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MP Assembly Election 2023: एमपी में रेवड़ियों की राजनीति, दक्षिण से हुई एंट्री... शिवराज की किस्त से पहले अर्जुन सिंह ने दिया था पट्टा

मध्य प्रदेश की सियासत में रेवड़ियां बांटने का चलन कोई नया नहीं है. यह प्रयोग पहले भी पूर्व सीएम अर्जुन सिंह की सरकार में हो चुका है. यही प्रयोग दिल्ली में बेहतर ढंग से अरविंद केजरीवाल ने किया और उसका लाभ भी उन्हें मिला. राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो यह रेवडियां बांटने का यह प्रचलन दक्षिण से आया है. अब इस राह पर एमपी में सीएम शिवराज चल रहे हैं.

MP Assembly Election 2023
मंच पर मौजूद बीजेपी के दिग्गज
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 6, 2023, 5:35 PM IST

भोपाल। 1984 का साल था, तारीख 17 अप्रैल. जब विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने मध्यप्रदेश की विधानसभा झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले मध्य प्रदेश के लोगों के लिए बड़ा ऐलान किया था और कहा था कि अब वे बेघर बेदर नहीं रहेंगे. अब उनके घर पर उनका कानूनी हक होगा. जिसे बाद में पट्टे का नाम दिया गया. मुफ्त रेवड़ी यानि इसे फ्री बी की नींव कहा जा सकता है. 37 साल बाद लाड़ली बहना योजना में 1250 की किस्त, स्कूटी लैपटॉप, सीखो कमाओ और महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण के झुनझुने के साथ जो रेवड़ियों का सैलाब लेकर आया है. हालाकि राजनीति में मुफ्त का दरवाजा दक्षिण से खुला.

तमिलनाडू आंध्र प्रदेश से शुरु हुई इन स्कीमों में शुरुआत मुफ्त के अनाज से हुई. जो बाद में टीवी वॉशिग मशीन और साड़ी के ऑफर तक पहुंच गई. इस वक्त देश में खुले हाथ से रेवड़ियां बांटने वालों में शिवराज अरविंद केजरीवाल को चुनौती बनते दिखाई दे रहे हैं. 2007 से लाड़ली लक्ष्मी योजना के साथ सत्ता में पैर जमाने वाले शिवराज को यकीन है कि लाड़ली बहना योजना स्कीम बीजेपी के सत्ता के रथ को नए रिकार्ड की तरफ ले जाएगी, लेकिन मुफ्त रेवड़ियों की सौगात देने में 19 साल में 16 गुना ज्यादा कर्ज बढ़ा चुकी शिवराज सरकार ने क्या सूबे की आर्थिक सेहत का ख्याल रखा है.

राजनीति में मुफ्त मुफ्त...अर्जुन सिंह से शिवराज तक: एमपी की राजनीति में मुफ्त कल्चर का सियासी लाभ भले बीजेपी ने भरपूर लिया हो. लेकिन इसकी शुरुआत अर्जुन सिंह के दौर में 1984 के आस पास हो गई थी. ये उस समय कांग्रेस नेता व पूर्व सीएम अर्जुन सिंह का बड़ा दांव था. उन्होंने प्रदेश भर में झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों को उनकी झुग्गी का मालिकाना हक देते हुए उन्हें पट्टा दे दिया था. इसी के साथ दी गई थी एक बत्ती कनेक्शन की सौगात भी. इस समय तक दक्षिण के राज्य तमिलनाडू और आंध्र प्रदेश में मुफ्त अनाज दिए जाने की शुरुआत हो रही थी. स्कूलों में बच्चों को खाना दिया जा रहा था. फिर चुनाव के दौरान साड़ियां-शराब पैसा भी खूब बंटा, लेकिन दिग्विजय सिंह ने अर्जुन सिंह की सियासत के इस हिस्से को उस तरह नहीं थामा.

