भोपाल। शिवराज सरकार ने श्रम सुधारों के नाम पर कारखानों में 12 घंटे की पाली, श्रम कानूनों के परिपालन के लिए निरीक्षण पर रोक, ठेका श्रमिकों के लिए ठेकेदारों की मनमर्जी, दुकानों और संस्थानों में 18 घंटे का काम की व्यवस्था कायम करने की घोषणा की थी. इस शिवराज सरकार की घोषणा को केन्द्रीय श्रमिक संगठनों, कर्मचारी महासंघों ने मध्य प्रदेश में औद्योगिक संस्थानों में जंगल राज की कायमी बताते हुए इन्हें तुरंत वापस लेने की मांग की है. ट्रेड यूनियन नेताओं ने विचार विमर्श के बाद निर्णय किया कि कोरोना वायरस के बचाव के लिए घोषित मापदंडों और अनुशासन को कायम रखते हुए 11 मई को सुबह 10 से 11 बजे के बीच (10-15 मिनट के लिए) जो जहां है, वह वहीं से विरोध प्रदर्शन करेगा. ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि यदि सरकार मजदूर विरोधी निर्णय को वापस नहीं लेगी तो आंदोलन तेज करने के सम्बन्ध में भी निर्णय लिया जाएगा.
ट्रेड यूनियन ने किया विरोध
मजदूर कर्मचारी नेताओं ने राज्य सरकार के इस निर्णय को एकतरफा, शोषणकारी और कॉरपोरेटपरस्त बताते हुए इस कदम का व्यापक विरोध करने का एलान किया है. ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि प्रदेश में दलबदल कर बनाई गई सरकार ने वैधानिक और जनतांत्रिक प्रक्रियाओं को धता-बताकर इन केन्द्रीय कानूनों में बदलाव कर दिखाया है कि उस के लिये कारपोरेट्स का हित सर्वाेपरी है. घोषणा के बाद प्रदेश के श्रमायुक्त द्वारा जारी पत्र के जरिए लॉकडाउन के दौरान ड्यूटी पर न आने वाले श्रमिकों का वेतन काटने की मालिकों को दी गई खुली छूट की भी ट्रेड यूनियनों ने तीखी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि आज जब श्रमिक रेड जोन और कंटोनमेंट के चलते प्रशासनिक पाबंदियों में फंसा हुआ है, तब उनकी अनुपस्थिति पर वेतन कटौती की इजाजत देना अन्यायपूर्ण है.
'मजदूरों के खिलाफ है कानून में बदलाव'
इंटक प्रदेश अध्यक्ष आर.डी. त्रिपाठी, सीटू प्रदेश महासचिव प्रमोद प्रधान, एटक प्रदेश उपाध्यक्ष रूपसिंह चौहान, एआईयूटीयूसी अध्यक्ष जे.सी. बरई, एचएमएस प्रदेश अध्यक्ष हरिओम सूर्यवंशी, बैंक कर्मचारियों के महासचिव वी.के शर्मा, केन्द्रीय कर्मचारियों के महासचिव यशवंत पुरोहित, बीमा कर्मचारियों के सहसचिव पूषण भट्टाचार्य, सीटू सहायक महासचिव एटी पद्मनाभन, एटक सहायक महासचिव एच.एस.मौर्या ने एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा है कि कोरोना लॉक डाउन में नियोजकों कॉरपोरेट घरानों, ठेकेदारों, बिल्डर्स, की मुनाफे की हवस और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के चलते जब आज लाखों मजदूर सड़कों पर बेबसी और भुखमरी के शिकार हो रहे है, तब इन पर अंकुश लगाने के बजाय मजदूरों पर गुलामी थोपी जा रही है.
मोर्चा ने मुख्यमंत्री से कहा है कि यदि प्रदेश में उद्योग विकसित कर विकास करना चाहते है, तो श्रम को प्रोत्साहन, संरक्षण और सम्मानजनक दर्जा देकर ही ऐसा किया जा सकता है. सरकार के फैसले को श्रमिकों की लूट और पूंजी के लिए छूट की नीति बताते हुए नेताओं ने प्रदेश के मजदूर कर्मचारियों से इसका पुरजोर विरोध करने की अपील की है.