छिंदवाड़ा। वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम राजाशंकर शाह विश्वविद्यालय के नाम पर किए जानें की बातें कही है. इसको लेकर कांग्रेस ने तंज कसा है. कांग्रेस का कहना है कि, 1 साल पहले कैबिनेट की बैठक में इसका अनुमोदन हो गया था. लेकिन एक बार फिर झूठी वाहवाही लूटने के लिए वित्त मंत्री ने बजट भाषण में इसका जिक्र कर दिया है. जबकि अभी तक यूनिवर्सिटी के लिए बिल्डिंग बनने के लिए सरकार ने बजट का कोई जिक्र नहीं किया.
तीन कमरे में विश्वविद्यालय का संचालन: राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय के लिए बिल्डिंग बनाने जमीन तो आवंटित कर दी गई है, लेकिन बजट की कमी के चलते काम शुरू नहीं हुआ है. हालात यह है कि छिंदवाड़ा के शासकीय स्वशासी पीजी कॉलेज में पिछले 3 सालों से विश्वविद्यालय का संचालन हो रहा है. इसकी वजह से तीन कमरों के बिल्डिंग में विश्वविद्यालय संचालित किया जा रहा है जो काफी समस्याओं के बीच में संचालित किया जाता है.
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ये है राजा शंकर शाह का इतिहास: राजा शंकर शाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा थे. 1857 के विद्रोह की ज्वाला पूरे भारत में धधक रही थी. राजा शंकर शाह ने अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिए युद्ध का आव्हान किया था. इस संग्राम में कुंवर रघुनाथ ने अपने पिता राजा शंकर शाह का बढ़-चढकर सहयोग दिया. बताया जाता है कि, 1857 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क के सामने राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह ने झुकने से इंकार कर दिया. दोनों ने आसपास के राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ एकत्र करना शुरू किया. कमांडर क्लार्क को अपने गुप्तचरों से यह बात पता चल गई, जिस पर क्लार्क ने राज्य पर हमला बोल दिया. अंग्रेज कमांडर ने धोखे से पिता-पुत्र को बंदी बना लिया. 18 सितंबर को दोनों को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया गया था. उसके बाद से हर साल 18 सितंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है.