भोपाल। मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा रविंद्र भवन भोपाल में आयोजित लोकरंग उत्सव में दूसरे दिन पश्चिम बंगाल से पधारे बामा प्रसाद और साथियों के बाउल गायन का आयोजन किया, जहां बाउल गान से दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए.
बंगाल के बाउल गान या फकीर संगीत तत्वज्ञान और प्रदर्शन के संलाप का अनुसरण करते हैं. बाबुल वर्ग जाति धर्म को नहीं मानते, वह प्रायः संगीत के साथ अपनी दिव्यता और अध्यात्मिकता द्वारा समाज के मानदंडों की उपेक्षा करते हैं.
अनेक बाउल गानों का संगीत के अन्य रूपों पर गहरा प्रभाव पड़ा है, भटियाली संगीत बाउल संगीत के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है, जिसकी लय ने कई शास्त्रीय संगीतकारों का दिल जीता है.
शास्त्रीय संगीतकारों ने अपने आशु रचनाओं में एक तारा या दो तारा स्वर को प्रस्तुत किया है, रविंद्र नाथ टैगोर ने बाउल उस्ताद ललन फकीर के कुछ गीतों तत्वज्ञान और संगीत का अपने अनेक गीतों में उपयोग किया है, इन्हीं सभी प्रयोगों को की झलक बामा प्रसाद और साथियों द्वारा बाउल गायन में नजर आई.