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2023 के चुनाव के बाद बीजेपी में मजबूत हुए सिंधिया, क्या ये कांग्रेस की कमजोर रणनीति की परिणति ? - MP News

Jyotiraditya Scindia Strong in BJP: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सिंधिया को जो मजबूती दी है वो कहीं न कहीं कांग्रेस की कमजोर रणनीति का नतीजा है. यही वजह है कि चंबल की 34 सीटों में से भाजपा की झोली में 18 सीटें आ गई हैं.

Jyotiraditya Scindia Strong in BJP
बीजेपी में कितने मजबूत हुए सिंधिया
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 6, 2023, 7:24 PM IST

भोपाल। क्या 2023 के विधानसभा चुनाव कुल जमा तीन साल पहले बीजेपी में आये सिंधिया के पैर मजबूत कर गए हैं. गद्दार से लेकर अलग खेमे तक के जो दाग सिंधिया पर लगाए जाते रहे, क्या इन चुनाव में हर आरोप पर चुप्पी के साथ सिंधिया ने बड़ा जवाब दे दिया है. ग्वालियर चंबल की 34 सीटों में से 18 बीजेपी के खाते में गई हैं इसका श्रेय भी सिंधिया के खाते में हैं. लेकिन सिंधिया के लिए बड़ी जीत तो ये है कि इस चुनाव में दिग्विजय सिंह समेत वो सारे विरोधी साफ हो गए, जो लगातार सिंधिया के खिलाफ अटैकिंग मोड में थे. इनमें खास तौर पर दिग्विजय समर्थकों का सफाया हो गया है.

Jyotiraditya Scindia Strong in BJP
बीजेपी में कितने मजबूत हुए सिंधिया

बीजेपी में सिंधिया की मौजूदगी ने क्या बदला : तो अब सवाल कि 2020 में सत्ता की सौगात लेकर बीजेपी में आए सिंधिया की मौजूदगी से तीन साल बाद हुए बीजेपी चुनाव में क्या बदला. इसमें दो राय नहीं कि सिंधिया के बीजेपी में आ जाने के बाद से कांग्रेस के पास ग्वालियर चंबल में संकट खड़ा हो गया और नतीजों में उसका असर दिखा भी. ग्वालियर चंबल की 34 सीटों में से 18 सीटें बीजेपी के खाते में गई हैं. जबकि कांग्रेस को केवल 16 सीटें ही हासिल हुई. वहीं, सिंधिया के रहते कांग्रेस को 34 में से 26 सीटें 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली थी. हांलाकि, करीब 8 सिंधिया समर्थकों को भी इस चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. बावजूद इसके सिंधिया 2023 के विधानसभा चुनाव में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराने में कामयबा रहे.

Scindia in Royal Dinner
शाही भोज में सिंधिया

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सिंधिया पर वार करने वाले हारे : उपचुनाव के बाद ये दूसरा चुनाव था जिसमें कांग्रेस की ओर से सिंधिया पर जमकर हमले किए गए. दिग्विजय सिंह से लेकर खास तौर पर उनके समर्थकों ने पूरे कैम्पेन के दौरान उन पर हमले बोले. लेकिन नतीजे आने के बाद सिंधिया पर वार करने वाले ज्यादातर नेता चुनाव हार गए. राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता कहते हैं, "असल में चुनाव ये बताते हैं कि किसी नेता की स्वीकार्यता कितनी है और उसके खिलाफ उठाए गए मुद्दों का कितना असर रहा. इस लिहाज से देखिए तो सिंधिया के ऊपर जितने आरोप लगाए गए. सिंधिया ने एक का भी पलटकर जवाब नहीं दिया और जिस तरह से उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले हारे उससे लगता है कि जनता ने सिंधिया पर लगाए गए आरोपों को तवज्जो ही नहीं दी.

भोपाल। क्या 2023 के विधानसभा चुनाव कुल जमा तीन साल पहले बीजेपी में आये सिंधिया के पैर मजबूत कर गए हैं. गद्दार से लेकर अलग खेमे तक के जो दाग सिंधिया पर लगाए जाते रहे, क्या इन चुनाव में हर आरोप पर चुप्पी के साथ सिंधिया ने बड़ा जवाब दे दिया है. ग्वालियर चंबल की 34 सीटों में से 18 बीजेपी के खाते में गई हैं इसका श्रेय भी सिंधिया के खाते में हैं. लेकिन सिंधिया के लिए बड़ी जीत तो ये है कि इस चुनाव में दिग्विजय सिंह समेत वो सारे विरोधी साफ हो गए, जो लगातार सिंधिया के खिलाफ अटैकिंग मोड में थे. इनमें खास तौर पर दिग्विजय समर्थकों का सफाया हो गया है.

Jyotiraditya Scindia Strong in BJP
बीजेपी में कितने मजबूत हुए सिंधिया

बीजेपी में सिंधिया की मौजूदगी ने क्या बदला : तो अब सवाल कि 2020 में सत्ता की सौगात लेकर बीजेपी में आए सिंधिया की मौजूदगी से तीन साल बाद हुए बीजेपी चुनाव में क्या बदला. इसमें दो राय नहीं कि सिंधिया के बीजेपी में आ जाने के बाद से कांग्रेस के पास ग्वालियर चंबल में संकट खड़ा हो गया और नतीजों में उसका असर दिखा भी. ग्वालियर चंबल की 34 सीटों में से 18 सीटें बीजेपी के खाते में गई हैं. जबकि कांग्रेस को केवल 16 सीटें ही हासिल हुई. वहीं, सिंधिया के रहते कांग्रेस को 34 में से 26 सीटें 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली थी. हांलाकि, करीब 8 सिंधिया समर्थकों को भी इस चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. बावजूद इसके सिंधिया 2023 के विधानसभा चुनाव में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराने में कामयबा रहे.

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सिंधिया पर वार करने वाले हारे : उपचुनाव के बाद ये दूसरा चुनाव था जिसमें कांग्रेस की ओर से सिंधिया पर जमकर हमले किए गए. दिग्विजय सिंह से लेकर खास तौर पर उनके समर्थकों ने पूरे कैम्पेन के दौरान उन पर हमले बोले. लेकिन नतीजे आने के बाद सिंधिया पर वार करने वाले ज्यादातर नेता चुनाव हार गए. राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता कहते हैं, "असल में चुनाव ये बताते हैं कि किसी नेता की स्वीकार्यता कितनी है और उसके खिलाफ उठाए गए मुद्दों का कितना असर रहा. इस लिहाज से देखिए तो सिंधिया के ऊपर जितने आरोप लगाए गए. सिंधिया ने एक का भी पलटकर जवाब नहीं दिया और जिस तरह से उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले हारे उससे लगता है कि जनता ने सिंधिया पर लगाए गए आरोपों को तवज्जो ही नहीं दी.

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