करें.
  • गजानन को दूर्वा अतिप्रिय है इसलिए इस दिन 21 दूर्वा की गांठे भगवान गणेश के अलग-अलग नामों का उच्चारण करते हुए अर्पित करें.
  • संकष्टी चतुर्थी का व्रत गणेश जी की पूजा से आरंभ होकर चंद्रमा को अर्घ्य देने के साथ ही पूर्ण होता है.
  • इस दिन यथाशक्ति दान देने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए.

रविवती संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat of Sankashti Chaturthi)

आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ- 27 जून 2021 शाम 03 बजकर 54 मिनट से

आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त- 28 जून 2021 दोपहर 02 बजकर 16 मिनट पर

संकष्टी के दिन चन्द्रोदय - 27 जून 2021 10 बजकर 03 मिनट पर

आषाढ़ कृष्ण संकष्टी चतुर्थी कथा-
द्वापर युग में महिष्मति नगरी का महीजित नामक राजा था. वह बड़ा ही पुण्यशील और प्रतापी राजा था. वह अपनी प्रजा का पालन पुत्रवत करता था. किन्तु संतानविहीन होने के कारण उसे राजमहल का वैभव अच्छा नहीं लगता था. वेदों में निसंतान का जीवन व्यर्थ माना गया हैं. यदि संतानविहीन व्यक्ति अपने पितरों को जल दान देता हैं तो उसके पितृगण उस जल को गरम जल के रूप में ग्रहण करते हैं.इसी उहापोह में राजा का बहुत समय व्यतीत हो गया. उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुत से दान, यज्ञ आदि कार्य किए. फिर भी राज को पुत्रोत्पत्ति न हुई. जवानी ढल गई और बुढ़ापा आ गया किंतु वंश वृद्धि न हुई. तदनंतर राजा ने विद्वान ब्राह्मणों और प्रजाजनों से इस संदर्भ में परामर्श किया.

राजा ने कहा कि हे ब्राह्मणों तथा प्रजाजनों! हम तो संतानहीन हो गए, अब मेरी क्या गति होगी? मैंने जीवन में तो किंचित भी पाप कर्म नहीं किया. मैंने कभी अत्याचार द्वारा धन संग्रह नहीं किया. मैंने तो सदैव प्रजा का पुत्रवत पालन किया तथा धर्माचरण द्वारा ही पृथ्वी शासन किया. मैंने चोर-डाकुओं को दंडित किया. इष्ट मित्रों के भोजन की व्यवस्था की, गौ, ब्राह्मणों का हित चिंतन करते हुए शिष्ट पुरुषों का आदर सत्कार किया. फिर भी मुझे अब तक पुत्र न होने का क्या कारण हैं?

विद्वान् ब्राह्मणों ने कहा कि, हे महाराज! हम लोग वैसा ही प्रयत्न करेंगे जिससे आपके वंश कि वृद्धि हो. इस प्रकार कहकर सब लोग युक्ति सोचने लगे. सारी प्रजा राजा के मनोरथ की सिद्धि के लिए ब्राह्मणों के साथ वन में चली गई.

वन में उन लोगों को एक श्रेष्ठ मुनि के दर्शन हुए. वे मुनिराज निराहार रहकर तपस्या में लीन थे. ब्रह्माजी के सामान वे आत्मजित, क्रोधजित तथा सनातन पुरुष थे. संपूर्ण वेद-विशारद एवं अनेक ब्रह्म ज्ञान संपन्न वे महात्मा थे. उनका निर्मल नाम लोमश ऋषि था. प्रत्येक कल्पांत में उनके एक-एक रोम पतित होते थे. इसलिए उनका नाम लोमश ऋषि पड़ गया. ऐसे त्रिकालदर्शी महर्षि लोमेश के उन लोगों ने दर्शन किए. सब लोग उन तेजस्वी मुनि के पास गए. उचित अभ्यर्थना एवं प्रणामदि के अनंतर सभी लोग उनके समक्ष खड़े हो गए. मुनि के दर्शन से सभी लोग प्रसन्न होकर परस्पर कहने लगे कि हम लोगों को सौभाग्य से ही ऐसे मुनि के दर्शन हुए. इनके उपदेश से हम सभी का मंगल होगा, ऐसा निश्चय कर उन लोगों ने मुनिराज से कहा.

हे ब्रह्मऋषि! हम लोगों के दुःख का कारण सुनिए. अपने संदेह के निवारण के लिए हम लोग आपके पास आए हैं. हे भगवन! आप कोई उपाय बतलाइए. महर्षि लोमेश ने पूछा-सज्जनों! आप लोग यहां किस अभिप्राय से आए हैं? मुझसे आपका क्या प्रयोजन हैं? स्पष्ट रूप से कहिए. मैं आपके सभी संदेहों का निवारण करूंगा. प्रजाजनों ने उत्तर दिया- हे मुनिवर! हम महिष्मति नगरी के निवासी हैं. हमारे राजा का नाम महीजित है. वह राजा ब्राह्मणों का रक्षक, धर्मात्मा, दानवीर, शूरवीर एवं मधुरभाषी है. उस राजा ने हम लोगों का पालन पोषण किया है, परंतु ऐसे राज को आज तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई. हे भगवान्! माता-पिता तो केवल जन्मदाता ही होते हैं, किंतु राज ही वास्तव में पोषक एवं संवर्धक होता हैं. उसी राजा के निमित हम लोग ऐसे गहन वन में आए है. हे महर्षि! आप कोई ऐसी युक्ति बताइए जिससे राजा को संतान की प्राप्ति हो, क्योंकि ऐसे गुणवान राजा को कोई पुत्र न हो, यह बड़े दुर्भाग्य की बात हैं.

हम लोग परस्पर विचार-विमर्श करके इस गंभीर वन में आए हैं. उनके सौभाग्य से ही हम लोगों ने आपका दर्शन किया हैं. हे मुनिवर! किस व्रत, दान, पूजन आदि अनुष्ठान कराने से राजा को पुत्र होगा. आप कृपा करके हम सभी को बतलाएं. प्रजा की बात सुनकर महर्षि लोमेश ने कहा- हे भक्तजनो! आप लोग ध्यानपूर्वक सुनो. मैं संकटनाशन व्रत को बतला रहा हूं. यह व्रत निसंतान को संतान और निर्धनों को धन देता हैं. आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को ‘एकदंत गजानन’ नामक गणेश की पूजा करें. राजा व्रत करके श्रद्धायुक्त हो ब्राह्मण भोजन करावें और उन्हें वस्त्र दान करें. गणेश जी की कृपा से उन्हें अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होगी. महर्षि लोमश की यह बात सुनकर सभी लोग करबद्ध होकर उठ खड़े हुए. नतमस्तक होकर दंडवत प्रणाम करके सभी लोग नगर में लौट आए.

वन में घटित सभी घटनाओं को प्रजाजनों ने राजा से बताया. प्रजाजनों की बात सुनकर राज बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रद्धापूर्वक विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन वस्त्रादि का दान दिया. रानी सुदक्षिणा को गणेश जी कृपा से सुंदर और सुलक्षण पुत्र प्राप्त हुआ. श्रीकृष्ण जी कहते है कि हे राजन! इस व्रत का ऐसा ही प्रभाव हैं. जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करेंगे वे समस्त सांसारिक सुख के अधिकारी होंगे.

Last Updated : Jun 28, 2021, 7:01 AM IST
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