भोपाल। एक समय में बीजेपी के कद्दावर मंत्री रहे हिम्मत कोठारी चप्पल छोड़ने के मामले में प्रदुम्न सिंह तोमर के सुपर सीनियर कहे जा सकते हैं. लेकिन पूर्व मंत्री हिम्मत कोठारी की नजरिए से देखें तो वे ये मानते हैं कि सरकार में रहते हुए विकास कार्य तो किसी भी मंत्री की नैतिक जवाबदारी है. कैबिनेट में मुख्यमंत्री से चर्चा होती है. यूं भी विभागीय मंत्रियों से अधिकारियों से संवाद होता है तो क्षेत्र से जुड़े काम तो मंत्रियों की जिम्मेदारी है कि वो उसे पूरा करवाएं.
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सिंधिया ने छोड़ा फूलों की माला पहनना: मौजूदा सिविल एविएशन मिनिस्टर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी फूलों की माला नहीं पहनते. उन्होंने साल 2017 में कांग्रेस में रहते हुए प्रण लिया था कि वे जबतक तत्कालीन शिवराज सरकार को उखाड़ नहीं फेंकेके तब तक फूलों की माला नहीं पहनेंगे. हालांकि सिंधिया अब बीजेपी में है. कुछ समय के लिए प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी बनी लेकिन सिंधिया ने फूलों की माला नहीं पहनी. बीजेपी से वे राज्यसभा सांसद और केंद्र में मंत्री भी बने, लेकिन फूलों की माला पहनने से उनका परहेज आज भी जारी है. 2017 में मंदसौर में एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने उन्हें नीबूं मिर्ची की माला भी पहनाई थी जिसे लेकर वे काफी चर्चा में रहे थे.
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क्या कहते हैं जयभान शिंह पवैया : राजनीति में शुचिता के लिए लंबे समय तक अन्न, शैय्या और जूते छोड़ चुके बीजेपी के वरिष्ठ नेता जयभान सिंह पवैया की राय भी कमोबेश यही. वे कहते हैं कि सरकार में रहते हुए अधिकारियों से काम करवाना किसी भी नेता की नैतिक जिम्मेदारी है. पवैया कहते हैं कि मैं किसी के निर्णय की आलोचना नहीं कर रहा हूं. ना किसी के व्यक्तिगत प्रयासों के खिलाफ हूं. लेकिन मैं निजी तौर पर ये मानता हूं कि सरकार में होने के बाद काम कराना हमारी नैतिक जिम्मेदारी हैं. ब्यूरोक्रेसी की ये बाध्यता है कि वो बात माने. सामान्य सिध्दांत यही है. वरना तो संदेश ये जाता है कि ब्यूरोक्रेसी बेलगाम हो रही है. जबकि प्रजातंत्र में जो सवैधानिक अधिकार हैं वो विधायिका को सबसे ज्यादा हैं.
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पांच साल क्यों चप्पल छोड़े रहे हिम्मत दादा : बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री हिम्मत कोठारी ने अपने चुनावी राजनीतिक जीवन में दो बार अलग-अलग वर्षों में चप्पलें छोड़ीं. पहली बार अर्जुन सिंह की सरकार के दौर में 1981-82 में उन्होंने रतलाम में बाल चिकित्सालय बनवाने चप्पलें त्याग कर एक रुपया एक ईंट का आह्वान किया था. और जनसहयोग से तीन दिन में एक लाख सत्रह हजार रुपए उस ज़माने में इकट्ठा कर लिये थे. दूसरी बार उन्होंने रतलाम में हुई भारी बारिश में तबाह हुई झुग्गी बस्तियों के बसाने के प्रयास के लिए छोड़ीं. चप्पल छोड़ने के साथ उन्होने संकल्प लिया था कि निजी प्रयासों से वे झुग्गी की जगह हर परिवार को कम से कम एक कमरा बनवा कर देंगे.
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मिल चालू करवाने अनशन : पांच हजार झुग्गी वासियों के लिए उन्होंने इस तरह से इंतज़ाम किया. अलग- अलग समय में छोड़ी गई चप्पल की कुल समयावधि देखें तो साढे पांच साल जनहितैषी कार्यों के लिए हिम्मत कोठारी बगैर चप्पल रहे. हिम्मत कोठारी कहते हैं, विपक्षी दल में रहते हुए अपने क्षेत्र में मिल चालू करवाने अनशन भी किए. चप्पल भी छोड़ी. ये त्याग सिर्फ इसलिए किये कि हमें अपना संकल्प और लक्ष्य याद रहे. और विपक्ष में थे तो सरकार क ध्यानाकर्षण भी होता था.
कैलाश 16 बरस उपवास पर किसलिए : बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर में पितृ पर्वत के पास हनुमान जी की प्रतिमा की स्थापना के लिए 16 वर्ष का कठिन व्रत रखा था. संकल्प एक कि जब तक पितृ पर्वत के पास हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित नहीं हो जाती है. वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे. करीब 2004 में उन्होने ये संकल्प लिया था. 16 साल तक कैलाश विजयवर्गीय फलाहार पर ही रहे. जब संकल्प पूरा हुआ तब दस लाख लोगों का नगर भोज हुआ. खुद कैलाश विजयवर्गीय ने भी अन्न ग्रहण किया.
पवैया ने तो जूतों के साथ शैय्या भी छोड़ी : बीजेपी के हिंदूवादी नेता जयभान सिंह पवैया ने दो बार जूते-चप्पल के साथ अन्न और शैय्या त्याग के संकल्प लिए और दोनों ही बार वजह बेहद खास थी. 1989 में पवैया ने राम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया. और जब वे राम शिला पूजन अभियान पर निकले तो बजरंग दल के पदाधिकारी रहते हुए उन्होंने भोजन के साथ जूते- चप्पल और शैय्या छोड़ दी. उनकी प्रेरणा से पांच हजार युवाओँ ने भी जूते- चप्पल छोड़कर शिलापूजन अभियान में गांव- गांव दौरे किए थे. दूसरी बार 2004 में ग्वालियर से कांग्रेस के सांसद रामसेवक गुर्जर के स्टिंग ऑपरेशन में रिश्वत लेते पकड़े जाने के बाद जयभान सिंह पवैया ने राजनीति में शुचिता के संकल्प के साथ जूते- चप्पल, शैय्या और भोजन का त्याग किया. उन्होंने ग्वालियर के सांसद का रिश्वत कांड में पकड़ा जाना समूचे इलाके का अपमान माना था.
पवैया ने लिया था संकल्प : पवैया ने संकल्प लिया था कि जब तक ग्वालियर में कांग्रेस पराजित नहीं हो जाती वो अन्न ग्रहण नहीं करेंगे. ग्वालियर के उपचुनाव में जब यशोधरा राजे चुनाव जीतीं उसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनका अनशन तुड़वाया था. पवैया कहते हैं चाहे हिंदुत्व के लिए राष्ट्र जागरण हो या राजनीति में भ्रष्ट्राचार के खिलाफ मेरा सत्याग्रह रहा. मेरे त्याग और संकल्प के जरिए समाज में भी एक जागृति का प्रयास रहा. (MP BJP history ascetic leaders) (Minister Pradumn renounced slippers) (Also Himmat kothari and pavaiya) (Why Kailash Vijayvargiya fasting 16 years)