भोपाल| पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह की मर्जी के खिलाफ आखिरकार पार्टी ने उन्हें भोपाल लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बना ही दिया. पिछले 30 साल से भोपाल लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है. दिग्विजय सिंह को भोपाल लोकसभा सीट जीतने के लिए सिर्फ 60,000 वोट ही चाहिए, लेकिन इसके लिए कांग्रेस को 2018 के विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराना होगा.
इस बार भोपाल लोकसभा सीट से मेयर आलोक शर्मा मौजूदा सांसद आलोक संजर और बीजेपी नेता बी डी शर्मा दावेदारी जता रहे हैं. लेकिन कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतार कांग्रेस को इस सीट पर फतेह करने की उम्मीद जीवित कर दी है. हालांकि देखा जाए तो पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भोपाल की विधानसभा सीटों पर बेहतरीन प्रदर्शन किया है और 3 सीटों पर कांग्रेस के विधायक जीते हैं. जिनमें से दो कमलनाथ सरकार में मंत्री भी हैं. माना जा रहा है कि यदि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के नतीजों को दोहराया तो कांग्रेस जीत के या तो बेहद करीब पहुंचेगी या फिर कांग्रेस के हाथ जीत ही आएगी.
पिछले विधानसभा चुनाव में भोपाल और सीहोर विधानसभा सीट पर बीजेपी-कांग्रेस को मिले वोटों के बीच महज 63 हजार 457 वोटों का ही अंतर रहा है. हालांकि विधानसभा चुनाव के बाद भोपाल लोकसभा सीट पर करीब 56,000 नए मतदाता जुड़े हैं जो हार और जीत में निर्णायक भूमिका निभाएंगे.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार आलोक संजर ने कांग्रेस उम्मीदवार और वर्तमान में कमलनाथ सरकार में मंत्री पीसी शर्मा को तीन लाख 70 हजार 696 वोटों से शिकस्त दी थी. हालांकि 2018 की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खाते में भोपाल लोकसभा क्षेत्र की 2 विधानसभा सीटें आई हैं. वोटरों के हिसाब से देखा जाए तो भोपाल लोकसभा क्षेत्र में करीब 5 लाख मुस्लिम मतदाता हैं जो कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते हैं. इसलिए कांग्रेस नेता उम्मीद जता रहे हैं की इस बार के लोकसभा चुनाव में मुकाबला कांग्रेस के पक्ष में आएगा. बता दें भोपाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने आखरी बार 1989 में जीत हासिल की थी. 1989 से 3 बार इस सीट को सुशील चंद्र वर्मा ने जीता. उसके बाद उमा भारती और पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी भोपाल के सांसद रहे.