भोपाल। कांग्रेस ने वचन पत्र में हर वर्ग से तरह-तरह के वादे किए थे, हालांकि मुख्यमंत्री कमलनाथ वचन पत्र के वचनों को निभाने में काफी गंभीर हैं और संवेदनशीलता बरत रहे हैं, लेकिन कई वादे अभी भी ऐसे हैं, जिन पर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं. ऐसी स्थिति में जिन लोगों के बारे में ये वचन दिए गए हैं, उनका सब्र का बांध अब टूटने लगा है. इसी कड़ी में सरकारी महाविद्यालयों में कार्यरत अतिथि विद्वान भारी संख्या में कांग्रेस कार्यालय पहुंचे और वचन पत्र में किए गए नियमितीकरण के वादे को निभाने की बात कांग्रेस के पदाधिकारियों से की.
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस के घोषणापत्र में प्रदेश के सरकारी कालेजों में कार्यरत करीब 5 हजार 100 अतिथि विद्वानों को नियमित करने का वादा किया था, लेकिन कमलनाथ सरकार को बने करीब 8 महीने बीत चुके हैं और अभी तक इस मामले में कोई भी कदम कमलनाथ सरकार ने नहीं उठाया है. ऐसी स्थिति में आज प्रदेश भर से आए अतिथि विद्वानों ने कांग्रेस कार्यालय पहुंचकर कांग्रेस पदाधिकारियों को अपना वचन दिलाया और नियमितीकरण की मांग की.
जांच की मांग
अतिथि विद्वानों ने पीएससी के जरिए ली गई क्रीड़ा अधिकारी और ग्रंथपाल परीक्षा की जांच की मांग की है. अतिथि विद्वानों का कहना है कि इस परीक्षा में अन्य राज्यों के उम्मीदवारों को आयु सीमा की छूट का लाभ दिया गया. वहीं अन्य राज्यों के आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को पात्रता दी गई एवं चयन सूची में शामिल किया गया. पीएससी द्वारा जारी चयन सूची में उन्हें आरक्षण का लाभ दिया गया है. वहीं अतिथि विद्वानों का कहना है कि पीएसी में चयनित ज्यादातर उम्मीदवारों के अनुभव प्रमाण पत्र भी फर्जी हैं, जिनकी जांच कराया जाना चाहिए. इसके अलावा अतिथि विद्वानों का कहना है कि अन्य राज्यों की स्लेट परीक्षा को मान्य किया गया, जबकि मध्यप्रदेश में कई सालों से स्लेट परीक्षा आयोजित ही नहीं की गई.
चुनाव से पहले किया था वादा
आंदोलनकारी अतिथि विद्वानों का कहना है कि जब कांग्रेस वचन पत्र तैयार कर रही थी. तो हम लोगों को बुलाकर उन्होंने हमारी मांगों पर चर्चा की थी और नियमितीकरण का वचन देते हुए वचन पत्र में शामिल किया था. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के प्रतिनिधि के तौर पर सरकार बनने में 3 महीने में नियमितीकरण की बात कही थी. लेकिन सरकार को 8 महीने से ज्यादा वक्त बीत गया है और अभी तक हमारे मामले में कोई कदम नहीं उठाया गया है. ऐसी स्थिति में हमें मजबूर होकर सड़कों पर उतरना होगा.