भोपाल। चीफ जस्टिस एनवी रमण की पीठ ने राज्य सरकार (Madhya Pradesh government) को कड़ी फटकार लगाई और मुख्य सचिव को तलब करने की बात कही. पीठ ने यह भी कहा कि अब मध्य प्रदेश के किसी मामले की सुनवाई तभी होगी, जब एडवोकेट जनरल खुद जिरह करें. इस फटकार के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसे बड़े वकीलों को सरकार क्यों रखती है और वे सरकार की पैरवी करने में सफल क्यों नहीं हो पाते हैं. कोर्ट में पैरवी करने वाले सरकारी वकीलों को सरकार हर साल करोड़ों का भुगतान करती है. लेकिन जब कोर्ट में कोई मामला आता है तो ये उपस्थित नहीं होते और यदि होते हैं तो जानकारी नहीं होती. ज्यादातर मामलों में सरकारी वकील सुनवाई टालने की बात करते हैं. ये फटकार चीफ जस्टिस रमना की पीठ ने नाराज होते हुए जताई थी.
SC के लिए 45 सीनियर वकील
सरकारी वकीलों या फिर बड़े वकीलों को जो सरकार का पक्ष रखने के लिए कोर्ट में खड़े होते हैं, सरकार अच्छी खासी रकम देती है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के लिए मप्र सरकार ने 45 मोस्ट सीनियर वकीलों को रखा है, जो कि अगस्त 2020 में पैनल में शामिल किए गए थे. इनका एक साल का कार्यकाल होता है, लेकिन अभी तक इन वकीलों के कार्यकाल को जारी रखा गया है.
सरकारी वकीलों में मिलने वाला मानदेय
महाधिवक्ता - 1 लाख 80 हजार प्रति माह
अतिरिक्त महाधिवक्ता - 1लाख 75 हजार प्रति माह
उप महाधिवक्ता - 1 लाख 60 हजार प्रति माह
शासकीय अधिवक्ता - 1 लाख 25 हजार प्रति माह
अप शासकीय अधिवक्ता - 1 लाख रुपए प्रति माह
कांग्रेस MLA के बेटे ने कनपटी पर मारी गोली, सुसाइड नोट में लिखा, मेरे मम्मी-पापा बहुत अच्छे हैं
मानदेय बढ़ाने का प्रस्ताव लंबित
इनके मानदेय को बढ़ाने की बात हो रही है. प्रस्ताव फिलहाल सरकार के पास लंबित है. आपको सुनकर हैरानी होगी कि मप्र सरकार ये मानदेय 2012 में दिया करती थी,अब इस मानदेय को बढ़ाने की बात हो रही है जो फिलहाल लंबित है.
सरकारी अभिभाषक, लोक अभियोजन और पैनल लॉयर्स को मिलने वाले मानदेय और अन्य सुविधाएं
400 रुपए प्रति दिन एक घंटे से कम कार्य करने पर
800 प्रति दिन एक घंटे से अधिक काम करने पर या 20 हजार प्रति माह
अतिरिक्त शासकीय अभिभाषक/अतिरिक्त लोक अभियोजक को 400 प्रतिदिन एक घंटे से कम कार्य करने पर
800 प्रति दिन एक घंटे से अधिक काम करने पर या 18 हजार प्रति माह
शासकीय अभिभाजक/लोक अभियोजन /अति. शासकीय अभिभाषक /अति. लोक अभियोजक - 3 हजार प्रति माह
पैनल लायर्स जो सरकारी काम के लिए अभियोजक/ अति. लोक अभियोजक की अनुपस्थिति में काम करते हैं, उन्हें आपराधिक प्रकरणों में सत्र प्रकरणों/फौजदारी अपील(सत्र न्यायालय) - 350 /प्रतिदिन एक घंटे से कम करने पर
650 प्रतिदिन एक घंटे से अधिक कार्य करने पर
पैनल लायर्स का सत्र न्यायालयों अभियुक्तों का पक्ष समर्थन- 650 प्रति प्रभावी तारीख या 4500 प्रति प्रकरण अंतिम फैसला होने तक
स्थायी अधिवक्ता को मिलने वाली फीस व अन्य खर्च
15, 000 प्रति माह इसके साथ ही शुरु में सुनवाई के दौरान 1 हजार प्रति प्रकरण प्रति दिन अधिकतम 2500
स्थापना व्यय जिसमें कार्यालय व्यय भी शामिल- 5000
नियमित प्रकरणों में हाजिर होने पर- 1000 रुपए प्रति प्रकरण प्रति दिन, अधिकतम 2500 रुपए
न्यायालय के समक्ष सुनवाई हेतु नियत प्रकरणों की सूची के लिए सालाना खर्च- 10 हजार प्रति वर्ष
अन्य खर्चे
फोटो कापी शुल्क , टाइपिंग शुल्क , अनुवाद के लिए शुल्क
वरिष्ठ पैनल के अधिवक्ताओं का मानदेय
नियमित प्रकरणों - 5000 प्रतिदिन प्रति प्रकरण अधिकतम 15 हजार प्रतिदिन प्रकरण
प्रकरण की अनुमति के बाद 3 हजार प्रतिदिन
ड्राफ्टिंग के लिए - 3 हजार प्रति घंटा अधिकतम - 10 , 000
विधिक परामर्श के लिए - 1000 /प्रतिघंटा अधिकतम 6 हजार, इसके साथ अन्य याचिकाएं प्रस्तुत करने पर - 10 हजार से अधिक नहीं होगी
जूनियर वकीलों के लिए सरकारी मानदेय
नियमित प्रकरण- 2500 प्रति दिन
नियमित सुनवाई- 1500 प्रतिदिन प्रति प्रकरण या फिर 3 हजार अधिकतम
Ujjain News: बच्चा लेकर लड़की को लावारिस छोड़ा,Human Trafficking से जुड़ रहे तार
सरकारी वकीलों की संख्या
2020 में अतिवरिष्ठ अधिवक्तागण - 45
वरिष्ठ अधिवक्तागण - 23
2019 में 78 जूनियर वकीलों को सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए शामिल किया गया था.
2021 में जूनियर वकील के पैनल में 9 वकीलों को शामिल किया गया है.
सरकार की नाकामी- पीसी शर्मा
सरकारी वकीलों के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकीलों के लिए सरकार लाखों रुपए महीने में खर्च कर रही है, इसके साथ ही अन्य सुविधाएं भी दे रही हैं. इसे लेकर पूर्व विधि मंत्री पीसी शर्मा का कहना है कि बीजेपी सरकार लाखों रुपए वकीलों को उपकृत करने के लिए खर्च कर रही है. जनता की गाढ़ी कमाई को फिजूल में खर्च किया जा रहा है. उन्होंने वकीलों के पेश नहीं होने को सरकार की नाकामी बताया है.
आरक्षण केस में करोड़ों खर्च
मप्र सरकार जिन वकीलों पर भरोसा जताकर कोर्ट में पैरवी ठीक से करने के लिए लाखों रुपए मानदेय पर खर्च कर रही है, वही वकील अधिकांश केसों में सरकार को जीत नहीं दिला पाते हैं. जैसे प्रमोशन में आरक्षण का मामला हो या फिर कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाने का मामला हो,अभी तक दोनों मामलों में सरकार करोड़ो खर्च कर चुकी है,सूत्रों की मानें तो राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण के लिए परैवी पर सुप्रीम कोर्ट में 9 करोड़ खर्च कर चुकी है. वहीं हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण की पैरवी के लिए 3 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है.लेकिन अभी भी कोर्ट में मामला लंबित है.