भोपाल। 'अजीब लुत्फ था मोबाइल ने छीन लिया, कभी खतों से भी बुझती थी इंतजार की प्यास.' शायर आबिद अकील का यह शेर शौके जिंदगी को बखूबी बयां करता है. डॉ. जीके अग्रवाल के शौके जूनून को देखकर तो यही लगता है कि वह हैं, लेकिन उनके शौक के चलते आज उनके पास गार्डन में दुर्लभ पौधे हैं. साथ ही सिक्कों और स्टाम्प्स का अच्छा कलेक्शन भी.
डॉ. अग्रावल के पास करीब डेढ़ सौ साल पुराने सिक्के हैं. उनके संग्रह में 1862 के दौर के सिक्के हैं, जिन पर रानी विक्टोरिया का नाम अंकित हैं. उनके पास इस युग के अन्य सिक्के भी हैं, जो चांदी के बने हुए हैं. उन्होंने संग्रह में उस मुद्रा को विशेष स्थान दिया हैं, जो देश की स्वतंत्रता तक प्रचलन में थीं. वहीं उर्दू और फारसी में लिखे सिक्के उनके पास हैं.
डॉ. अग्रवाल को सिक्कों के अलावा डाक टिकट संग्रह का भी शौक हैं. उनके पास सन् 1800, 1900 और 2000 की अवधि के स्टाम्प्स का कलेक्शन हैं. भारतीय डाक एवं तार विभाग द्वारा रामायण पर जारी डाक टिकट के साथ विभिन्न महापुरुषों की जयंती, पुण्यतिथि पर जारी डाक टिकट, एशियन गेम्स पर जारी टिकट का भी कलेक्शन हैं. इसके साथ ही चौथाई आना (1887) और महारानी विक्टोरिया के नाम के एक रुपए के चांदी के सिक्के भी उनके पास हैं.
पहले बच्चों का इलाज, फिर कलेक्शन
डॉ. जीके अग्रवाल का कहना है कि कोरोना काल में हम बच्चों के इलाज के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. फोन आते ही पहले क्लीनिक में बच्चों का इलाज करते हैं. अस्पताल से फ्री होने के बाद जो समय बचता है, उसमें इस तरह के कलेक्शन को जुटाते हैं. राजधानी से बाहर अपनी यात्राओं के दौरान, वह नर्सरी से विभिन्न प्रकार के पौधे एकत्र करते हैं. इसके साथ ही सिक्कों और डाक टिकटों का संग्रहण भी लगातार कर रहे हैं.