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MP Assembly Election 2023: इस संगठन पर सियासी दलों की नजर, दो करोड़ वोटर की ताकत वाले ये कर्मचारी कर सकते हैं सत्ता पलट - एमपी विधानसभा चुनाव 2023

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान कई संगठन सड़कों पर उतरकर अपना विरोध जताते हैं. जिनकी मांगो को कई बार सुन लिया जाता है तो कई बार अनसुना कर दिया जाता है. वहीं इस बार ग्रामीण आजीविका संविदा कर्मचारी के नए नवेले संगठन पर इस पर कई सियासी दलों की नजर है, क्योंकि ये कर्मचारी सत्ता को पलटने की ताकत भी रखते हैं.

MP Assembly Election 2023
ग्रामीण आजीविका मिशन
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Published : Jun 19, 2023, 9:20 PM IST

भोपाल। अतिथि शिक्षकों का वो धरना याद है आपको जिनके हक में सिंधिया ने सड़क पर उतरने का दम दिखाया था, वहीं इस घटना के महीने भर बाद ही पूरी कमलनाथ सरकार सड़क पर आ गई थी. तो एक तरीके से अतिथि शिक्षक सत्ता पलट की जमीन बने थे. 2023 के विधानसभा चुनाव में ऐसा कौन सा कर्मचारी संगठन है. जिसके समर्थन में भले अभी कोई नेता ना उतरा हो, लेकिन ये संगठन बहुत जल्द सियासी दलों की आंख का तारा बन सकता है. वजह ये कि दो करोड़ से ज्यादा के वोट बैंक को प्रभावित करने की ताकत इस संगठन के पास है.

ग्रामीण आजीविका संविदा कर्मचारी के नए नवेले संगठन पर सियासी दलों की भी नजर लगी हुई है. सरकार और जनता के बीच की मजबूत की कड़ी इन कर्मचारियों के जरिए ही प्रदेश में साढे़ चार लाख स्व सहायता समूहों के साथ 55 लाख महिलाओं का गांव-गांव तक नेटवर्क तैयार हुआ है. ये कर्मचारी अपने नियमितीकरण की एक सूत्रीय मांग को लेकर सरकार के सामने चुनावी साल में बड़ी लड़ाई की तैयारी में हैं.

mp assembly election 2023
कर्मचारियों की मांग

कर्मचारियों की ताकत दो करोड़ वोटर से सीधा कनेक्ट: राजनीति का ढंग बदल रहा है. अगर सियासी दल कर्मचारी संगठन और समाज की सियासत इस बूते करते हैं कि उनका कितना मजबूत वोट बैंक है. तो अब कर्मचारी संगठन भी अपनी उसी ताकत को दिखाते मैदान में आने लगे हैं. इस लिहाज से देखिए तो एमपी में ग्रामीण आजीविका संविदा कर्मचारी संगठन का तो नेटवर्क किसी भी और कर्मचारी संगठन से ज्यादा मजबूत है. इस संगठन का दो करोड़ के लगभग वोट बैक से सीधा जुड़ाव है. असल में ग्रामीण आजीविका मिशन के जरिए ही प्रदेश में साढे़ चार लाख स्व सहायता समूह बने हैं. जिनसे 55 लाख महिलाएं जुड़ी हैं. अब अगर एक महिला के ही परिवार के चार सदस्यों को ही जोड़ लिया जाए तो ये संख्या दो करोड़ पर पहुंचती है. यही इस संगठन की सबसे बड़ी ताकत है.

सरकार की योजनाओं का प्रचार इन्हीं के हाथ: एक तरीके से ये कर्मचारी सरकार और जनता के बीच की सबसे मजबूत कड़ी हैं. पूरे प्रदेश में ढाई हजार के लगभग ये कर्मचारी सरकार की योजनाओं के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं. किसी भी योजना का लाभ जमीन तक पहुंचाने में इन सेलफ हेल्प ग्रुप की बड़ी भूमिका है. आजीविका मिशन अकेली ऐसी योजना है, जिसमें कर्मचारियों का हितग्राहियों से लगातार संपर्क होता है. यही वजह है कि ये कर्मचारी महिलाओं के साथ उनके परिवारों के वोट को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं.

यहां पढ़ें...

एमपी में सरकार के बड़े जलसों में जुटी भीड़: एमपी में अब तक जितने बड़े सरकारी आयोजन हुए और उनमें जो भीड़ जुटी है. इसमें आजीविका मिशन के कर्मचारियों की ही मेहनत है. ये कर्मचारी ही हैं जो लाखों की तादाद में हर सभा में स्व-सहायाता समूहों की भीड़ जुटाते हैं. ये सारी मेहनत आजीविका मिशन के कर्मचारियों की ही रहती है. जिसकी बदौलत लाखों की तादात में जुटी स्वसहायता समूह की महिलाओं के जरिए प्रदेश भर में हितग्राहियों को सरकार और जनता के समक्ष लाया जाता है. वे ये बताते हैं कि वो संतुष्ट हैं.

संविदा कर्मियों की एक मांग नियमितीकरण: ग्रामीण आजीविका संघ मध्य प्रदेश के गठन के साथ इन संविदा कर्मियों ने सिर्फ एक मांग सरकार के सामने रखी है कि कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जाना चाहिए. इसके साथ दीगर सरकारी कर्मचारियों की तरह सारी सुविधाएं इन कर्मचारियों को भी मिलनी चाहिए. इसीलिए संविदा कर्मियों ने पहली बार ग्रामीण आजीविका संघ का गठन किया. इसमें 52 जिलों के ढाई हजार से ज्यादा कर्मचारी हैं. ग्रामीण आजीविका संघ के प्रदेश अध्यक्ष आशीष शर्मा ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि हमारे संगठन की केवल एक मांग है कि हमारा नियमितीकरण किया जाए और बाकी कर्मचारियों की तरह ही शासकीय सुविधाएं हमें मिल सके.