हैरत की बात है कि मुफ्त रेवड़ियों के मामले में अर्जुन सिह के नक्शेकदम पर चले तो बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. 2007 का साल था, जब शिवराज ने चनाव के ठीक साल भर पहले लाड़ली लक्ष्मी योजना लॉच की. इसके नतीजे 2008 के बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में भी दिखाई देते रहे. हालांकि तब तक शिवराज ने तीर्थ दर्शन संबल जैसी मुफ्त की सौगातों वाली योजनाओं की शुरुआत कर दी थी. छात्रों को लैपटॉप दिया जा रहा था. लंबा वनवास भोग रही कांग्रेस भी कर्जमाफी की सौगात का सपना दिखाकर ही सत्ता में आई, लेकिन बीजेपी ने 2018 में जो झटका झेला. 2023 में पार्टी ने कोई कसर ही नहीं छोड़ी.

फ्री बी में कौन आगे शिवराज या केजरीवाल: देश की राजनीति में फ्री बी कल्चर की एंट्री केजरीवाल के साथ हुई. उनके दिल्ली में मुफ्त की रेवड़ियों के सारे प्रयोग सफल भी हुए, लेकिन अब मध्यप्रदेश में शिवराज केजरीवाल को इस मामले में कड़ी चुनौती देते दिखाई दे रहे हैं. एमपी में छात्रों को स्कूटी मुफ्त मिल रही है. सीखने पर भी कमाने के मौके हैं. गैंस सिलेंडर आधी कीमत पर और सबसे बड़ी स्कीम लाड़ली बहना योजना. जिसमें सरकार 1250 तक की मासिक किश्त दे चुकी है. उसे तीन हजार तक ले जाने का वादा है, पर क्या ये मुफ्त की रेवड़ियां असर दिखाती हैं. वरिष्ठ पत्रकार रत्नाकर त्रिपाठी कहते हैं "एमपी को इसकी प्रयोगशाला कहा जा सकता है और प्रयोग सफल भी हुए. जनता के खाते में पैसा पहुंचना बंद ना हो इस फिक्र में ही वो समर्थन तो देता है, दिया है. मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना के बूते शिवराज सिंह चौहान दोबारा सत्ता में आए थे."

राजनीति में मुफ्त रेवड़ियां भविष्य क्या है: वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रत्नाकर त्रिपाठी कहते हैं मुफ्त रेवड़ियों का कल्चर साऊथ से आया है, लेकिन जडे़ं अब उत्तर भारत के राज्यों में जम चुकी है. दिल्ली में केजरीवाल ने इसी के बूते सत्ता में पैर जमाए और एमपी में तो शवराज सिंह चौहान ने रिकार्ड बनाए. हालांकि इनके पहले कांग्रेस में दिग्विजय सिंह की सरकार में मुफ्त रेवड़ियों का चलन कुछ कमजोर पड़ा था. दिग्विजय सिंह के लिए जनता सेकेंडरी हो गई थी. उनका बयान था कि चुनाव मैनेजमेंट से जीते जाते हैं. नतीजा हार की शक्ल में सामने आया. इसे बीजेपी ने सबक की तरह लिया. उमा भारती से लेकर बाबूलाल गौर और शिवराज तक बीजेपी का पूरा फोकस ऐसी योजनाओं पर रहा, जो जनता को सीधे हिट करे. लाड़ली बहना योजना ताजा मिसाल है. त्रिपाठी उदाहरण देकर बताते हैं आप हम ये विश्लेषण करते हैं कि 1250 रुपए से किसी महिला की जिंदगी में क्या बदलाव आएगा, लेकिन जब वो अकाउंट में राशि चैक करने डाले गए एक रुपए पर भी कलेक्ट्रेट में हंगामा करती है, तो अंदाजा लगाइए कि 1250 रुपए कितने असरदार होंगे.

यहां पढ़ें...

