भोपाल। बीजेपी में छत्तीसगढ़ से उठा भूकंप एमपी में भी असर दिखाएगा. बड़ी बात ये है कि बीजेपी से अब उन नेताओं का मोह भंग हो रहा है. जिन्होंने कभी पार्टी को सींचा था. छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. एमपी में अटकलें तेज हैं कि राजनीति के संत कहे जाने वाले और बीजेपी को सींचने वाले नेता पूर्व सीएम कैलाश जोशी के बेटे भी बीजेपी से नाता तोड़ सकते हैं. पिछले लंबे वक्त से बीजेपी के भीतर हाशिए पर चल रहे दीपक जोशी को जनता के हक के लिए कई बार अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठना पड़ा. ईटीवी भारत से बातचीत में पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने कहा कि पांच मई को उनकी पत्नि की पुण्यतिथि है. 6 मई को वे कांग्रेस ज्वाइन कर सकते हैं. उन्होने कहा कि ये सम्मान की लड़ाई है जो मुझे सम्मान देगा जाहिर है उसके साथ रहूंगा.
पिता की राजनीतिक विरासत बचाने संघर्ष : बीजेपी में तीन बार के विधायक रहे दीपक जोशी ये कहते रहे हैं कि उनका संघर्ष उनके पिता की राजनीतिक विरासत को बचाने का भी है. दीपक जोशी का कहना है कि बागली हाटपिपल्या विधानसभा क्षेत्र मेरे लिए कोई चुनावी सीट नहीं है. ये इलाका परिवार है मेरा. मेरे पिता कैलाश जोशी की कर्मभूमि है. बागली से विपक्ष में रहते हुए उन्होंने आठ बार चुनाव जीता है. यहां हर परिवार से हमारा रिश्ता है. वो हमें परिवार का सदस्य मानते आए हैं.
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बीजेपी से नाराज दीपक कह चुके हैं पार्टी में खाई बढ़ी: दीपक जोशी ईटीवी भारत से ये कह चुके हैं कि पार्टी में जो आयु सीमा तय कर दी. विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का इसके पीछे कोई मंतव्य निश्चित रुप से होगा, लेकिन निजी तौर वे ये मानते हैं कि अध्यक्ष से लेकर जिला अध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष तक उम्र का क्राइटेरिया तय किया गया है. उसके बाद पार्टी में ये होता है कि अब पार्टी में दायित्ववान कार्यकर्ता अनुभव के साथ नहीं होता. अनुभवहीनता एक बड़ा कारण है. पुराने और नए कार्यकर्ताओं के बीच गैप बढ़ गया है. 2020 में सिंधिया समर्थकों की बीजेपी में एँट्री के साथ जो सियासी सीन बदला उसके शिकार दीपक जोशी भी हुए . सिंधिया के समर्थन में इस्तीफा देने वालों में मनोज चौधरी भी थे जिन्हे पार्टी ने टिकट देकर चुनाव लड़ने का मौका दिया. मनोज चुनाव जीतकर विधायक भी बनें. इसी के बाद से दीपक जोशी के हाशिए पर चले जाने की प्रस्तावना तैयार हो गई.