भोपाल। अतिथि शिक्षकों का वो धरना याद है आपको जिनके हक में सिंधिया ने सड़क पर उतरने का दम दिखाया था, वहीं इस घटना के महीने भर बाद ही पूरी कमलनाथ सरकार सड़क पर आ गई थी. तो एक तरीके से अतिथि शिक्षक सत्ता पलट की जमीन बने थे. 2023 के विधानसभा चुनाव में ऐसा कौन सा कर्मचारी संगठन है. जिसके समर्थन में भले अभी कोई नेता ना उतरा हो, लेकिन ये संगठन बहुत जल्द सियासी दलों की आंख का तारा बन सकता है. वजह ये कि दो करोड़ से ज्यादा के वोट बैंक को प्रभावित करने की ताकत इस संगठन के पास है.

ग्रामीण आजीविका संविदा कर्मचारी के नए नवेले संगठन पर सियासी दलों की भी नजर लगी हुई है. सरकार और जनता के बीच की मजबूत की कड़ी इन कर्मचारियों के जरिए ही प्रदेश में साढे़ चार लाख स्व सहायता समूहों के साथ 55 लाख महिलाओं का गांव-गांव तक नेटवर्क तैयार हुआ है. ये कर्मचारी अपने नियमितीकरण की एक सूत्रीय मांग को लेकर सरकार के सामने चुनावी साल में बड़ी लड़ाई की तैयारी में हैं.

mp assembly election 2023
कर्मचारियों की मांग

कर्मचारियों की ताकत दो करोड़ वोटर से सीधा कनेक्ट: राजनीति का ढंग बदल रहा है. अगर सियासी दल कर्मचारी संगठन और समाज की सियासत इस बूते करते हैं कि उनका कितना मजबूत वोट बैंक है. तो अब कर्मचारी संगठन भी अपनी उसी ताकत को दिखाते मैदान में आने लगे हैं. इस लिहाज से देखिए तो एमपी में ग्रामीण आजीविका संविदा कर्मचारी संगठन का तो नेटवर्क किसी भी और कर्मचारी संगठन से ज्यादा मजबूत है. इस संगठन का दो करोड़ के लगभग वोट बैक से सीधा जुड़ाव है. असल में ग्रामीण आजीविका मिशन के जरिए ही प्रदेश में साढे़ चार लाख स्व सहायता समूह बने हैं. जिनसे 55 लाख महिलाएं जुड़ी हैं. अब अगर एक महिला के ही परिवार के चार सदस्यों को ही जोड़ लिया जाए तो ये संख्या दो करोड़ पर पहुंचती है. यही इस संगठन की सबसे बड़ी ताकत है.

सरकार की योजनाओं का प्रचार इन्हीं के हाथ: एक तरीके से ये कर्मचारी सरकार और जनता के बीच की सबसे मजबूत कड़ी हैं. पूरे प्रदेश में ढाई हजार के लगभग ये कर्मचारी सरकार की योजनाओं के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं. किसी भी योजना का लाभ जमीन तक पहुंचाने में इन सेलफ हेल्प ग्रुप की बड़ी भूमिका है. आजीविका मिशन अकेली ऐसी योजना है, जिसमें कर्मचारियों का हितग्राहियों से लगातार संपर्क होता है. यही वजह है कि ये कर्मचारी महिलाओं के साथ उनके परिवारों के वोट को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं.

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एमपी में सरकार के बड़े जलसों में जुटी भीड़: एमपी में अब तक जितने बड़े सरकारी आयोजन हुए और उनमें जो भीड़ जुटी है. इसमें आजीविका मिशन के कर्मचारियों की ही मेहनत है. ये कर्मचारी ही हैं जो लाखों की तादाद में हर सभा में स्व-सहायाता समूहों की भीड़ जुटाते हैं. ये सारी मेहनत आजीविका मिशन के कर्मचारियों की ही रहती है. जिसकी बदौलत लाखों की तादात में जुटी स्वसहायता समूह की महिलाओं के जरिए प्रदेश भर में हितग्राहियों को सरकार और जनता के समक्ष लाया जाता है. वे ये बताते हैं कि वो संतुष्ट हैं.

संविदा कर्मियों की एक मांग नियमितीकरण: ग्रामीण आजीविका संघ मध्य प्रदेश के गठन के साथ इन संविदा कर्मियों ने सिर्फ एक मांग सरकार के सामने रखी है कि कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जाना चाहिए. इसके साथ दीगर सरकारी कर्मचारियों की तरह सारी सुविधाएं इन कर्मचारियों को भी मिलनी चाहिए. इसीलिए संविदा कर्मियों ने पहली बार ग्रामीण आजीविका संघ का गठन किया. इसमें 52 जिलों के ढाई हजार से ज्यादा कर्मचारी हैं. ग्रामीण आजीविका संघ के प्रदेश अध्यक्ष आशीष शर्मा ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि हमारे संगठन की केवल एक मांग है कि हमारा नियमितीकरण किया जाए और बाकी कर्मचारियों की तरह ही शासकीय सुविधाएं हमें मिल सके.

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