फ्री बी के फेर में 16 गुना बढ गया एमपी पर कर्ज: जिस तरफ सुप्रीम कोर्ट का इशारा है. एमपी में वो स्थिति बन गई है. हालात ये है कि मुफ्त की योजनाओं का लाभ दिलाने में जुटी शिवराज सरकार 19 साल में 16 गुना कर्ज एमपी पर बढ़ चुका है. दिग्विजय की सरकार में जो 20 हजार करोड़ का कर्ज था. जो 2022-2023 में 2 लाख 79 हजार 237 करोड़ है. जो बढ़कर 3 लाख 32 हज़ार करोड़ हो चुका है.

भोपाल। 1984 का साल था, तारीख 17 अप्रैल. जब विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने मध्यप्रदेश की विधानसभा झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले मध्य प्रदेश के लोगों के लिए बड़ा ऐलान किया था और कहा था कि अब वे बेघर बेदर नहीं रहेंगे. अब उनके घर पर उनका कानूनी हक होगा. जिसे बाद में पट्टे का नाम दिया गया. मुफ्त रेवड़ी यानि इसे फ्री बी की नींव कहा जा सकता है. 37 साल बाद लाड़ली बहना योजना में 1250 की किस्त, स्कूटी लैपटॉप, सीखो कमाओ और महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण के झुनझुने के साथ जो रेवड़ियों का सैलाब लेकर आया है. हालाकि राजनीति में मुफ्त का दरवाजा दक्षिण से खुला.

तमिलनाडू आंध्र प्रदेश से शुरु हुई इन स्कीमों में शुरुआत मुफ्त के अनाज से हुई. जो बाद में टीवी वॉशिग मशीन और साड़ी के ऑफर तक पहुंच गई. इस वक्त देश में खुले हाथ से रेवड़ियां बांटने वालों में शिवराज अरविंद केजरीवाल को चुनौती बनते दिखाई दे रहे हैं. 2007 से लाड़ली लक्ष्मी योजना के साथ सत्ता में पैर जमाने वाले शिवराज को यकीन है कि लाड़ली बहना योजना स्कीम बीजेपी के सत्ता के रथ को नए रिकार्ड की तरफ ले जाएगी, लेकिन मुफ्त रेवड़ियों की सौगात देने में 19 साल में 16 गुना ज्यादा कर्ज बढ़ा चुकी शिवराज सरकार ने क्या सूबे की आर्थिक सेहत का ख्याल रखा है.

राजनीति में मुफ्त मुफ्त...अर्जुन सिंह से शिवराज तक: एमपी की राजनीति में मुफ्त कल्चर का सियासी लाभ भले बीजेपी ने भरपूर लिया हो. लेकिन इसकी शुरुआत अर्जुन सिंह के दौर में 1984 के आस पास हो गई थी. ये उस समय कांग्रेस नेता व पूर्व सीएम अर्जुन सिंह का बड़ा दांव था. उन्होंने प्रदेश भर में झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों को उनकी झुग्गी का मालिकाना हक देते हुए उन्हें पट्टा दे दिया था. इसी के साथ दी गई थी एक बत्ती कनेक्शन की सौगात भी. इस समय तक दक्षिण के राज्य तमिलनाडू और आंध्र प्रदेश में मुफ्त अनाज दिए जाने की शुरुआत हो रही थी. स्कूलों में बच्चों को खाना दिया जा रहा था. फिर चुनाव के दौरान साड़ियां-शराब पैसा भी खूब बंटा, लेकिन दिग्विजय सिंह ने अर्जुन सिंह की सियासत के इस हिस्से को उस तरह नहीं थामा.

हैरत की बात है कि मुफ्त रेवड़ियों के मामले में अर्जुन सिह के नक्शेकदम पर चले तो बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. 2007 का साल था, जब शिवराज ने चनाव के ठीक साल भर पहले लाड़ली लक्ष्मी योजना लॉच की. इसके नतीजे 2008 के बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में भी दिखाई देते रहे. हालांकि तब तक शिवराज ने तीर्थ दर्शन संबल जैसी मुफ्त की सौगातों वाली योजनाओं की शुरुआत कर दी थी. छात्रों को लैपटॉप दिया जा रहा था. लंबा वनवास भोग रही कांग्रेस भी कर्जमाफी की सौगात का सपना दिखाकर ही सत्ता में आई, लेकिन बीजेपी ने 2018 में जो झटका झेला. 2023 में पार्टी ने कोई कसर ही नहीं छोड़ी.

