भोपाल: पौराणिक कथाओं के मुताबिक रंभा एक स्वर्ग की अप्सरा थी. जिसकी खूबसूरती के प्रशंसक देवता भी थे. रंभा को सुंदरता, धन ऐश्वर्य से जोड़ा जाता है. इसी अप्सरा के नाम पर है रंभा तीज. इस वर्ष 13 जून 2021 दिन रविवार को रंभा तीज मनाई जाएगी. हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार रम्भा तृतीया व्रत (रंभा तीज व्रत) शीघ्र फलदायी माना जाता है. यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को किया जाता है. इस दिन विवाहित महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र, बुद्धिमान संतान पाने के लिए यह व्रत रखती है. कुंआरी कन्याएं यह व्रत अच्छे वर की कामना से करती हैं.
रंभा तीज के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं. फिर व्रत करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा करती हैं. इस तीज व्रत को अप्सरा रंभा ने भी किया था, इस वजह से इसे रंभा तीज के नाम से जाना जाता है. महिलाएं सौभाग्य एवं सुख की प्राप्ति के लिए इस दिन तीज व्रत रखती हैं. इस व्रत को रखने से औरतों का सुहाग और कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है. रंभा तीज का व्रत फलदायी होता है.
सौंदर्य बना रहेगा!
रंभा तीज के दिन विवाहिता महिलाएं गेहूं, अनाज और फूल के साथ चूड़ियों के जोड़े की भी पूजा करती हैं. अविवाहित कन्याएं अपनी पसंद के वर की कामना की पूर्ति के लिए इस व्रत को रखती हैं. ऐसी भी लोक मान्यता है कि रंभा तीज के दिन पूजा उपासना करने से आकर्षण, सुन्दरता और सौंदर्य बना रहता है क्योंकि रंभा स्वयं सौंदर्य की प्रतीक हैं. यह तीज मुख्यत: पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है. संतान सुख मिलता है.
रंभा की उत्पत्ति कथा
अमृत मंथन में निकले चौदह रत्नों में रंभा का आगमन समुद्र मंथन से होने के कारण यह अत्यंत ही पूजनीय हैं. समस्त लोकों में इनका गुणगान होता है. समुद्र मंथन के ये चौदह रत्नों का वर्णन इस प्रकार है.
लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुराधन्वन्तरिश्चन्द्रमाः.
गावः कामदुहा सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवांगनाः.
अप्सराओं का संबंध स्वर्ग से होता है. अप्सराओं के पास दिव्य शक्तियां होती हैं, जिनसे यह किसी को भी सम्मोहित कर सकती हैं. ऋग्वेद में प्रसिद्ध उर्वशी अप्सरा का वर्णन प्राप्त होता है. इसके अलावा धार्मिक कथाओं में भी ऐसा वर्णन मिलता है कि तपस्या में लगे हुए ऋषि-मुनियों की तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र अप्सराओं का आहवान करते थे. अप्सराओं में रंभा, उर्वशी, तिलोत्तमा, मेनका आदि के नाम सुनने को मिलते हैं.
विधि-विधान
इस दिन लक्ष्मीजी तथा माता सती को प्रसन्न करने के लिए पूरे विधि-विधान से पूजन किया जाता है.
- रम्भा तृतीया व्रत के लिए ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया के दिन प्रात:काल दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें.
- भगवान सूर्यदेव के लिए दीपक प्रज्वलित करें.
- इस दिन विवाहित स्त्रियां पूजन में गेहूं, अनाज और फूल से लक्ष्मीजी की पूजा करती हैं.
- पूजन के समय ॐ महाकाल्यै नम:, ॐ महालक्ष्म्यै नम:, ॐ महासरस्वत्यै नम: मंत्रों का किया जाता है.
क्यों मिला ये नाम
रम्भा तृतीया व्रत विशेषत: महिलाओं के लिए है. रम्भा तृतीया को यह नाम इसलिए मिला, क्योंकि रम्भा ने इसे सौभाग्य के लिए किया था. रम्भा तृतीया का व्रत शिव-पार्वतीजी की कृपा पाने, गणेशजी जैसी बुद्धिमान संतान तथा अपने सुहाग की रक्षा के लिए किया जाता है.
रोग से रहते हैं कोसों दूर
आकर्षक सुन्दरतम वस्त्र, अलंकार और सौंदर्य प्रसाधनों से युक्त-सुसज्जित, चिरयौवना रंभा के बारे में कहा जाता है कि उनकी साधना करने से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं बुढ़ापा समाप्त हो जाते हैं. रंभा के मंत्र सिद्ध होने पर वह साधक के साथ छाया के तरह जीवन भर सुन्दर और सौम्य रूप में रहती है तथा उसके सभी मनोरथों को पूर्ण करने में सहायक होती है.