भोपाल। हाल ही में पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक माने जाने वाले डॉक्टर अब्दुल कदीर का इंतकाल हुआ है. पाकिस्तान को परमाणु देश का दर्जा दिलाने वाले डॉ अब्दुल कदीर का कनेक्शन भोपाल से है . पुराने भोपाल में जन्मे और गिन्नौरी स्कूल में अपनी पढ़ाई की .अब्दुल कदीर ने भोपाल के तीन स्कूलों में पढ़ाई की . प्राइमरी स्कूल घर के पास ही था. उनके भतीजे अब्दुल जब्बार बताते हैं कि वे और अबदुल कदीर साथ में स्कूल जाते थे. अब्दुल कदीर को हाकी खेलने का बहुत शौक था . इसके साथ ही वे पतंग भी खूब उड़ाते थे. प्राइमरी स्कूल के बाद अब्दुल कदीर ने पास में जहांगीरिया स्कूल में पढ़ाई की. इसके बाद 11वीं तक की पढ़ाई उन्होंने एलेक्सेंड्रा स्कूल में की.
अपने परिवार के जाने के बाद वे भी पाकिस्तान चले गए . हालांकि उनके जाने की वजह का कोई ठोस कारण नहीं था ..उनके भतीजे कहते हैं कि उस वक्त भेड़ चाल चल रही थी . कोई भारत में रहना चाहता था ,तो कोई पाकिस्तान जाना चाहता था .वहीं अब्दुल कदीर के पिता ने भारत में ही रहने का फैसला किया . कदीर का परिवार पढ़ा लिखा था . पिताजी होशंगाबाद में स्कूल हेडमास्टर थे.
पाकिस्तान जाने के बाद सिर्फ एक बार भोपाल आए
अब्दुल कदीर के पाकिस्तान जाने के बाद भोपाल में इनके भतीजे या परिवार से कभी बातचीत नहीं हुई . कदीर के पिता के निधन के वक्त अब्दुल भोपाल नहीं पहुंच सके थे. .क्योंकि वे बेल्जियम में पढ़ाई कर रहे थे .वे बताते हैं कि 1972 में एक दिन के लिए अब्दुल कदीर भोपाल पहुंचे थे .लेकिन उस वक्त इनके भतीजे हॉकी खेलने के लिए बाहर गए थे . फिर उसके बाद इनकी बात नहीं हुई .
पाकिस्तान का विवादास्पद परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर, जो बन गया था 'खलनायक'
पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक कहे जाने वाले विवादास्पद वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान का बीते रविवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. वह 85 वर्ष के थे. खान ने 1970 के दशक के शुरुआत में पाकिस्तान को परमाणु हथियार शक्ति बनने की राह पर ला खड़ा किया. हालांकि वह विवादों में बने रहे.
यूरेनियम संवर्धन तकनीक चोरी करने का आरोप
इस दौरान उन पर नीदरलैंड की सुविधा से सेंट्रीफ्यूज यूरेनियम संवर्धन तकनीक चोरी करने का आरोप लगाया गया था, जिसका उपयोग उन्होंने बाद में पाकिस्तान के पहले परमाणु हथियार को विकसित करने के लिए किया.
परमाणु हथियार कार्यक्रम शुरू करने की पेशकश
बेल्जियम में कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ ल्यूवेन से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाले खान ने 1974 में पड़ोसी भारत द्वारा अपना पहला शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट करने के बाद पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को शुरू करने की पेशकश की.
उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो से पाकिस्तान के अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिए प्रौद्योगिकी की पेशकश की. अभी भी पूर्वी पाकिस्तान के 1971 के नुकसान, जो बांग्लादेश बन गया के साथ-साथ भारत द्वारा 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़े जाने से होशियार हो गया. इस युद्ध के हारने के बाद पाकिस्तान को अंदाजा हो गया था कि भारत से युद्ध जीतना उसके बस की बात नहीं. इसके चलते भुट्टो ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और कहा 'हम (पाकिस्तानी) घास खाएंगे, यहां तक कि भूखे भी रहेंगे, लेकिन हमारे पास अपना (परमाणु बम) होगा.'
15 दिन के भीतर किया परीक्षण
तब से, भारत और पाकिस्तान दोनों ने अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को लगातार आगे बढ़ाया. मई 1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण करने के केवल दो सप्ताह के भीतर पाकिस्तान भी परमाणु परीक्षण किया. कदीर खान ने ही पाकिस्तान के इस परमाणु कार्यक्रम को संचालित किया. इस घटना के बाद ही दुनिया कदीर खान को जानने लगी.
परमाणु तकनीक बेचने के लगे आरोप
कदीर खान दुनिया के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों में से एक थे. हालांकि 2004 में वह फिर से विवादों में घिर गए. उनका नाम वैश्विक स्तर पर परमाणु प्रसार घोटाले में सामने आया. उन पर उत्तर कोरिया, ईरान और लिबिया जैसे देशों को परमाणु तकनीक बेचने के आरोप लगे. उन पर यह आरोप उनके ही देश के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्फर ने लगाए थे.
मुशर्फर के आरोपों को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने परमाणु प्रसार का काम किया. उन्होंने इसकी पूरी जिम्मेदारी लेती. इसके बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया और 2009 तक नजरबंद रखा गया. हालांकि बाद में वह अपने कबूलनामे से मुकर गए.