फ्री बी में कौन आगे शिवराज या केजरीवाल: देश की राजनीति में फ्री बी कल्चर की एंट्री केजरीवाल के साथ हुई. उनके दिल्ली में मुफ्त की रेवड़ियों के सारे प्रयोग सफल भी हुए, लेकिन अब मध्यप्रदेश में शिवराज केजरीवाल को इस मामले में कड़ी चुनौती देते दिखाई दे रहे हैं. एमपी में छात्रों को स्कूटी मुफ्त मिल रही है. सीखने पर भी कमाने के मौके हैं. गैंस सिलेंडर आधी कीमत पर और सबसे बड़ी स्कीम लाड़ली बहना योजना. जिसमें सरकार 1250 तक की मासिक किश्त दे चुकी है. उसे तीन हजार तक ले जाने का वादा है, पर क्या ये मुफ्त की रेवड़ियां असर दिखाती हैं. वरिष्ठ पत्रकार रत्नाकर त्रिपाठी कहते हैं "एमपी को इसकी प्रयोगशाला कहा जा सकता है और प्रयोग सफल भी हुए. जनता के खाते में पैसा पहुंचना बंद ना हो इस फिक्र में ही वो समर्थन तो देता है, दिया है. मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना के बूते शिवराज सिंह चौहान दोबारा सत्ता में आए थे."

राजनीति में मुफ्त रेवड़ियां भविष्य क्या है: वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रत्नाकर त्रिपाठी कहते हैं मुफ्त रेवड़ियों का कल्चर साऊथ से आया है, लेकिन जडे़ं अब उत्तर भारत के राज्यों में जम चुकी है. दिल्ली में केजरीवाल ने इसी के बूते सत्ता में पैर जमाए और एमपी में तो शवराज सिंह चौहान ने रिकार्ड बनाए. हालांकि इनके पहले कांग्रेस में दिग्विजय सिंह की सरकार में मुफ्त रेवड़ियों का चलन कुछ कमजोर पड़ा था. दिग्विजय सिंह के लिए जनता सेकेंडरी हो गई थी. उनका बयान था कि चुनाव मैनेजमेंट से जीते जाते हैं. नतीजा हार की शक्ल में सामने आया. इसे बीजेपी ने सबक की तरह लिया. उमा भारती से लेकर बाबूलाल गौर और शिवराज तक बीजेपी का पूरा फोकस ऐसी योजनाओं पर रहा, जो जनता को सीधे हिट करे. लाड़ली बहना योजना ताजा मिसाल है. त्रिपाठी उदाहरण देकर बताते हैं आप हम ये विश्लेषण करते हैं कि 1250 रुपए से किसी महिला की जिंदगी में क्या बदलाव आएगा, लेकिन जब वो अकाउंट में राशि चैक करने डाले गए एक रुपए पर भी कलेक्ट्रेट में हंगामा करती है, तो अंदाजा लगाइए कि 1250 रुपए कितने असरदार होंगे.

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फ्री बी के फेर में 16 गुना बढ गया एमपी पर कर्ज: जिस तरफ सुप्रीम कोर्ट का इशारा है. एमपी में वो स्थिति बन गई है. हालात ये है कि मुफ्त की योजनाओं का लाभ दिलाने में जुटी शिवराज सरकार 19 साल में 16 गुना कर्ज एमपी पर बढ़ चुका है. दिग्विजय की सरकार में जो 20 हजार करोड़ का कर्ज था. जो 2022-2023 में 2 लाख 79 हजार 237 करोड़ है. जो बढ़कर 3 लाख 32 हज़ार करोड़ हो चुका है.

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