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'गमक' में पंडवानी लोक गायिका शांतिबाई चेलक ने सुनाई भीम और दुर्योधन युद्ध की गाथा - pandwani folk singing presented

भोपाल में बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आज आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा पंडवानी गायिका शांतिबाई चेलक द्वारा ‘गायन’ की प्रस्तुति हुई.

Pandwani singer Shantibai Chelak
पंडवानी गायिका शांतिबाई चेलक
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Published : Dec 19, 2020, 8:17 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों पर आधारिक श्रंख्ला ‘गमक’ में आज पंडवानी गायिका शांतिबाई चेलक ने प्रस्तुति दी. पंडवानी एक छत्तीसगढ़ी लोकगायन शैली है, जिसका अर्थ है पांडव वाणी (पांडवों की कथा) है. इसमें महाकाव्य महाभारत के पांडवों की कथा सुनाई जाती है. पंडवानी में सभी मुख्य किरदारों के शौर्य, पराक्रम और अन्य कथानकों को खास तौर की गायन शैली में गाया जाता है.

शांतिबाई चेलक की प्रस्तुति

अभिनय से भरी इस गायन परंपरा ने अपनी अलग पहचान बनाई है. ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान और देवार जातियों की गायन परंपरा है. शांति बाई चेलक ने गदापर्व की पंडवानी प्रस्तुत की, जिसमें महाकाव्य महाभारत में भीम और दुर्योधन के बीच हुए गदा युद्ध के दृश्य को लोकगायन के माध्यम से प्रस्तुत किया. अट्ठारह दिन का युद्ध समाप्त होने के बाद दुर्योधन और उसकी पत्नी भानुमति संवाद, माता गांधारी का दुर्योधन को आशीर्वाद से लेकर दुर्योधन वध तक दृश्य अपने चित-परिचित अंदाज में पंडवानी गायन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया.

शांतिबाई चेलक बीते चालीस सालों से लगातार पंडवानी लोकगायन प्रस्तुत करती आ रही हैं. चेलक ने लोकगायन की शिक्षा अपने पिता आशाराम बघेल से ली है. वे देश के विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं. शांतिबाई चेलक को छत्तीसगढ़ राज्य से गुरू घासीदास चेतना पुरस्कार प्राप्त है. प्रस्तुति में मंच पर मंजीरे व सहगायन में राजीव और लखनलाल, हारमोनियम पर अवधराम, तबले पर शिवलाल सिंह, नाल पर नीलेश, बेन्जो पर विश्राम और झुमके पर पंचराम ने संगत दी.

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों पर आधारिक श्रंख्ला ‘गमक’ में आज पंडवानी गायिका शांतिबाई चेलक ने प्रस्तुति दी. पंडवानी एक छत्तीसगढ़ी लोकगायन शैली है, जिसका अर्थ है पांडव वाणी (पांडवों की कथा) है. इसमें महाकाव्य महाभारत के पांडवों की कथा सुनाई जाती है. पंडवानी में सभी मुख्य किरदारों के शौर्य, पराक्रम और अन्य कथानकों को खास तौर की गायन शैली में गाया जाता है.

शांतिबाई चेलक की प्रस्तुति

अभिनय से भरी इस गायन परंपरा ने अपनी अलग पहचान बनाई है. ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान और देवार जातियों की गायन परंपरा है. शांति बाई चेलक ने गदापर्व की पंडवानी प्रस्तुत की, जिसमें महाकाव्य महाभारत में भीम और दुर्योधन के बीच हुए गदा युद्ध के दृश्य को लोकगायन के माध्यम से प्रस्तुत किया. अट्ठारह दिन का युद्ध समाप्त होने के बाद दुर्योधन और उसकी पत्नी भानुमति संवाद, माता गांधारी का दुर्योधन को आशीर्वाद से लेकर दुर्योधन वध तक दृश्य अपने चित-परिचित अंदाज में पंडवानी गायन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया.

शांतिबाई चेलक बीते चालीस सालों से लगातार पंडवानी लोकगायन प्रस्तुत करती आ रही हैं. चेलक ने लोकगायन की शिक्षा अपने पिता आशाराम बघेल से ली है. वे देश के विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं. शांतिबाई चेलक को छत्तीसगढ़ राज्य से गुरू घासीदास चेतना पुरस्कार प्राप्त है. प्रस्तुति में मंच पर मंजीरे व सहगायन में राजीव और लखनलाल, हारमोनियम पर अवधराम, तबले पर शिवलाल सिंह, नाल पर नीलेश, बेन्जो पर विश्राम और झुमके पर पंचराम ने संगत दी.

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