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भोपाल में अस्पताल प्रबंधन की संवेदनहीनता, 'पहले बिल जमा करिए, फिर ले जाइए डेड बॉडी'

राजधानी भोपाल के निजी अस्पताल की संवेदनहीनता का मामला सामने आया है. जहां मरीज की मौत के बाद सिद्धांता अस्पताल ने शव देने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि, 'पहले बिल जमा कीजिए, उसके बाद डेडे बॉडी ले जाइए'. दूसरे दिन सिक्योरिटी के नाम पर ब्लैंक चेक लेकर बॉडी परिजनों को दी गई.

Hospital management
अस्पताल सिद्धांता
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Published : Oct 12, 2020, 6:54 PM IST

भोपाल। कोरोना काल में जहां एक ओर अधिकांश निजी अस्पताल अन्य बीमारियों के मरीजों का इलाज करने से बच रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर जिन अस्पतालों में इलाज चल भी रहा है, वहां से मरीजों को लेकर लापरवाही के मामले सामने आ रहे हैं. राजधानी भोपाल के निजी अस्पताल की संवेदनहीनता का मामला सामने आया है. जहां मरीज की मौत के बाद सिद्धांता अस्पताल ने शव देने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि, 'पहले बिल जमा कीजिए, उसके बाद डेडे बॉडी ले जाइए'. दूसरे दिन सिक्योरिटी के नाम पर ब्लैंक चेक लेकर बॉडी परिजनों को दी गई.

अस्पताल प्रबंधन की मनमानी

मृतक के परिजनों ने बताया कि, मरीज को टाइफाइड हुआ था, जिसका इलाज कनोरिया में चल रहा था. तबीयत बिगड़ने के बाद उसकी आंते सिकुड़ गई थी, स्थिति गंभीर होती देख मरीज को निजी अस्पताल सिद्धांता रेड क्रॉस में भर्ती कराया गया. जहां डॉक्टर गौरव ने कहा कि, मरीज की स्थिति गंभीर है, उन्हें वेंटिलटर पर रखना होगा. पहले 2 से 3 दिन वेंटिलेटर पर रखा गया, उसके बाद वहां से हटा दिया गया, फिर दोबारा 6 दिनों के लिए वेंटिलेटर पर रखा गया. जिसके बाद रविवार को कहा गया कि, मरीज के बचने की कोई उम्मीद नहीं है, इसे घर ले जाइए.

अस्पताल प्रबंधन ने बॉडी देने से किया इनकार

परिजनों ने बताया कि, हॉस्पिटल वालों ने पहले उनसे कहा था कि, ढ़ाई से तीन लाख रुपए का खर्च आएगा, लेकिन अब बिल चार लाख का बना दिया है. जिसमें से 1 लाख 15 हजार रुपए पहले ही जमा करा लिया गया था. इसके अलावा भी दवाइयां और जांचों का खर्चा भी परिजनों ने ही दिया है. पहले अस्पताल प्रबंधन ने परिजनों को मृतक का बॉडी देने से मना कर दिया और कहा गया कि, आप पहले बिल जमा करिए, फिर बॉडी ले जाइए. रविवार को बॉडी अस्पताल में रखी थी, जिसकी सिक्योरिटी के नाम पर परिजनों से ब्लैंक चेक लिया गया है, जिसके बाद ही उन्हें मृतक का शरीर दिया गया है.

ये भी पढ़े- ऑर्डिनेंस फैक्ट्री कटनी: 40 घंटे के बाद आरोपी सैनिक ने किया सरेंडर, सीनियर अफसर को मारी थी गोली

शिकायत करने के बाद नहीं हुई कार्रवाई

इस मामले की शिकायत परिजनों ने सीएम हेल्पलाइन में भी दर्ज कराई है, जहां से अब तक कोई जवाब नहीं आया है. साथ ही मरीज का आयुष्मान कार्ड भी था, लेकिन उसे इसका कोई लाभी नहीं दिया गया. मामले में अस्पताल प्रबंधन ने कुछ भी कहने से मना कर दिया है.

भोपाल। कोरोना काल में जहां एक ओर अधिकांश निजी अस्पताल अन्य बीमारियों के मरीजों का इलाज करने से बच रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर जिन अस्पतालों में इलाज चल भी रहा है, वहां से मरीजों को लेकर लापरवाही के मामले सामने आ रहे हैं. राजधानी भोपाल के निजी अस्पताल की संवेदनहीनता का मामला सामने आया है. जहां मरीज की मौत के बाद सिद्धांता अस्पताल ने शव देने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि, 'पहले बिल जमा कीजिए, उसके बाद डेडे बॉडी ले जाइए'. दूसरे दिन सिक्योरिटी के नाम पर ब्लैंक चेक लेकर बॉडी परिजनों को दी गई.

अस्पताल प्रबंधन की मनमानी

मृतक के परिजनों ने बताया कि, मरीज को टाइफाइड हुआ था, जिसका इलाज कनोरिया में चल रहा था. तबीयत बिगड़ने के बाद उसकी आंते सिकुड़ गई थी, स्थिति गंभीर होती देख मरीज को निजी अस्पताल सिद्धांता रेड क्रॉस में भर्ती कराया गया. जहां डॉक्टर गौरव ने कहा कि, मरीज की स्थिति गंभीर है, उन्हें वेंटिलटर पर रखना होगा. पहले 2 से 3 दिन वेंटिलेटर पर रखा गया, उसके बाद वहां से हटा दिया गया, फिर दोबारा 6 दिनों के लिए वेंटिलेटर पर रखा गया. जिसके बाद रविवार को कहा गया कि, मरीज के बचने की कोई उम्मीद नहीं है, इसे घर ले जाइए.

अस्पताल प्रबंधन ने बॉडी देने से किया इनकार

परिजनों ने बताया कि, हॉस्पिटल वालों ने पहले उनसे कहा था कि, ढ़ाई से तीन लाख रुपए का खर्च आएगा, लेकिन अब बिल चार लाख का बना दिया है. जिसमें से 1 लाख 15 हजार रुपए पहले ही जमा करा लिया गया था. इसके अलावा भी दवाइयां और जांचों का खर्चा भी परिजनों ने ही दिया है. पहले अस्पताल प्रबंधन ने परिजनों को मृतक का बॉडी देने से मना कर दिया और कहा गया कि, आप पहले बिल जमा करिए, फिर बॉडी ले जाइए. रविवार को बॉडी अस्पताल में रखी थी, जिसकी सिक्योरिटी के नाम पर परिजनों से ब्लैंक चेक लिया गया है, जिसके बाद ही उन्हें मृतक का शरीर दिया गया है.

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शिकायत करने के बाद नहीं हुई कार्रवाई

इस मामले की शिकायत परिजनों ने सीएम हेल्पलाइन में भी दर्ज कराई है, जहां से अब तक कोई जवाब नहीं आया है. साथ ही मरीज का आयुष्मान कार्ड भी था, लेकिन उसे इसका कोई लाभी नहीं दिया गया. मामले में अस्पताल प्रबंधन ने कुछ भी कहने से मना कर दिया है.

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